अतीत के आइने से : जब भाजपा नेता दिलेर ने जमानत राशि कांग्रेस प्रत्याशी से जमा कराई, उन्हीं की गाड़ी से प्रचार किया और हरा दिया
किशनलाल दिलेर के साथ चुनाव प्रचार की कमान संभाल राजनीति के जानकार योगेश शर्मा बताते हैं कि जब दिलेर नामांकन दाखिल करने गए थे ताे उनके पास सरकारी शुल्क जमा करने के लिए रुपये नहीं थे। उन्हाेंने कांग्रेस प्रत्याशी पूरन चंद्र से सवा सौ रुपये लेकर शुल्क जमा किया था।
संतोष शर्मा, अलीगढ़ । वक्त बदला तो सियासत भी रंग बदलने लगी। एक वो दौर था जब प्रतिद्वंदता तो थी, मगर रंजिश नहीं थी। एक ये दौर है, जहां सियासत भी साजिश की बिसात पर की जाती है। विरोधी नेताओं को सबक सिखाने की नीति ने सियासत का परिदृश्य ही बदल दिया है।
1980 में विधानसभा चुनाव की कहानी
कभी दंगों के लिए पहचाने जाने वाले अलीगढ़ में चुनाव भी उसी तनावपूर्ण माहौल में हुआ करते थे। व्यवस्था बनाने में प्रशासन के पसीने छूट जाते थे। लेकिन, इसके उलट कोल विधानसभा क्षेत्र में चुनाव प्रेम और सौहार्द की मिसाल हुआ करते थे। बात 1980 में हुए विधानसभा चुनाव की है। भारतीय जनता पार्टी का गठन होेने के बाद कोल सीट पर पार्टी ने पहली बार किशनलाल दिलेर को उतारा था। उनकी टक्कर कांग्रेस प्रत्याशी पूरनचंद्र से थी। दोनों प्रत्याशियों ने एक साथ पर्चा दाखिल किया। जिला मुख्यालय से साथ ही लौटे। प्रचार के दौरान एक-दूसरे पर छींटाकशी नहीं की। इनके समर्थकों में भी झगड़े नहीं हुए। खाना साथ ही खाते थे।
कांग्रेस की गाड़ी से प्रचार
किशनलाल दिलेर के साथ चुनाव प्रचार की कमान संभाल राजनीति के जानकार योगेश शर्मा बताते हैं कि जब दिलेर नामांकन दाखिल करने गए थे ताे उनके पास सरकारी शुल्क जमा करने के लिए रुपये नहीं थे। उन्हाेंने कांग्रेस प्रत्याशी पूरन चंद्र से सवा सौ रुपये लेकर शुल्क जमा किया था। चुनाव प्रचार में दिलेर उनकी जीप का भी इस्तेमाल करते थे। बताया, जब हम प्रचार के लिए गांव में जाते थे तो रात होने पर पूरनचंद्र की जीप में बैठकर ही घर लौटते थे। कई बार तो ऐसा हुआ कि भूख लगने पर उनके समर्थकों के साथ ही खाना खा लिया। उस समय चुनाव को लेकर प्रत्याशी मानसिक तनाव में नहीं रहते थे। बस मतदाताओं पर भरोसा होता था। उस चुनाव में दिलेर हार गए थे। इसके बाद वह 1985 में विधानसभा चुनाव लड़े और जीते भी। उधर, शहर सीट पर 1980 का चुनाव तनावपूर्ण माहौल में हुआ था। इसी माहौल में सपा के अब्दुल खालिक चुनाव लड़े और जीते।
जीप से होता था प्रचार
योगेश बताते हैं कि उस दौर में प्रचार-प्रसार के लिए वाहनों की काफिले नहीं होते थे। खुली जीप थीं, जिन पर खड़े होकर प्रत्याशी जनता से रूबरू होते थे। दिलेर के प्रचार में दो-तीन जीप ही थीं। इन्हीं से गांव-गांव जाते और चौपाल लगाकर वोट मांगते। दूसरे दलों के प्रत्याशी या समर्थकों के साथ कभी विवाद नहीं हुआ। जलाली में प्रचार के दौरान पूरनचंद्र भी पहुंच गए। दिलेर से उन्होंने पूछा, खाना खाया कि नहीं, नाश्ता कर लो। दिलेर बोले, तुम अपना करो, हम अपना करते हैं।