Treatment of Corena patients: एक ही दवा और उपचार,फिर भी अस्पतालों के खर्च में अंतर Aligarh News
यदि कोई गंभीर संक्रमित मरीज भर्ती हो जाए तो उसकी जेब ढीली होनी तय है। यहां साधारण बेड का आठ से 10 हजार आक्सीजन बेड 13-20 हजार व वेंटीलेटर का 20-25 हजार रुपये तक वसूला जा रहा है। ऐसे हालात में आम आदमी अपने मरीज का इलाज कहां कराएं?
अलीगढ़, जेएनएन। सभी को मालूम है? कि कोरोना वायरस का खत्म करने वाली कोई नई दवा नहीं बनी है। सरकारी कोविड अस्पताल हो या फिर प्राइवेट, दोनों में मरीज को पहले आइवरमेक्टिन, डाक्सीसाइक्लीन, टेमीफ्लू, न्यूमोस्लाइड, विटामिन-सी,बी, डी व मल्टीविटामिन, एंटीबायोटिक, एंटी एलर्जिक समेत अन्य जीवनरक्षक दवा खिलाई जाती हैं। गंभीर मरीज को रेमडेसिविर इंजेक्शन व अन्य दूसरी दवा दी जाती है। अंत में आक्सीजन, वेंटीलेटर, डायलिसिस पर लिया जाता है। एक अनुमान के मुताबिक सरकारी कोविड अस्पताल में एक मरीज पर बामुश्किल 80 से एक लाख रुपये का खर्च आ रहा है, लेकिन निजी कोविड अस्पतालों में यह तीन से पांच लाख रुपये तक पहुंच रहा है। यह खर्चा कोविड अस्पतालों के लिए तय किए पैकेज से भी कई गुना अधिक है। सवाल ये है? कि दवा व उपचार की विधि तकरीबन एक जैसी ही है? तो सरकारी व निजी कोविड अस्पतालों के खर्च में इंतना अंतर क्यों? यदि मरीजों से अवैध वसूली हो रही है? तो सरकारी तंत्र ने चुप्पी क्यों साध रखी है?
आम आदमी की पहुंच से बाहर हुआ इलाज
कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या बढऩे से सरकारी अस्पतालों में बेड, आक्सीजन, आइसीयू व वेंटीलेटर के लिए मारामारी मची हुई है। वर्तमान में वीआइपी व रसूख वाले मरीजों को ही यहां इलाज में प्राथमिकता मिल रही है। रह गए प्राइवेट कोविड अस्पताल। इन अस्पतालों में इलाज कराना आम आदमी की पहुंच से बाहर है। इसकी वजह है महंगाा इलाज खर्च। सरकार ने भले ही कोविड अस्पतालों के लिए इलाज खर्च की सीमा तय कर दी हो, लेकिन संचालकों ने मनमाने ढंग से बेड, आक्सीजन, वेंटीलेटर व अन्य सेवाओं के लिए शुल्क तय कर रखे हैं। कई अस्पतालों ने अपनी ही रेट लिस्ट चस्पा कर दी है। इसके अनुसार यदि कोई गंभीर संक्रमित मरीज भर्ती हो जाए तो उसकी जेब ढीली होनी तय है। यहां साधारण बेड का आठ से 10 हजार, आक्सीजन बेड 13-20 हजार व वेंटीलेटर का 20-25 हजार रुपये तक वसूला जा रहा है। ऐसे हालात में आम आदमी अपने मरीज का इलाज कहां कराएं?
शासन स्तर से तय खर्च
बी श्रेणी के जिलों (अलीगढ़ शामिल) में आक्सीजन बेड पर भर्ती मरीज के इलाज का दैनिक खर्च 64 सौ रुपये, आइसीयू (बिना वेंटीलेटर) में भर्ती मरीज के इलाज का दैनिक 10 हजार 400 रुपये, आइसीयू (वेंटीलेटर युक्त) में भर्ती मरीज के इलाज का दैनिक खर्च 12 रुपये तय किया है। दैनिक खर्च में भोजन, नर्सिंग केयर, मानीटङ्क्षरग, डाक्टर विजिट, जांंच, पीपीई किट आदि सेवाएं शामिल हैं। यह पैकेज भी निजी अस्पतालों के लिए है, जिनके अपने कई खर्चे होते हैं। जबकि, सरकारी कोविड अस्पताल में मरीज पर होने वाला खर्च औसतन पांच से 10 हजार रुपये प्रतिदिन आता है। इस तरह निजी अस्पतालों व सरकारी अस्पतालों के खर्च में काफी बड़ा अंतर है।
खर्च पर अंकुश नहीं
प्रशासन ने प्रत्येक कोविड अस्पताल की निगरानी के लिए एक-एक नोडल अधिकारी नियुक्त किया है। नोडल अधिकारियों की अब तक की रिपोर्ट फील गुड वाली हैं। जबकि, यहां आम आदमी के लिए इलाज कराना नामुमकिन हो गया है। लोगों का कहना है कि कोरोना का इलाज काफी महंगा है। कई अस्पताल तो मरीज को भर्ती करते वक्त ही एक से डेढ़ लाख रुपये एडवांस राशि जमा करा लेते हैं।
एक्सपर्ट की राय
पूर्व संयुक्त निदेशक डा. राजेंद्र वाष्र्णेय का कहना है कि किसी भी चीज की मांग बढऩे पर उसकी कीमत में वृद्धि हो जाती है। कोरोना के गंभीर मरीजों की संख्या एक साथ बढ़ी। हर किसी को आक्सीजन बेड, वेंटीलेटर और आइसीयू की जरूरत पड़ रही है। सभी नहीं, लेकिन कुछ लोग ऐसी परिस्थिति को खूब लाभ उठा रहे हैं। हालांकि, नई बीमारी होने की वजह से अस्पतालों को नया सेटअप (नए वार्ड, आक्सीजन बेड, आइसीयू कक्ष आदि) तैेयार करना पड़ा है। नई महंगी मशीनें (वेंटीलेटर आदि) खरीदनी पड़ी है। इससे अस्पतालों का प्रारंभिक खर्चा बढ़ गया है। वहीं, ट्रेंट स्टाफ (वेंटीलेटर टेक्नीशियन, एलटी आदि) का खर्च बढ़ा है। यदि बीमारी पुरानी होती तो यह खर्च कम हो जाता। इससे मरीजों को लाभ मिलता। समस्या ये है कि वर्तमान में आम आदमी को परेशानी उठानी पड़ रही है।
निजी कोविड अस्पतालों के संचालकों को स्वास्थ्य विभाग व प्रशासन की ओर से लगातार दिशा-निर्देश दिए जा रहे हैं कि वे इलाज का खर्च सीमित रखें। शासन की गाइडलाइन के अनुसार ही मरीजों से राशि ली जाए। यह समय कमाई का नहीं, बल्कि मानवता की सेवा का है। सभी का उद्देश्य यही रहना चाहिए कि हमारे जरिए अधिक से अधिक मरीजों की जिंदगी बचें।
- डा. बीपीएस कल्याणी, सीएमओ।