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कब अपने पैरों पर खड़ा होगा सेहत महकमा, जानिए क्‍या है कमी Aligarh news

कोरोना आपदा के समय स्वास्थ्य विभाग को अग्नि परीक्षा के दौर से गुजरना पड़ा। इसे पार करते समय सरकारी तंत्र के भी हाथ झुलस गए। जब तक हालात संभले कोरोना ने दानव की तरह सैंकड़ों जान निगल लीं। ऐसी ही स्थिति शराब कांड में देखने को मिल रही है।

By Anil KushwahaEdited By: Published: Tue, 01 Jun 2021 10:25 AM (IST)Updated: Tue, 01 Jun 2021 10:45 AM (IST)
कब अपने पैरों पर खड़ा होगा सेहत महकमा, जानिए क्‍या है कमी Aligarh news
कोरोना से बचाव के लिए युद्ध स्तर पर टीकाकरण अभियान चलाया जा रहा है।

अलीगढ़, जेएनएन । कोरोना आपदा के समय स्वास्थ्य विभाग को अग्नि परीक्षा के दौर से गुजरना पड़ा। इसे पार करते समय सरकारी तंत्र के भी हाथ झुलस गए। जब तक हालात संभले, कोरोना ने दानव की तरह सैंकड़ों जान निगल लीं। ऐसी ही स्थिति शराब कांड में देखने को मिल रही है। अधिकतर लोगों को जिला अस्पताल की इमरजेंसी में इलाज की बजाय, मेडिकल कालेज रेफर करने की संस्तुति ज्यादा मिली। दरअसल, सच्चाई ये हैं? कि ऐसी आपदा से निपटने की न तो सरकारी तंत्र की कभी तैयारी रही हैं? और न कभी इच्छाशक्ति ही। जब कभी ऐसी आपदा आईं, स्वास्थ्य विभाग पहले पायदान पर ही हार गया। आपाधापी में जैसे-तैसे बंदोबस्त किए जाते हैं। यदि ऐसा नहीं होता तो तमाम लोगों की जिंदगी तहसील स्तर के अस्पताल नहीं तो जिला मुख्यालय पर जरूर बच जाती। आखिर, स्वास्थ्य विभाग कब तक लाशों की गिनती करता रहेगा। कब अपने पैरों पर खड़ा होगा?

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एएनएम की लापरवाही थी या साजिश?  

फर्जी टीकाकरण ने सबकाेे चिंता में डाल दिया 

पिछले सप्ताह एक खबर ने हर किसी को चौंका दिया। चिंता ही नहीं, लोगों में गुस्सा भी था। खबर थी? कि जमालपुर पीएचसी पर स्टाफ ने लोगों को फर्जी टीकाकरण कर दिया। स्टाफ ने वैक्सीन तो सिरिंज में भरी, लेकिन लाभार्थी को केवल सुईं चुभोकर उसे कचरे में फेंक दिया। यह कम हैरानी की बात नहीं थी, क्योंकि एक तरफ जहां कोविड अस्पतालों में डाक्टर व अन्य कर्मचारी अपनी जान जोखिम में डालकर मरीजों की जिंदगी बचाने में लगे हुए हैं, वहीं जमालपुर पीएचसी के स्टाफ ने लोगों की जिंदगी स्वयं ही खतरे में डाल दी। आरोपित एएनएम व अन्य स्टाफ को सख्त सजा तो मिली, लेकिन लोगों को इस सवाल का जवाब नहीं मिला कि लाभार्थियों को वैक्सीन न लगाने का जुर्म आखिर क्यों किया गया? इसके पीछे स्टाफ की मंशा क्या थी? ये कोई सियासी षड़यंत्र था या वैक्सीन को लेकर मन में कोई भ्रांति। जवाब मिलना ही चाहिए।

क्या इनकी जिंदगी की कीमत नहीं

कोविड-19 वायरस के संक्रमण की चेन तोड़ने के लिए सरकार ने सैंपलिंग पर खासा जोर दिया। इसमें लेब टेक्नीशियन नहीं ही नहीं, आशा, एएनएम, बेसिक हेल्थ वर्कर्स आदि कर्मी भी लगा दिए गए। इनसे सैंपलिंग कराने की पहली शर्त ये थी? कि सभी को प्रशिक्षण दिया जाए। सैंपलिंग के दौरान इन्हें खुद भी संक्रमण से बचाव के लिए मास्क, ग्लव्स, हेड कवर आदि उपलब्ध कराए जाएं। चिंता की बात ये हैं? कि शहर से लेकर देहात की गलियों में सैंपलिंग कर रही तमाम आशा कर्मियों को मास्क व ग्लव्स तक नहीं दिए गए हैं। किसी के पास मास्क हैं? तो किसी के पास गलव्स। हेड कवर या शू कवर तो किसी के पास नहीं। ज्यादातर को सैंपलिंग का सही तरीका तक नहीं पता। ऐसे में कल को ये खुद संक्रमण की चपेट में आ जाएं तो बड़ी बात नहीं। जबकि, सरकार ने पर्याप्त मास्क व ग्लव्स मुहैया कराएं हैं।

भयंकर गर्मी में बुजुर्ग कैसे कराएं टीकाकरण

कोरोना से बचाव के लिए युद्ध स्तर पर टीकाकरण अभियान चलाया जा रहा है। इसमें 18 से 44 वर्ष की आयु तक के लाभार्थी तो खूब उत्साह दिखा रहे हैं, लेकिन बुजुर्ग यानि सीनियर सिटिजन पिछड़ गए हैं। इसकी कई वजह हैं? एक तो वृद्धावस्था और दूसरी वे कई बीमारियों से घिरे रहते हैं। ऐसे में चिलचिलाती धूप व भयंकर गर्मी में टीकाकरण केंद्रों तक पहुंचना उनके लिए आसान नहीं। काफी बुुजुर्गों को टीकाकरण के लिए काफी दूर जाना होता है, ऐसे में वे हिम्मत हार रहे हैं। वहीं, टीकाकरण केंद्रों पर बुजुर्ग लाभार्थियों के बैठने तक की व्यवस्था नहीं। प्यास लगने पर शीतल जल की व्यवस्था भी नहीं की गई है। यही फैक्टर बुजुर्गों के कम टीकाकरण के लिए जिम्मेदार हैं। बुजुर्गों का कहना हैं? कि यदि सरकार कालोनियां में आकर टीकाकरण की सुविधा उपलब्ध कराए तो अभियान को और गति मिलेगी। बुजुर्गों की टीकाकरण दर में भी सुधार आएगा।


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