सरकारी लिखावट पढ़ने में चूक गए दिग्गज और दिला दी तीन भाषाओं में शपथ, बखान भी किया
अलीगढ़ में मतदाता दिवस पर सभी सरकारी संस्थानों मेंं कर्मचारियों को शपथ दिलायी गयी। इस दौरान कई जगह लोगों ने सरकारी भाषा को पढ़ने में चूक दिखायी और एक की जगह तीन भाषाओं में शपथ ग्रहण कराया गया।
अलीगढ़, जागरण संवाददाता। शिक्षा के ‘केंद्र’ बिंदु माने जाने वाले कैंपस, जिसके विद्यार्थी हाें या शिक्षक दूर-दूर तक नाम चमकाते हैं। वहां मतदाता दिवस पर अजब ही वाकया हो गया। पढ़े-लिखों की फौज ने सरकारी लिखावट को समझने में चूक कर दी। दरअसल, शपथ ग्रहण के लिए जारी सरकारी पत्र में लिखा था कि हिंदी, अंग्रेजी या उर्दू में से किसी भाषा में शपथ दिलवाना सुनिश्चित किया जाए। कैंपस के मुखिया ने तो एक भाषा में शपथ दिलाई। मगर कैंपस के कुछ पढ़े-लिखों ने अपने-अपने संस्थानों में तीनों भाषाओं में शपथ दिलाई। शपथ दिलाने वालों ने इसका बखान भी किया, मानो शानदार काम किया हो। मजाकिया तौर पर ये बात तब सामने आई जब शपथ लेने वालों ने चर्चा शुरू की कि दो शपथ के बाद तीसरी में तो दाहिने की जगह बायां हाथ उठाना पड़ा। क्योंकि हाथ कांपने लगा था। तब किसी सज्जन ने समझाया कि एक भाषा में ही शपथ लेनी थी।
सइयां कोतवाल तो डर काहे का
सइयां भए कोतवाल अब डर काहे का... फिल्म अभिनेता अमिताभ बच्चन पर फिल्माया ये गाना खूब हिट हुआ। अब ये विशेष बच्चों की शिक्षा के लिए बने बड़े कैंपस में चरितार्थ हो रहा है। इस संस्थान में करीब तीन महीने पहले ही बड़ी मैम आई हैं। एक ही कैंपस के दूसरे संस्थान से उनको इधर-उधर किया गया है। अब बड़ी मैम कभी 12 बजे तो कभी एक बजे कैंपस में पहुंचती हैं। कभी-कभी तो बिना आए ही काम चल जाता है। इससे उनके अधीनस्थों को तो खुश होना चाहिए लेकिन स्थिति उल्टी है, अधीनस्थ खुशी के बजाय दुखी हैं। क्योंकि कैंपस के चपरासी ‘शैकी’ भाई पर बड़ी मैम का हाथ है। इससे शैकी भाई इतने बलवान हो गए हैं कि शिक्षकों को समय से आने के लिए निर्देशित करते हुए त्योरियां भी चढ़ा देते हैं। ड्यूटी में किसको आना है और कब आना है? ये भी वही तय कर देते हैं।
नजर रखिए, यहां कई खिलाड़ी हैं
100 साल का सफर पूरा कर चुके शिक्षा विभाग का नाम व दायरा भी काफी बड़ा होता है। बड़े काम और बड़ी जिम्मेदारियां भी होती हैं। मगर इन सबके बीच अपने दायित्वों का निर्वहन करते हुए सभी गतिविधियों पर नजर रखना भी चुनौती है। इसी चुनौती को धता बताने वाला वाकया सामने आया। अधिकारी के दफ्तर का ही बाबू एक चतुर्थश्रेणी कर्मचारी का प्रमोशन कराने के लिए अफसर के नाम पर राशि मांग लेता है। ये प्रकरण अभी सुलझा नहीं है कि नई सुगबुगाहट भी सुनने में आने लगीं। अपने संस्थान को केंद्र बनाने की दौड़ में शामिल करने के लिए भी लेन-देन की चर्चाएं हो रही हैं। ये राशि भी अफसर के नाम पर ही मांगी गई है। भले ही अफसर के नाम पर रुपये मांगने वाले दोषी पकड़े जाएं, लेकिन साख तो खराब होती ही है। अफसरों को भी नजर रखने की जरूरत है क्योंकि यहां खिलाड़ी कई हैं।
प्रचारक गुरुजी कैसे रहेंगे निष्पक्ष?
शिक्षा विभाग से शिक्षकों व कर्मचारियों की ड्यूटी विधानसभा निर्वाचन में लगाई गई है। मगर अकराबाद क्षेत्र में गुरुजी के कमल प्रेमी होने की चर्चाएं जोर पकड़ चुकी हैं। गुरुजी घर-घर संपर्क कार्यक्रम के दौरान घरों में दल-बल के साथ जा रहे हैं। साथ ही गले में अपनी प्रिय पार्टी का पटका भी पहने हुए हैं और जमकर प्रचार कर रहे हैं। खासबात तो ये है कि सरकारी मुलाजिम होने के चलते जब इनकी ड्यूटी चुनाव कार्य में लगी है तो ये किसी पार्टी का प्रचार कैसे कर सकते हैं? अगर ये प्रचार करने के बाद मतदान केंद्र पर रहेंगे तो इनके निष्पक्ष रहने की क्या गारंटी होगी? क्या निष्पक्षतापूर्ण चुनाव गुरुजी करा पाएंगे? ऐसे कई सवाल क्षेत्र की जनता और शिक्षकों के बीच में भी उठ रहे हैं। देर शाम तक तो गुरुजी फुल मूड में प्रचार करते रहे। मगर अब वीडियो बनने की बात से पसीना छूट गया है।