ये देखने में भले ही अक्षम हैं, पर अपने हौसलों व प्रतिभा से दुनिया को आइना दिखाने में सक्षम हैं
ये देखने में तो अक्षम हैं मगर, अपने हौसलों व प्रतिभा से दुनिया को आइना दिखाने में सक्षम हैं। शायद इसीलिए इनको विशेष की श्रेणी में रखा जाता है।
अलीगढ़ (गौरव दुबे)। ये देखने में तो अक्षम हैं मगर, अपने हौसलों व प्रतिभा से दुनिया को आइना दिखाने में सक्षम हैं। शायद इसीलिए इनको विशेष की श्रेणी में रखा जाता है। यहां बात हो रही है दिव्यांग बच्चों की। देखने व चलने में असमर्थ होने के बावजूद जिले से लेकर प्रदेश व राष्ट्रस्तर तक शहर का नाम चमकाने में सामान्य बच्चों से कहीं पीछे नहीं हैं। चाहें खेल का क्षेत्र हो या कला का दिव्यांगजनों ने अपनी प्रतिभा का लोहा हर जगह मनवाया है। एएमयू का अहमदी स्कूल फॉर विज्युअली चैलेंज्ड हो या बेसिक शिक्षा परिषद का स्कूल हो। दिव्यांग बच्चों की अलौकिक प्रतिभा ही उनके जीवन की ढाल बनती है। यह बात जिले के दिव्यांग बच्चों ने सच भी साबित कर दिखाई है। क्रिकेट, एथलेटिक्स, संगीत में दिव्यांग बच्चों ने स्वर्ण पदक हासिल कर अपनी प्रतिभा का डंका बजाया है। ये विशेष बच्चे साबित करते हैं कि उड़ान पंखों से नहीं मजबूत हौसलों से होती है।
पीटी ऊषा को दिमाग में रखकर दौडऩा शुरू किया
अहमदी स्कूल फॉर विज्युअली चैलेंज्ड की कक्षा आठ की छात्रा आरती नर्सरी से यहीं पढ़ रही है। ये सामान्य बच्चों की तरह पूरी तरह देख पाने में अक्षम हैं। मगर इनकी निगाहें एथलेटिक्स प्रतियोगिता में स्वर्ण व प्रथम स्थान पर रहती हैं। आरती बताती हैं कि, पीटी ऊषा के बारे में सुना था कि वो इतनी तेज दौड़ती थीं कि उनको भारत की उडऩ परी कहा जाता था। यह बात दिमाग में रखकर दौडऩे की कोशिश की। शुरू में थोड़ी दिक्कत हुई मगर, स्कूल के स्पोट्र्स प्रशिक्षक शमशाद निसार आजमी ने मदद की। धीरें-धीरे सही दिशा व तकनीकी से दौडऩा आया। बताया कि, 2014 में अजमेर, राजस्थान में हुई दिव्यांगजनों की राष्ट्रस्तरीय एथलेटिक्स मीट में लंबी कूद में प्रथम स्थान हासिल किया। इसी प्रतियोगिता में 100 मीटर दौड़ में द्वितीय स्थान व 200 मीटर दौड़ में तृतीय स्थान हासिल कर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। 2015 में एएमयू में हुई पांच किलोमीटर दूरी की सद्भावना मैराथन में 10वां स्थान हासिल करते हुए टॉप-10 में जगह बनाई। इसके बाद एएमयू में हुई 2017 की पांच किलो मीटर मैराथन में पहला स्थान हासिल कर अपना वर्चस्व दिखाया। 2015 में एएमयू में हुई रस्साकसी प्रतियोगिता में भी दूसरा स्थान हासिल किया।
क्रिकेट की बॉल से की दौडऩे की प्रैक्टिस, स्नेस में भी अव्वल
कासगंज में जन्मे व अहमदी स्कूल फॉर विज्युअली चैलेंज्ड में हाईस्कूल के छात्र मोहम्मद कैफ पहली कक्षा से यहां पढ़ रहे हैं। बताते हैं कि, दृष्टि में वे सामान्य बच्चों की तरह जरूर नहीं हैं मगर खेल की चाह उनमें सामान्य बच्चों से ज्यादा रही। इसलिए एक खेल के बजाय कई खेलों में हाथ आजमा डाला। क्रिकेट की बॉल (आवाज करने वाली) को सीधे फेंककर उसके पीछे सीध में दौडऩे की प्रैक्टिस करते थे। बताया कि, राष्ट्रीय एथलेटिक्स मीट 2017 में लंबी कूद में स्वर्ण पदक हासिल किया। गोला फेंक में भी हुनर दिखाया और द्वितीय स्थान हासिल कर रजत पदक जीता। एथलेटिक्स के साथ-साथ क्रिकेट में भी हाथ आजमाया करते थे। अपने साथियों के साथ खेलना जारी रखते थे। 2016 में दिल्ली में हुई सरसैयद राष्ट्रीय क्रिकेट प्रतियोगिता में विजेता टीम के सदस्य रहे। फिर सोचा कि, रस्साकसी में तो केवल ताकत लगानी है तो रस्साकसी में भी कदम रख दिया। स्टेट रस्साकसी प्रतियोगिता में उपविजेता रहे। वेट लिफ्टिंग को भी नहीं छोड़ा और एएमयू इंटर हॉल प्रतियोगिता में स्नेच में 225 किलो भार उठाया। इतने खेलों में दमखम दिखाने वाले कैफ युवाओं के लिए प्रेरणा से कम नहीं हैं।
कमजोरी को ही बनाया ताकत
टप्पल निवासी विवेक कुमार प्राथमिक विद्यालय टप्पल में कक्षा छह के विद्यार्थी हैं। इनके बायें पैर में दिक्कत होने से ये एक पैर से दिव्यांग हैं। पैर में गड़बड़ी होने के बाद दौडऩे की कल्पना ही तमाम युवा या बच्चे नहीं करते। मगर, विवेक ने अपनी कमजोरी को ही ताकत बनाते हुए दौडऩे का फैसला किया। दौड़ की प्रैक्टिस करते हुए कई बार गिरे, चोट लगी मगर हौसला नहीं टूटा। एक दिन परिषदीय स्कूलों की ब्लॉक स्तरीय प्रतियोगिता में विवेक ने प्रतिभाग किया। इनकी दौड़ के आगे उनके साथी बौने साबित हुए। इस पर बेसिक शिक्षा के जिला पीटीआई सुशील शर्मा ने इस बच्चे को दौड़ का तकनीकी प्रशिक्षण दिया। कम समय में लक्ष्य भेदने की प्रैक्टिस कराई। विवेक ने प्रैक्टिस में कभी हार नहीं मानी। सितंबर 2017 में लखनऊ में स्पेशल ओलंपिक (दिव्यांगजन का) हुआ। इसमें विवेक ने 100 मीटर दौड़ में स्वर्ण पदक हासिल कर जिले का नाम चमका दिया। इस प्रदर्शन के बाद इस प्रतिभा का जिला व प्रदेशस्तर पर सम्मान किया गया। विवेक के पिता सरजीत सिंह किसान हैं। दिव्यांग बेटा पिता के साथ सड़क किनारे दौड़ते हुए खेत तक जाता है। इससे उसकी प्रैक्टिस भी हो जाती है।
टीवी पर गीत सुने और गायक बन गए यशपाल
एएमयू के अहमदी स्कूल में कक्षा एक से दाखिला लेने वाले यशपाल अब हाईस्कूल में हैं। ये देखने में अक्षम हैं। इन्होंने अपनी प्रतिभा का लोहा खेल नहीं बल्कि कला के क्षेत्र में मनवाया है। यशपाल बताते हैं कि, जब वे स्कूल के किसी कार्यक्रम में तबला बजते सुनते थे तो उनको उसकी आवाज टनक व धमक भरी काफी अच्छी लगती थी। चौथी कक्षा से संगीत का शौक चढ़ा तो हाईस्कूल तक संगीत की कई विधाओं में हाथ आजमा लिया। टीवी पर स रे ग म प सीरियल देखने में विशेष रुचि दिखाते थे। कभी कोई एपिसोड मिस नहीं करते थे। टीवी पर सुन-सुन कर ही एक दिन स्कूल के हॉल में देशभक्ति गीत ऐ मेरे वतन के लोगों... गाने लगे। सुर व ताल से सधी आवाज प्रिंसिपल फिरदौस रहमान भी अचंभित रह गईं। बताया कि, गीत सुन उसको कार्यालय बुलाया और पूरा गाना सुना।
सांस्कृतिक प्रतियोगिता में मिला पुरस्कार
यशपाल, गायन-वादन सभी में उत्कृष्टता साबित कर रहे हैं। तबला बजाना सीखा तो हारमोनियम व कांगो भी साथ-साथ सीख लिया। यशपाल, 2017 में दिल्ली में हुई सांस्कृतिक प्रतियोगिता में संगीत रत्न के अवार्ड से नवाजे जा चुके हैं। अजमेर, राजस्थान में हुई सांस्कृतिक प्रतियोगिता में तृतीय स्थान हासिल किया। गायकी में भजन, गजल व एएमयू तराना आदि गाते हैं।