दोस्ती की गर्माहट सियासत में खिला सकती है नया गुल Aligarh news
त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में जिस प्रकार से समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल की दोस्ती में गर्माहट आई है वो आगे नया गुल खिला सकती है। यदि पंचायत चुनाव में ये दोस्ती पश्चिमी यूपी में सफल हो गई तो आगामी विधानसभा चुनाव में भी यह कायम रह सकती है।
अलीगढ़, जेएनएन। त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में जिस प्रकार से समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल की दोस्ती में गर्माहट आई है, वो आगे नया गुल खिला सकती है। यदि पंचायत चुनाव में ये दोस्ती पश्चिमी यूपी में सफल हो गई तो आगामी विधानसभा चुनाव में भी यह कायम रह सकती है। इससे कम से कम पश्चिमी यूपी में भाजपा के लिए मुसीबत खड़ी हो सकती है। हालांकि, अभी दोनों दलों ने खुलकर जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में सामने आने की बात नहीं स्वीकारी है।
भाजपा को मिली नौ सीटें
अलीगढ़ जिले में जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में भाजपा को नौ सीटें मिली हैं। सत्ता में होने के बाद मात्र नौ सीटें आने से संगठन के नेताओं के माथे पर चिंता की लकीरें हैं। वहीं, सपा पांच और रालोद को चार सीटें मिली हैं। स्थानीय आधार पर यह दोनों संगठन एक साथ आने को तैयार हैं। दोनों संगठन यदि मिल जाते हैं तो इनकी भी नौ सीटें होंगी। इसके बाद वो निर्दलीय को साथ में होने का दावा कर रहे हैं। इससे सपा-रालोद गठबंधन और निर्दलीय को मिलाकर करीब 25 सदस्य होंगे, जिसकी बदौलत सपा-रालोद अपना अध्यक्ष बनाने का दावा ठोक रहे हैं। बहरहाल, दोनों दलों का यदि यह प्रयोग सफल हो गया तो आगामी दिनों में यह प्रदेश में नई हवा की शुरुआत कर देंगे। सपा-रालोद का यूपी में गठबंधन हो सकता है। इस गठबुधन को भले ही पूर्वांचल में फायदा न हो, मगर पश्चिमी यूपी में फायदा हो सकता है। क्योंकि पश्चिमी यूपी में रालोद की जड़ें अभी भी मजबूत है। कृषि कानून बिल के विरोध को लेकर किसान पहले से नाराज चल रहे हैं। इसमें पश्चिमी यूपी के अधिकांश किसान हैं, जिन्होंने दिल्ली में जाकर धरना-प्रदर्शन दिया था। किसानों की नाराजगी का भरपूर फायदा सपा-रालोद गठबंधन उठा सकता है। इधर, कोरोना के चलते भी आम जनता में नाराजगी बढ़ी है। इसे भी दोनों दल भुनाने की कोशिश करेंगे। इसका सीधा नुकसान भाजपा को होगा। विधानसभा चुनाव में रालोद पश्चिमी यूपी संभालेगी और सपा पूर्वांचल में ताकत झोंकेगी। तमाम समीकरणों को लेकर स्थिति को बदल सकती है।
भावनात्क होगा लगाव
रालोद मुखिया चौधरी अजित सिंह के निधन के बाद से उनके पुत्र और पूर्व सांसद जयंत चौधरी की ओर जाट और किसानों का झुकाव हो सकता है। जाट समुदाय संवेदना के चतले जयंत चौधरी के साथ खड़ा हो सकता है। हालांकि, अभी तक जयंत शांत हैं। आगामी कुछ दिनों में वह स्थिति स्पष्ट करेंगे। फिलवक्त पिता के निधन के बाद उन्हें पार्टी को मजबूत करने और नए सिरे से खड़ा करने की जिम्मेदारी भी है।
बदल सकता है समीकरण
इश्क, राजनीति और जंग में कहते हैं कि सबकुछ जायज है। इसलिए सपा-रालोद की भले ही गठबंधन की अभी सुगबुगाहट है, मगर आगामी दिनों में स्थिति क्या बनती है कुछ कहा नहीं जा सकता है? हो सकता है कि आगे के दिनों में दोनों का गठबंधन राजनीतिक समीकरण के चलते न हो। इसलिए अभी समय का इंतजार करना होगा, उसके बाद विधानसभा चुनाव की स्थिति स्पष्ट हो सकेगी।