The pain of Karban : जब पशु-पक्षी मेरे नीर से अपनी प्यास बुझाते थे तो बहुत सुकून मिलता था, आज मैं बेहाल हूं, जानिए पूरा मामला Aligarh news
यमुना की सहायक नदी के रुप में जानी जाले वाली मैं करबन कभी खेतों में हरा सोना उगाकर खुशहाली बखेरती थी। जब पशु-पक्षी मेरे नीर से अपनी प्यास बुझाते थे तो बहुत सुकून महसूस करती थी। कभी किसी के लिए बाढ़ बनकर मुसीबत नहीं बनी।
योगेश कौशिक, इगलास : यमुना की सहायक नदी के रुप में जानी जाले वाली मैं करबन कभी खेतों में हरा सोना उगाकर खुशहाली बखेरती थी। जब पशु-पक्षी मेरे नीर से अपनी प्यास बुझाते थे तो बहुत सुकून महसूस करती थी। कभी किसी के लिए बाढ़ बनकर मुसीबत नहीं बनी। पशु-पक्षियों के झुंड मेरे घाट पर कलवर करते थे वह दृश्य बड़ा आनंदित हुआ करता था। आज दृश्य कुछ और हो गया है, आज मेरी दुर्दशा कोई देखने वाला नहीं है। आज में कराह रही हूं। सांसें अटकी हैं। अकाल मौत की तरफ बढ़ रही हूं। कोई सुध नहीं ले रहा। कभी फसलों के लिए संजीवनी बनी मैं आज इतिहास के पन्नों में सिमटती जा रही हूं। कभी दूसरों की प्यास बुझाती थी आज खुद प्यासी हूं। सूखे की काली छाया ने मुझे बहुत जख्म दिए हैं। कभी भागीरथ अपने पूर्वजों के उद्धार के लिए गंगा को धरती पर लाए थे। आज मुझे अपने उद्धार के लिए भागीरथ की तलाश है।
यमुना की है सहायक नदी
करबन नदी बुलंदशहर के खुर्जा क्षेत्र से निकल कर अलीगढ़ के गभाना से खैर क्षेत्र में प्रवेश करती है। इगलास होते हुए हाथरस से निकल कर आगरा के एत्मादपुर के समीप युमना में विलय हो जाती है। इस लिए इसे यमुना की सहायक नदी कहा जाता है। कभी इन क्षेत्रों में हजारों एकड़ भूमि को सींचती थी लेकिन आज सूखी पड़ी है। सिर्फ बारिश के समय ही नदी के आंचल में पानी की धारा नजर आती है। अलीगढ़ जिले में ही नदी की लंबाई लगभग 70 किमी. है। पहले बहती हुई नदी की धारा क्षेत्र के वाटर लेविल को रिचार्ज करने का काम करती थी, लेकिन आज इसके आस-पास का क्षेत्र डार्क जॉन घोषित किया जा चुका है। नदी में जल न होने के कारण क्षेत्र को डार्क जॉन से नहीं उवार पा रही। नदी के संरक्षण के लिए लोगों को आगे आना होगा।
दूषित हुआ जल
करबन नदी में काफी जगहों पर खोले गए नाले नदी को दूषित कर रहे हैं। इन नालों के कारण कुछ स्थानों पर नाले के रु प में नजर आती है। नदी में जलीय पौधों की भरमार है। कभी लोगों के साथ जीव-जंतुओं की प्रयास इस नदी के जल से बुझती थी। अब इसका पानी इतना दूषित है कि इसमें रहने वाले जलचर भी विलुप्त हो चले हैं। इससे आसपास के जलस्रोत भी दूषित होने लगे हैं।
सरकारी सिस्टम जिम्मेदार
करबन नदी अलीगढ़ जिले की सबसे लंबी नदी है। इगलास, खैर, सादाबाद, चंडौस आदि कस्बों सहित काफी संख्या में गांव इस नदी के किनारे बसे हुए हैं। सरकारी सिस्टम ने इस नदी की कद्र नहीं जानी और आज नदी अपना अस्तित्व खोती जा रही है। कहीं-कहीं तो नदी काफी सकरी हो गई है। गांव तलेसरा के पास सायफन बना हुआ है। यहां नदी के ऊपर से गंग नहर बहती है। नहर से नदी में पानी छोड़े जाने की व्यवस्था है लेकिन पानी छोड़ा नहीं जाता है।
पब्लिक बोल...
पहले नदी में स्वच्छ पानी 12 माह बहता था। नहाने व अन्य घरेलू कार्यों के लिए लोग नदी के पानी का इस्तेमाल करते थे। बरसात के दिनों में तो नदी उफान पर होती थी और खेतों में भी पानी भर जाता था।
- कुमरपाल, हसनगढ़
20 साल पहले नदी साफ व स्वच्छ थी। अब तो नदी में जलकुंभी, पटेर आदि जलीय पौधे नजर आते हैं। सरकारी मशीनरी की उदासीनता के चलते नदी अपना अस्तित्व खोती जा रही है।
- विनोद सिंह, इगलास
पहले करबन नदी खेतों की सिंचाई का प्रमुख साधन थी। अब तो अन्य नदियों के तरह इस नदी को अस्तित्व भी खतरे में है। सिर्फ बरसात के दिनों में पानी नजर आता है।
- पूरन सिंह, हसनगढ़
जब हम छोटे थे तो करबन नदी में नहाने जाते थे। अब नदी में पानी नहीं है। सफाई न होने से गंदगी भी रहती है। नदी में पानी न होने से क्षेत्र के भूमिगत जलश्रोत भी घटते जा रहे हैं।
- कन्हैयालाल, रफायतपुर