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किसकी किस्मत का खुलेगा ताला, अलीगढ़ शहर व कोल में वोटों का धुव्रीकरण, छर्रा में मुद्दों से बनेे विधायक

ताला और तालीम के लिए प्रसिद्ध अलीगढ़ में सियासी जंग जीतने के लिए हर दल गुणा-गणित में जुटा है। इस गणित में जिले के सातों विधानसभा क्षेत्रों का मिजाज एक सा नहीं। कहीं मुद्दे नैया पार लगाते हैं तो कहीं वोटों का धुव्रीकरण हार-जीत का फैसला करता है।

By Sandeep Kumar SaxenaEdited By: Published: Tue, 11 Jan 2022 07:59 AM (IST)Updated: Tue, 11 Jan 2022 07:59 AM (IST)
किसकी किस्मत का खुलेगा ताला, अलीगढ़ शहर व कोल में वोटों का धुव्रीकरण, छर्रा में मुद्दों से बनेे विधायक
जिले के सातों विधानसभा क्षेत्रों का मिजाज एक सा नहीं।

अलीगढ़, मुकेश चतुर्वेदी। ताला और तालीम के लिए प्रसिद्ध अलीगढ़ में सियासी जंग जीतने के लिए हर दल गुणा-गणित में जुटा है। इस गणित में जिले के सातों विधानसभा क्षेत्रों का मिजाज एक सा नहीं। कहीं मुद्दे नैया पार लगाते हैं तो कहीं वोटों का धुव्रीकरण हार-जीत का फैसला करता है। अलीगढ़ शहर और कोल विधानसभा क्षेत्र के चुनाव की तस्वीर इसी तरह की रही हैं। दोनों विधानसभा क्षेत्र एक दूसरे से लगते हैं। शहर के हिस्से हैं। पता ही नहीं लगता कि कब दूसरी विधानसभा क्षेत्र की परिधी शुरू हो गई। एशिया में सबसे अधिक सोना जड़ित जामा मस्जिद और पांडवों के ठहराव स्थल अचलताल शहर के बीच में हैं तो दुनियाभर में अलीगढ़ को खास पहचान दिलाने वाली अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी(एएमयू) भी शहर का अहम का हिस्सा है। एएमयू की छात्र राजनीति से भी बड़े-बड़े नेता निकले हैं। यूनिवर्सिटी के आसपास के ढाबों पर होने वाली चाया की चर्चा भी अहम होती है। शहर व कोल सीट पर मतदान के दौरान मुद्दे भी हवा हो जाते हैं। कोल विधानसभा क्षेत्र से सटे छर्रा विधानसभा क्षेत्र में जरूर मुद्देे हावी रहे हैं। तीनों ही विधानसभा क्षेत्रों ने लगभग सभी दलों के प्रत्याशियों को विधानसभा जाने का मौका दिया। इस बार भी चुनाव का बिगुल बजते ही जोड़तोड़ के सहारे किस्मत का ताला खोलने की कसरत भी शुरू हो गई है।

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समस्‍याओं का समाधान अभी बाकी

स्मार्ट सिटी योजना के तहत शहर में कई काम हुए हैं। लेकिन बहुत सी समस्याएं ऐसी हैं जिनका समाधान होने अभी बाकी है। अलीगढ़ शहर को ड्रेनेज सिस्टम के अभाव में बरसात के समय जलभराव का सामना करना पड़ता है तो कोल विधानसभा क्षेत्र में शामिल किए गए पंद्रह गांवों के विकास की गति को तेज करने की जरूरत है। छर्रा विधानसभा क्षेत्र में भी काली नदी पर पुल निर्माण का काम शुरू होने के साथ सड़कों का निर्माण हुआ है। इससे पहले की सरकारों में भी काम तो हुए, लेकिन समग्र विकास की योजना की जरूरत इन क्षेत्रों के मतदाताओं को है। छर्रा को तहसील मुख्यालय बनाने मांग भी जोर पकड़ती जा रही है। इससे कस्बे के विनय यादव और कालीचरन सहमत नजर आए। बोले, तहसील का दर्जा मिलने से कोल और अतरौली तहसील तक भागने की दिक्कते दूर होगी। वहीं, कोल विधानसभा क्षेत्र के नगला तिकना के अंकुर पचौरी का मानना था कि चुनाव विकास के मुद्दों पर ही लड़ा जाना चाहिए। जोड़तोड़ के गणित से किसी का भला कहां हो पाता है। अलीगढ़ शहर विधानसभा क्षेत्र स्थित अचल महादेव मंदिर पर तो प्रत्याशी को लेकर बहस चल रही थी। इसमें शामिल राजीव कुमार, धर्मेंद्र कुमार, मुरारी लाल शर्मा पुजारी, संजय गुप्ता, योगेंद्र चौरसिया शहर को अपराधियों से मुक्त और विकास कराने वाले प्रत्याशी को पसंद करते हैं। एडीए निवासी रामकुमार का कहना था कि राष्ट्रवाद से बड़ा मुद्दा कुछ और नहीं सकता, लेकिन रामबिहार कालोनी के कुलदीप चौहान और कृष्ण विहार के मुकेश वर्मा की राय इनसे अलग थी। उनका कहना था कि सड़क, पानी, बिजली और सफाई अहम है। विकास की नई योजनाएं हर साल मिलें। इसके लिए अच्छे प्रत्याशी की ही जरूरत है।

मतदाताओं पर नजर

विधानसभा क्षेत्र, कुल मतदाता, पुरुष, महिला

छर्रा, 386791,206187,180580

कोल, 404737,214345, 190365

अलीगढ़, 395519, 201319, 185167

स्वतंत्रता आंदोलन के लिए नहीं की थी शादी

वर्तमान में छर्रा विधान सभा दो पंचवर्षीय से पूर्व गंगीरी विधान सभा के नाम से थी। देश के स्वतंत्रता आंदोलन में क्षेत्र के काफी संख्या में लोगों ने भाग लिया है। वहीं ग्राम रुखाला निवासी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बिहारी लाल ने स्वतंत्रता आंदोलन में महात्मा गांधी के साथ बढ़ चढ़ कर भाग लिया। इसके लिए उन्होंने अपनी शादी भी नहीं की थी। 1957 में गंगीरी विधानसभा क्षेत्र बना। यह 2007 तक रहा। इसके बाद 2012 में छर्रा विधानसभा क्षेत्र बना। इसके पहले चुनाव में सपा को जीत हासिल हुई, लेकिन दूसरे यानी 2017 के चुनाव में सीट भाजपा की झोली में चली गई। 1957 से अब तक इस क्षेत्र से भाजपा को चार, सपा को दो, जेडी को एक, कांग्रेस को चार, जेएनपी को दो, बीकेडी, एसएसपी और पीएसडी को एक-एक बार जीत हासिल हुई।

हर दल को मिला मौका

आजादी के बाद पहली बार हुए चुनाव में जिले में पांच विधानसभा क्षेत्र थे। कोल इन्हीं में शामिल था। 1952 से अब तक भाजपा को पांच, सपा को एक, बीएसपी को दो, कांग्रेस को छह, बीकेडी, बीजेएस, आरईपी, जेएस, जेएनपी को एक-एक बार जीत हासिल हुई। इनमें सबसे प्रमुख नाम मोहनलाल गौतम शामिल है, जो कांग्रेस से विधायक रहे। इनके नाम से महिला अस्पताल है। इनकी बेटी शीला गौतम चार बार भाजपा से सांसद रहीं।


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