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25 जून 1975 की वो आधी रात : जिसने मुंह खोला, सीधा गया जेल, यातनाएं भी झेली Aligarh News

लोकतंत्र सेनानियों को नहीं भूलती 25 जून 1975 की आधी रात जब दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत में राजनीति के इतिहास का काला अध्याय लिखा गया था। काली अंधियारी रात के बीच अचानक से सत्ता के लालच में राष्ट्रीय आपातकाल घोषित कर दिया।

By Sandeep Kumar SaxenaEdited By: Published: Fri, 25 Jun 2021 06:51 AM (IST)Updated: Fri, 25 Jun 2021 06:51 AM (IST)
25 जून 1975 की वो आधी रात : जिसने मुंह खोला, सीधा गया जेल, यातनाएं भी झेली Aligarh News
अचानक से सत्ता के लालच में राष्ट्रीय आपातकाल घोषित कर दिया।

अलीगढ़, जेएनएन। लोकतंत्र सेनानियों को नहीं भूलती 25 जून 1975 की आधी रात, जब दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत में राजनीति के इतिहास का काला अध्याय लिखा गया था। काली अंधियारी रात के बीच अचानक से सत्ता के लालच में राष्ट्रीय आपातकाल घोषित कर दिया। 21 माह की यातानाओं का वह दौर याद आते ही अब भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं। उस दौर में जिसने भी जुबान खोली, वह सीधा जेल में डाल दिया गया। युवाओं के साथ ही बच्चों को भी जेल में भेजा गया। जिले से भी करीब 143 लोग जेल में रहे। सरकार ने अब इन्हें लोकतंत्र सेनानी घोषित कर रखा है। हर महीने इन्हें 20 हजार की पेंशन मिलती है।

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नाखून तक खींच लिए गए : ज्ञानेंद्र मित्तल

सूतमिल चौराहे निवासी लोकतंत्र सेनानी ज्ञानेंद्र मित्तल कहते हैं कि 46 साल पहले 25 जून 1975 को आपातकाल लागू होते ही विपक्षी नेताओं को उठाकर जेल में डाल दिया गया। पत्रकारों के खिलाफ कार्रवाई की गई। पुलिस के तानाशाही रवैया का जिले के हर व्यक्ति में भय था। आवाज उठाने पर लोगों को पीटा जाता था। पुलिस उठाकर जेल में बंद कर देती। वहां पर कई लोगों के नाखून तक खींच लिए गए। किसानों से लेकर व्यापारी तक डरा हुआ था। लोगों में अंदर ही अंदर आक्रेाश था, लेकिन सरकार निजी हितों के चलते आंखे मूंदे बैठी थी। लोगों को ऐसा लगता था कि मानो उनका सबकुछ छिन गया हो। कई बार इसके लिए उन्होंने टीम के साथ आंदोलन किया। बाद में लोगों ने वोट की चोट से बदला लिया और सरकार औंधे मुह गिरी।

11 साल की उम्र में जाना पड़ा जेल : मुकेश साईं

शहर के प्रीमियम नगर निवासी लोकतंत्र सेनानी मुकेश सिंह आपातकाल की याद करके भावुक हो जाते हैं। वह कहते हैं कि 26 दिसंबर 1975 को नौ लोगों की टीम ने सत्याग्रह की शुरुआत की थी। शहर के मीरीमल की प्याऊ से इसे शुरू किया गया। इसमें सभी लोगों ने अपने हाथों में तख्तियां ले रखी थीं। इन पर सरकार विरोधी स्लोगन लगे थे। कोई हाथों में चूड़ियां पकड़ा था तो कोई नारे लगा रहा था। जब उनकी उम्र कोई 11 साल की रही होगी, लेकिन पुलिस ने सभी सत्याग्रहियों को पकड़ कर बंद कर दिया। सभी की पिटाई की गई।

पिटाई के लिए पहले ही मानसिक रूप से थे तैयार : अजय पटेल

शहर के मैरिस रोड निवासी अजय पटेल ने बताया कि चौधरी बिशनवीर के नेतृत्व में दिसंबर 1975 में आंदोलन की शुरुआत की थी। सत्याग्रह इसका नाम दिया दिया गया था। इस आंदोलन में शामिल सभी लोग पहले से ही पुलिस की पिटाई के लिए मानसिक रूप में तैयार थे। क्योंकि दो महीने पहले ही आंदोलन करने वाले अन्य पांच लोगों की पुलिस ने बुरी तरह पिटाई की थी। उस दौरान इनकी उम्र महज 12 साल 11 महीने थी। 13वें साल का जन्मदिन जेल में ही बनाया था। करीब 17 दिन जेल में रहे थे।

97 लोकतंत्र सेनानी बचे हैं जिले में

प्रशासनिक रिकार्ड के मुताबिक 2006 में सपा सरकार ने आपातकाल के दौरान जेल जाने वाले लोगों को लोकतंत्र सैनानी घोषित किया था। जिले में इनकी संख्या 143 थी। पांच सौ रुपये महीने की पेंशन से इसकी शुरुआत की गई। अब जिले में कुल 97 लोकतंत्र सेनानी बचे हैं। सरकार हर महीने इन्हें 20 हजार रुपये की पेंशन देती है।


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