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पत्नी और बेटा गिड़गिड़ाए फिर भी डाक्टर नहीं आए, एंबुलेंस में ही मरीज की मौत Aligarh news

दीनदयाल कोविड अस्पताल में बुधवार को एक मरीज ने एंबुलेंस में ही दम तोड़ दिया। जेडी कोविड हास्पिटल से रेफर यह मरीज दो घंटे तक तड़पता रहा। स्वजन डाक्टरों के सामने गिड़गिड़ाते रहे लेकिन उसे भर्ती नहीं किया गया।

By Anil KushwahaEdited By: Published: Wed, 05 May 2021 11:33 PM (IST)Updated: Wed, 05 May 2021 11:33 PM (IST)
पत्नी और बेटा गिड़गिड़ाए फिर भी डाक्टर नहीं आए, एंबुलेंस में ही मरीज की मौत Aligarh news
दीनदयाल कोविड अस्पताल में बुधवार को एक मरीज ने एंबुलेंस में ही दम तोड़ दिया।

अलीगढ़, जेएनएन । दीनदयाल कोविड अस्पताल में बुधवार को एक मरीज ने एंबुलेंस में ही दम तोड़ दिया। जेडी कोविड हास्पिटल से रेफर यह मरीज दो घंटे तक तड़पता रहा। स्वजन डाक्टरों के सामने गिड़गिड़ाते रहे, लेकिन उसे भर्ती नहीं किया गया। कभी बेड तो कभी आक्सीजन जैसी समस्या बताई जाती रहीं। हैरानी की बात ये है कि अस्पताल प्रबंधन ने मरीज की मृत्यु के लिए रेफर करने वाले अस्पताल को जिम्मेदार ठहराया है। अपनी कोई गलती नहीं मानी है।

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कुछ दिनों से तबियत खराब थी

तमोलीपाड़ा के 40 वर्षीय सुरेंद्र सिंह श्रीवास्तव की छर्रा अड्डे पर बैग की दुकान है। कुछ दिन से उनकी तबीयत खराब थी। मंगलवार सुबह सीटी स्कैन कराया तो फेंफड़ों में संक्रमण हो गया। इसके चलते उन्हें जीटी रोड स्थित जेडी हास्पिटल में भर्ती करा दिया गया था। बुधवार सुबह उनकी तबीयत अधिक बिगड़ गई। इससे रेफर कर दिया। दोपहर करीब डेढ़ बजे निजी एंबुलेंस से मरीज को दीनदयाल अस्पताल लेकर पहुंचे। यहां हेल्प डेस्क पर पहुंचकर मरीज को भर्ती करने की मांग की। आरोप है कि हेल्प डेस्क पर नियुक्त डाक्टर ने कहा कि बेड नहीं है। कहीं और ले जाओ। किसी तरह बेड होने की जानकारी मिली तो डाक्टर ने सीएमएस के आदेश का हवाला दिया। फिर कहा, आक्सीजन नहीं है, इसलिए भर्ती नहीं कर सकते। मरीज की पत्नी ज्योति, बेटा आयुष व अन्य स्वजन परेशान हो गए। जैसे-तैसे खुद ही आक्सीजन सिलिंडर की व्यवस्था की। डाक्टर को जाकर बताया कि सिलिंडर  की व्यवस्था हो गई है। तब भी डाक्टर ने मरीज को देखने या भर्ती करने की कोई कोशिश नहीं की। कहा, बिना फ्लो मीटर के सिङ्क्षलडर कैसे चलेगा? मां-बेटे डाक्टर के सामने गिड़गिड़ाए कि पहले भर्ती करके इलाज तो शुरू कर दीजिए, उनकी जान निकली जा रही है। अफसोस, डाक्टर पर कोई फर्क नहीं पड़ा। पिता की ङ्क्षजदगी बचाने के लिए बेटे आयुष को कुछ नहीं सूझा तो उसने पैसे निकालकर डाक्टर के सामने फेंक दिए और जोर से चिल्लाया कि मेरे पिता की जान बचा लो। मां भी बिलख-बिलख कर रोने लगी। समय (गोल्डन आवर) गुजरता जा रहा था, सुरेंद्र की सांसें उखड़ रही थीं। इस बीच डाक्टर की शिफ्ट खत्म हो गई और वह बिना बताए वहां से चला गया। काफी देर बाद आए दूसरे डाक्टर ने भी सुध नहीं ली। अंतत: करीब साढ़े तीन बजे सुरेंदर ने एंबूलेंस में ही तड़प-तड़पकर दम तोड़ दिया। इससे बौखला भड़क गए और हंगामा काटना शुरू कर दिया। सूचना र पहुंची पुलिस ने स्वजन को समझाकर घर भेजा।

 इनका कहना है

जेडी हास्पिटल ने बिना कंट्रोल रूम या हमसे कार्डिनेट किए ही गंभीर मरीज को रेफर कर दिया। ऐसा मरीज, जिसके बचने की उम्मीद नहीं थी। गंभीर मरीजों की भर्ती करने के लिए बेड, आक्सीजन, वेंटीलेटर की व्यवस्था होनी चाहिए। ऐसे ही मरीज भर्ती नहीं किया जा सकता। रही बात कि गंभीर मरीज को गोल्डन आवर में इलाज देने की तो वह एक्सीडेंट के मामले में लागू होता है। इस मरीज ने अस्पताल आने के कुछ मिनट बाद ही दम तोड़ दिया।

- डा. वीके  सिंह, सीएमएस 


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