स्मार्ट सिटी अलीगढ़ में धन की बर्बादी ठीक नहीं
नगर निगम और एडीए वो विभाग हैं जो शहर की दशा और दिशा तय करते हैँ। शहर के सभी विकास कार्य इन्हीं विभागों से निकले हैं। सरकार से बजट तो इन्हें मिलता ही खुद के इतने इनकम के स्रोत हैं कि बजट की कमी ही नहीं रहती।
अलीगढ़,संतोष शर्मा। नगर निगम और एडीए वो विभाग हैं जो शहर की दशा और दिशा तय करते हैँ। शहर के सभी विकास कार्य इन्हीं विभागों से निकले हैं। सरकार से बजट तो इन्हें मिलता ही खुद के इतने इनकम के स्रोत हैं कि बजट की कमी ही नहीं रहती। स्मार्ट सिटी में जब से शहर शामिल हुआ है नगर निगम का खजाना तो भरा ही रहता है। अब तो अधिकांश काम स्मार्ट सिटी के बजट से ही हो रहे हैं। बजट से लवालब इन दोनों विभागों की जिम्मेदारी किसी एक के हाथ में आए जो दूसरों की नजर तो टेडी होंगी ही। पिछले कुछ दिनों से ऐसा हो भी रहा है। ऐसी चीजें सार्वजनिक नहीं होतीं लेकिन हावभाव सब बयां कर देते हैं। गड्ढे में एक आदमी के गिरने से हुई मौत के मामले में दर्ज हुए मकद्दमे के बाद तो इन विभागों की जिम्मेदारी संभाल रहे साहब के भी कान खड़े हो गए हैं।
अलीगढ़ का क्या हाल है
अगर कोई आपसे फोन पर पूछता हैं कि अलीगढ़ के क्या हाल हैं? आपका जवाब यही होगा कि सेंटर प्वाइंट अभी आबाद नहीं हुआ है। ड्रेनेज सिस्टम बदहाल है। जरा सी बारिश में शहर पानी-पानी हो जाता है। अतिक्रमण के मकड़जाल से शहर मुक्त नहीं हुआ है। आजकल ऐसे सवाल नगर निगम के एक पूर्व मुखिया पूछ रहे हैं। ये वो मुखिया हैं जिनके बारे में लाेगों कि अक्सर शिकायत रहती थी कि ये फोन ही नहीं उठाते हैं। अब उनका शहर के प्रति चिंता का भाव क्यों उमड़ रहा हैं ये तो वो ही जानें। वैसे, निगम में बिताए कार्यकाल को अफसर भूला नहीं पाते। जब से स्मार्ट सिटी का खाता खुला हैं आकर्षण और बढ़ा है। विदाई लेना ही नहीं चाहते। इस लिए विकास के वायदे भी अजीब किए जाते हैँ। चाहें वो नहर की तरह नाले में उतर कर सफाई करने की ही बात क्यों न हो?
ये बर्बादी ठीक नहीं
स्मार्ट सिटी के पैसे का बंदर बाट हो रहा है, ये आरोप तो लंबे समय लगते आ रहे हैं। इसमें सही क्या है गलत क्या है ये तो अफसर ही बता सकते हैं। लेकिन कुछ काम ऐसे होते हैं जिन्हें देखकर लोग समझ जाते हैं कि निगम में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा। आपको याद होगा लगभग डेढ़ माह पहले केला नगर चौराहे से रामघाट रोड पुरानी चुंगी तक सड़क का निर्माण हुआ था। काली हुई सड़क पर सफेद पटटी से यह रोड दमक गया था। वाहन भी खूब फर्राटा भर रहे थे। डेढ़ माह बाद ही इस सड़क में गड्ढे बन गए हैं । जिनमें भ्रष्टाचार की बू आ रही है। ये वो सड़क है जिस पर जिले व मंडल के अफसरों का आना जाना रहता है। किस की दया से ये घटिया सड़क बन गई। इसके लिए जिम्मेदार कौन है? इसका जवाब तो जिम्मेदारों को देना ही चाहिए।
नववर्ष में दें पटकनी
2020 हमेशा के लिए कोरोना वायरस के लिए जाना जाएगा। इतिहास के पन्नों में ऐसा दर्ज हुआ है कि इस कभी भुलाया नहीं जा सकता। इस अदृश्य बीमारी के प्रति आमजन ने जिस एकजुटता और सजगता का परिचय दिया वो भी अनुकरणीय है। नए साल का आगाज भी इस महामारी के साथ हुआ है। लेकिन, इसे मात देने के लिए वैज्ञानिकों ने जो तैयारी की है उससे इसका खात्मा भी तय है। वैक्सीन लगभग तैयार है। अपने जिले में भी पांच जनवरी से ट्रायल होने जा रहा है। नव वर्ष की उमंग के साथ हर किसी को प्रण भी लेना होगा कि इस कोरोना को मात देनी ही है। ये तभी संभव है जब मास्क का इस्तेमाल करें और शारीरिक दूरी बनाए रखें। बीमारी के सबसे खराब समय में जिस तरह सुरक्षा की चेन बनाई थी उसे फिर से बनाएं। ये हम कर भी सकते हैं।