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मिक्सी के प्रयोग ने मिस कर दिया सिलबट्टा Aligarh news

छोटे-छोटे खुटे हुए निशान का लाल व काले पत्थर का सिलबट्टा कमाल की चीज है। ना मिक्सी की तरह कोई तामझाम बिजली की बचत ना कोई रंगा डिजाइन आसानी से काम आने वाला हर वक्त प्रयोग के लिए तैयार। पहले लोग मसाले पीसने व चटनी बनाने में इस्तेमाल करते थे।

By Parul RawatEdited By: Published: Fri, 30 Oct 2020 06:20 PM (IST)Updated: Fri, 30 Oct 2020 06:20 PM (IST)
मिक्सी के प्रयोग ने मिस कर दिया सिलबट्टा Aligarh news
मसाला पीसने की यह प्राचीन पद्धति अब धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रही है

योगेश कौशिक, इगलास : छोटे-छोटे खुटे हुए निशान का लाल व काले पत्थर का सिलबट्टा भी कमाल की चीज है। ना मिक्सी की तरह कोई तामझाम, बिजली की बचत, ना कोई रंगा डिजाइन, आसानी से काम आने वाला, हर वक्त प्रयोग के लिए तैयार। पहले के जमाने में लोग मसाले पीसने व चटनी बनाने के लिए इस्तेमाल किया करते थे। बेशक मेहनत और समय दोनों खर्च होते थे लेकिन खाने का जो स्वाद आता था, वो बहुत ही कमाल का होता था। लेकिन आजकल लोग समय बचाने के साथ जल्दी-जल्दी काम निपाटने के लिए मिक्सर का प्रयोग करने लगे हैं। मसाला पीसने की यह प्राचीन पद्धति अब धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रही है।

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लोगों को मेले का रहता था इंतजार

एक समय था जब लोग सिलबट्टा खरीदने के लिए सालभर मेले का इंतजार किया करते थे। अब इस कारोबार को जंग सा लग गया है। इस कारोबार से जुड़े कारीगर अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों में सड़क के सहारे पत्थर को खोटकर सिलबट्टा तैयार करते हुए दिख जाएंगे, लेकिन बदलते परिवेश ने सिलबट्टा कारोबार करने वाले कारीगरों की रोजी-रोटी पर खासा असर डाला है। उन्हें दिन भर ग्राहकों का इंतजार रहता है।


बीते वर्षों मे कारोबार में आई गिरावट

इगलास में सिलबट्टा बेच रहे आगरा के कारीगर सोमकुमार ने बताया की उसके परिवार का यह पुश्तैनी काम है। उन्होंने बताया कि सिलबट्टा 120 से लेकर 500 रुपये तक उपलब्ध है। पिछले वर्षों में कारोबार में भारी गिरावट आई है। ग्राहकों की संख्या और सिल के प्रति रूचि भी घटी है। पूरे दिन में एक-दो ग्राहक ही आते हैं। गांव-गांव बेचने के लिए जाना पड़ता है। मुश्किल से खर्चा निकलता है। घर की महिलाएं सिल से मसाला पीसनें में कोई रूचि नही रखती। ग्रामीण क्षेत्रों में तो अभी सिल प्रयोग हो रहा है। लेकिन शहरी क्षेत्र में अधिकतर सिल की जगह इलेक्ट्रानिक मिक्सी ने ले ली है। 

नहीं होता कोई प्रदूषण

सदियों से चला आ रहा यह सिलबट्टा मिक्सी के मुकाबले ज्यादा प्रगतिशील, आधुनिक और एनवायरनमेंट फ्रेंडली होता है। इसमें किसी तरह का कोई प्रदूषण नहीं होता। प्राकृतिक हवा के संपर्क में आने से मसालों का स्वाद प्रभावित नहीं होता। मिक्सी भले सूखे मसालों को जल्दी पीस देती है, लेकिन च्यादा ऊर्जा के कारण चीजों के स्वाद और पौष्टिक तत्व नष्ट हो जाते हैं। 

सिलबट्टे के फायदे

सिलबट्टे पर मसाला पीसने पर खुश्बू धीरे-धीरे नाक के जरिए दिमाग तक पहुंचती है। इससे भोजन के प्रति रूचि भी बढ़ती है। सिलबट्टा पर किसी चीज को पीसते समय एक तरह का व्यायाम होता है। इससे चर्बी धीरे-धीरे घटती है और मोटापा नहीं आता। चटनी या दाल पीसने के लिए सिलबट्टे का इस्तेमाल करते हों तो बिजली की खपत नहीं होगी। मिक्सर सबसे अधिक बिजली को फूंकता है।


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