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तब राजनीति के पीछे होता था सेवाभाव और लोग रास्ते में रोककर मंत्री से करा लेते थे काम

तब के चुनाव की बात ही कुछ और थी। अब पहले जैसे नेता कहां हैं? राजनीति के पीछे समाजसेवा का भाव होता था अब उद्देश्य बदल गए हैं। बिना खर्च किए चौ. महेंद्र सिंह चौ. प्यारेलाल और जगवीर सिंह विधानसभा चुनाव लड़े और विधायक बने।

By Anil KushwahaEdited By: Published: Mon, 17 Jan 2022 04:10 PM (IST)Updated: Mon, 17 Jan 2022 04:11 PM (IST)
तब राजनीति के पीछे होता था सेवाभाव और लोग रास्ते में रोककर मंत्री से करा लेते थे काम
पहले राजनीति के पीछे समाजसेवा का भाव होता था, अब उद्देश्य बदल गए हैं।

अनिल गोविल, खैर / अलीगढ़ । तब के चुनाव की बात ही कुछ और थी। अब पहले जैसे नेता कहां हैं? राजनीति के पीछे समाजसेवा का भाव होता था, अब उद्देश्य बदल गए हैं। बिना खर्च किए चौ. महेंद्र सिंह, चौ. प्यारेलाल और जगवीर सिंह विधानसभा चुनाव लड़े और विधायक बने। ऐसे ही चौ. शिवराज सिंह विधायक बने। वे मंत्री भी बने। इनको रास्ते में रोक कर लोग अपना काम करा लेते थे। अब तो नेताओं से मिलना बड़ा मुश्किल काम हो जाता है। विधायकों के घर घंटों इंतजार करना पड़ता है।

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कल और आज में बहुत अंतर आया

यह कहते हुए पुरानी तहसील के रघुकुल तिलक गौड़ ने पुरानी यादें ताजा कीं। कई किस्से बताने लगे। बोले, पहले तो मतदान से पहले ही आकलन हो जाता था कि कौन जीतेगा? अब ऐसा नहीं। परिणाम आने से एक दिन पहले तक अंदाजा नहीं लग पाता। वर्ष 1967 के विधानसभा चुनाव की चर्चा करते हुए गौड़ ने बताया कि खैर विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस प्रत्याशी चौ. प्यारेलाल चुनाव लड़े थे। उनके प्रचार में जट्टारी के गांव मौर में कार्यकर्ताओं के साथ जीप में भरकर चुनाव प्रचार के लिए गए थे। तब कार्यकर्ताओं ने भूख लगने की बात कही तो रास्ते में जीप रोककर सड़क किनारे एक खेत में गाजर व आलू खोदकर पास में ही ट्यूबवैल पर धोकर कार्यकर्ताओं को खिलाया। फिर गांव जाकर सभा की। उनके साथ खैर के खुशीराम भारद्वाज, रमुआ गौतम, सुखपाल महाशय, नत्थी दर्जी झंडा लेकर आगे चलते थे। बड़ी आत्मीयता व कड़ी मेहनत के बूते पर चुनाव लड़े जाते थे। उस समय आवागमन के साधन ज्यादा नहीं थे। एक जीप से ही पूरा चुनाव प्रचार होता था। रात के समय चौपाल व नुक्कड़ सभा में 50 से 100 लोग एकत्रित होते थे। गांव- गांव समर्थक अपने प्रत्याशी का घरों की छत पर झंडा लगाते थे। इससे दूर से ही पता चल जाता था कि वह व्यक्ति किस प्रत्याशी का समर्थक है। अब प्रचार का माध्यम पूरी तरह से बदल चुका है और महंगा भी हो गया है।


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