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सब्‍जियों के राजा ने किसानों को किया बदहाल, औंधे मुंह गिरा दाम Aligarh news

सब्जी का राजा आलू इन दिनों किसानों के लिए घाटे का सौदा हो रहा है। पिछले वर्ष किसानों को अच्छा भाव मिला था। आलू सेव के भाव बिका था। इस साल शुरु में आलू का अच्छा भाव मिला लेकिन अब आलू किसानों को मायूष कर रहा है।

By Anil KushwahaEdited By: Published: Tue, 14 Sep 2021 05:24 PM (IST)Updated: Tue, 14 Sep 2021 05:51 PM (IST)
सब्‍जियों के राजा ने किसानों को किया बदहाल, औंधे मुंह गिरा दाम Aligarh news
सब्जी का राजा आलू इन दिनों किसानों के लिए घाटे का सौदा हो रहा है।

अलीगढ़, जागरण संवाददाता।  सब्जी का राजा आलू इन दिनों किसानों के लिए घाटे का सौदा हो रहा है। पिछले वर्ष किसानों को अच्छा भाव मिला था। आलू सेव के भाव बिका था। इस साल शुरु में आलू का अच्छा भाव मिला, लेकिन अब आलू किसानों को मायूस कर रहा है। आलू के घटते दमों ने किसानों की चिंता बढ़ा दी है।

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आलू सस्‍ता मिलने से लोगो में खुशी

सोमवार को कस्बा के बाजार में ट्रैक्टर-ट्राली में आलू के पैकिट लदे खड़े थे। यहां युवकाें द्वारा आवाज लगाकर 200 रुपये पैकिट (50) किलो आलू बेचा जा रहा था। आलू सस्ता मिलने पर लोग भी खरीददारी कर रहे थे। जहां आम लोग आलू सस्ता होने से खुश हैं तो वही किसानों की चिंता बढने लगी है। क्योंकि अभी भी कोल्ड स्टोर में काफी आलू जमा है। ऐसे में भाव न मिलने पर किसानों को घाटा सहना पड़ेगा। जब बाजार में 200 रुपये पैकिट आलू की बिक्री होगी तो इससे किसान का ऊपर का खर्चा भी नहीं निकलेगा, लागत तो बहुत दूर। क्योंकि कोल्ड स्टोर में ही भाड़ा 135 रुपये प्रति पैकिट है, बोरे की कीमत, लाने-लेजाने का भाड़ा व पल्लेदारी अलग।

एक बीघा में आठ हजार की लागत

आलू उत्पादक किसानों की मानें तो आलू की फसल में बीज बोने से लेकर, जुताई, सिंचाई, स्प्रे, खुदाई तक का खर्चा लगभग आठ हजार रुपये प्रति बीघा आता है। खेत से कोल्ड स्टोर या मंडी तक लेकर जाने का खर्चा व किसान का श्रम अलग। एक बीघा में 40 बोरा आलू का उत्पादन होता है। इस बार खुदाई पर आलू की बिक्री नहीं हुए है। किसानों ने कोल्ड स्टोरों में है आलू का स्टाक किया है।

बिचौलियों के हाथों लुटते किसान

आलू का समर्थन मूल्य घोषित न होने के कारण आलू उत्पादक किसान बिचौलियों के हाथों लुटने को मजबूर होता है। बिचौलिये व आढ़तिया किसानों से आलू औने-पौने दामों में खरीदा करते हैं। सरकार द्वारा कोई रेट निर्धारित न करने व खरीद न करने के कारण किसानों को मजबूरन अपना आलू सस्ते दामों में बेचना पड़ता है। इसके बाद भी क्षेत्र के किसान आलू का घाटा आलू से पूरा करने के फेर में हर वर्ष आलू का उत्पादन करते हैं।


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