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अलीगढ़ में भाजपा के लिए सातों सीटें जीतना बनी प्रतिष्ठा, दोहराना चाहती है 2017 का चुनावी इतिहास

अलीगढ़ में विधानसभा चुनाव 2017 में जिले की सातों सीटें जीतकर इतिहास रचने वाली भाजपा के लिए इस बार सफर चुनौती पूर्ण होगा। जिले में खोने को कुछ नहीं है। मगर भाजपा कहीं भी चूक करती रही है। इससे कार्यकर्ता भी नाराज हैं। जिन्‍हें मनाना बेहद जरूरी है।

By Sandeep Kumar SaxenaEdited By: Published: Fri, 21 Jan 2022 11:51 AM (IST)Updated: Fri, 21 Jan 2022 11:51 AM (IST)
अलीगढ़ में भाजपा के लिए सातों सीटें जीतना बनी प्रतिष्ठा, दोहराना चाहती है 2017 का चुनावी इतिहास
भाजपा ने पांच विधायकों को दोबारा मैदान में उतारा है। शहर सीट से विधायक की पत्‍नी मैदान में हैं।

अलीगढ़,जागरण संवाददाता। विधानसभा चुनाव 2017 में जिले की सातों सीटें जीतकर इतिहास रचने वाली भाजपा के लिए इस बार सफर चुनौती पूर्ण होगा। क्योंकि, विपक्ष के लिए जिले में खोने को कुछ नहीं है। मगर, भाजपा कहीं भी चूक करती है तो उसे नुकसान हो सकता है। भाजपा ने पांच विधायकों को दोबारा मैदान में उतारा है। इसके लिए टिकट न मिलने से नाराज दावेदारों को मनाना बड़ी चुनौती होगी।

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अतरौली: बाबूजी की अखरेगी कमी

अतरौली से वित्त राज्य मंत्री संदीप सिंह फिर से मैदान में हैं। वे युवा प्रत्याशी के रूप में हैं। इस बार उन्हें अपने दादा और पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के बिना चुनाव में उतरना पड़ा है। बाबूजी की सियासी पकड़ और समझ का कोई सानी नहीं था। उनके एक बार अतरौली में आने से पूरा माहौल बदल जाता था। 2017 में उन्होंने अपने नाती संदीप सिंह को इसी आशीर्वाद की बदौलत विधानसभा में पहुंचाया था। संदीप के सामने सबसे बड़ी समस्या क्षेत्र में समय न दे पाना है। राज्य मंत्री होने के चलते अधिकांश समय उनका लखनऊ व्यतीत हुआ है।

बरौली: सभी को मानना होगा

बरौली सीट से पूर्व कैबिनेट मंत्री ठा. जयवीर सिंह मैदान में हैं। इन्हें राजनीति का चाणक्य कहा जाता है, मगर उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। टिकट को लेकर सियासी प्रतिद्वंद्वी के खेमे में नाराजगी है। ऐसे में सभी को साधना बड़ी चुनौती होगी। वहीं, टिकट न मिलने से कई दावेदारों में नाराजगी है। उन्हें भी मानना पड़ेगा। संगठन में चल रही गुटबाजी भी एक बड़ी चुनौती है।

शहर: राजनीतिक अनुभव की कमी

शहर सीट पर भाजपा के लिए चुनौतियां बेशुमार हैं। शहर विधायक संजीव राजा की पत्नी मुक्ता राजा को पार्टी ने प्रत्याशी बनाया है। वह पार्टी में सक्रिय नहीं रहीं हैं। वहीं, टिकट न मिलने से तमाम दावेदारों में नाराजगी है। मुक्ता राजा के पास राजनीतिक अनुभव की भी कमी है। ऐसे में विधायक संजीव राजा को ही मोर्चा संभालना होगा। भाजपा चुनाव जीतने के लिए कौन सी रणनीति बनाती है यह देखना होगा?

कोल: मंझे खिलाडिय़ों से पड़ा है पाला

कोल विधानसभा सीट पर अनिल पाराशर को पार्टी ने दोबारा मौका दिया है। कार्यकर्ताओं की नाराजगी इनके लिए भी बड़ी समस्या है। अनिल पाराशर के सामने कांग्रेस से विवेक बंसल मैदान में हैं। वे राजनीति में मंझे खिलाड़ी हैं। सपा प्रत्याशी अच्जू इशहाकभी बड़ी चुनौती हैं।

छर्रा : करनी होगी नाराजगी दूर

छर्रा विधानसभा सीट पर ठा. रवेंद्र पाल सिंह के सामने सबसे बड़ी समस्या अधूरे विकास की रही है। यहां से कई दावेदार ताल भी ठोक रहे थे, उन्हें टिकट नहीं मिली। इससे भी दावेदारों में नाराजगी है। ठा. रवेंद्र पाल सिंह उन्हें मतदान तक कैसे मनाते हैं, यह देखने की बात होगी।

खैर और इगलास छुट्टा पशु हैं बड़ी समस्या

खैर सीट से अनूप वाल्मीकि ताल ठोक रहे हैं। यहां किसानों की नाराजगी बड़ी समस्या है। हालांकि, कृषि कानून वापस लिए जाने के बाद यह मुद्दा खत्म हो गया है। छुट्टा पशु किसानों की नाराजगी का बड़ा कारण हैं। इन पांच साल में छुट्टा पशुओं की समस्या का समाधान नहीं हो सका। वहीं, कार्यकर्ताओं में भी कुछ नाराजगी है, जिससे अनूप वाल्मीकि को पार पाना होगा। इगलास सीट पर भी खैर की तरह ही छुट्टा पशुओं को लेकर लोग परेशान हैं। फसलों को बर्बाद कर जाते हैं। 2019 के उप चुनाव में भाजपा ने किसानों को भरोसा दिलाया था कि वह इस समस्या का निस्तारण कराएंगे, मगर आज भी समस्या जस की तस बनी हुई है। इगलास से भाजपा से राजकुमार सहयोगी प्रत्याशी हैं।


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