अलीगढ़ में कांग्रेस का ऐसा हाल जैसे बंजर धरती पर वोटों की फसल लहलहाने की चुनौती
अलीगढ़ में कांग्रेस की स्थिति अच्छी नहीं है। अलीगढ़़ में सात विधानसभा सीट है जिनमें अब कांग्रेस अपनी सियासी जमीन तलाश रही है। प्रियंका गांधी वाड्रा ने इस समय उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव पर अपना पूरा ध्यान केंद्रित कर दिया है।
विनोद भारती, अलीगढ़ । करीब दो दशक से सियासी वनवास काट रही कांग्रेस के लिए कड़े इम्तिहान का वक्त है। उसके सामने बंजर धरती पर वोटों की फसल लहलहाने की चुनौती है। 'एकला चलो' की नीति पर तो राह और कठिन हो गई है। जातीय संतुलन साधने के लिए इस चुनाव में सभी प्रमुख दलों का गठबंधन है, कांग्रेस को छोड़कर। कांग्रेस 'लड़की हूं-लड़ सकती हूं' के नारे व प्रियंका गांधी वाड्रा के चेहरे के भरोसे सियासी समर में उतरी है। सातों सीटों पर प्रत्याशी उतार दिए हैं। इनमें खैर व इगलास में महिला प्रत्याशी हैं। अतरौली को छोड़कर हर सीट पर प्रत्याशी का विरोध हुआ है। पार्टी के रणनीतिकार इसे सामान्य प्रतिक्रिया मानते हुए आश्वस्त हैं। दावा है कि नतीजे चौंकाने वाले आएंगे।
अलीगढ़ शहर में कांग्रेस के हालात
कांग्रेस चार बार शहर सीट पर जीत हासिल कर चुकी है। 2002 में विवेक बंसल अंतिम बार निर्वाचित हुए। इस बार मुस्लिम चेहरे सलमान इम्तियाज पर दांव लगाया गया है। सपा के दिग्गज नेता जफर आलम व बसपा नेत्री रजिया खान के मैदान में उतरने से उनकी राह कठिन लग रही है। सपा व बसपा से मुस्लिम प्रत्याशी होने के कारण सलमान इम्तियाज को प्रत्याशी बनाने का पार्टी के ही लोगों ने काफी विरोध किया। दूसरा विरोध इस बार था कि वे चुनाव से पहले ही कांग्रेस में शामिल हुए हैं। सलमान इम्तियाज एएमयू छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष रहे हैं। पार्टी का मानना है कि कोल सीट से कांग्रेस प्रत्याशी विवेक बंसल का शहर सीट पर भी अच्छा प्रभाव है। इसका लाभ सलमान को मिलेगा।
कोल विधानसभा सीट
पिछले तीन चुनावों से हार रहे पूर्व विधायक विवेक बंसल कोल सीट पर भाग्य आजमा रहे हैं। 2012 के चुनाव में 599 मतों के अंतर से हारे थे। मोदी लहर में इस सीट पर भाजपा का कब्जा हो गया। विवेक बंसल ने इस सीट पर काफी मेहनत की है। कांग्रेस का फिलवक्त अपना जनाधार यहां नहीं है। यहां भी सपा व बसपा ने मुस्लिम प्रत्याशी उतारे हैं। सामने भाजपा है। ऐसे में कांग्रेस लिए यहां जीतना चुनौतीपूर्ण होगा।
अतरौली विधानसभा सीट
पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंहह की पारंपरिक सीट होने के कारण देशभर की नजरें इस पर रहती हैं। कांग्रेस इस सीट पर तीन बार जीत चुकी है। अंतिम बार 1980 में अनवार खान जीते। 2012 को छोड़कर छह बार कल्याण ङ्क्षसह, एक बार उनकी पुत्रवधू प्रेमलता देवी व एक बार नाती संदीप ङ्क्षसह ने जीत हासिल की। कांग्रेस प्रत्याशी जमानत तक नहीं बचा पाए। कांग्रेस ने इस बार लोधी कार्ड खेला है। धर्मेंद्र लोधी को प्रत्याशी बनाया है। कुछ पुराने कांग्रेसी उनके साथ हैं। भाजपा से संदीप ङ्क्षसह फिर मैदान में हैं। सपा ने दो बार चुनाव जीत चुके वीरेश यादव पर दांव खेला है। भाजपा व सपा के बीच द्वंद्व का कांग्रेस कितना लाभ उठाती है, यह समय बताएगा।
छर्रा विधानसभा सीट
ठाकुर बाहुल्य इस सीट पर कांग्रेस ने अखिलेश शर्मा को मैदान में उतारा है। यहां पर जातीय संतुलन साधना कांग्रेस के लिए चुनौती है। साथ ही कांग्र्रेस के पारंपरिक वोटर को अपने पाले में लाने की भी चुनौती है। विधायक रवेंद्र पाल ङ्क्षसह को भाजपा ने फिर से मैदान में उतारा है। सपा से लक्ष्मी धनगर मैदान में हैं।
बरौली विधानसभा सीट
चर्चित सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी युवा नेता कुंवर गौरांग देव चौहान चुनावी ताल ठोंक रहे हैं। नामांकन के दौरान इन्होंने खूब दमखम दिखाया। हां, राह आसान नहीं है। पूर्व मंत्री एमएलसी ठा. जयवीर ङ्क्षसह यहां से भाजपा प्रत्याशी हैं। कद्दावर नेता और राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी हैं। सपा-रालोद गठबंधन से प्रमोद गौड़ व बसपा से नरेंद्र शर्मा प्रत्याशी हैं। कांग्रेस के लिए वापसी करने की चुनौती है।
खैर व इगलास विधानसभा सीट
जाटलैंड कही जाने वाली दोनों सीटों पर कांग्रेस 1985 व 2002 से वनवास काट रही है। खैर में कांग्रेस ने इस बार मोनिका सूर्यवंशी को प्रत्याशी घोषित किया है। महिला कांग्रेस की जिला सचिव है। पार्टी नेताओं का कहना है कि मोनिका ने क्षेत्र में रहकर महिलाओं के बीच अच्छी पैठ बनाई है। सजातीय वोट भी उन्हें अच्छी संख्या में मिलेंगे। सपा-रालोद गठबंधन से पूर्व विधायक भगवती प्रसाद सूर्यवंशी प्रत्याशी हैं। भाजपा से अनूप प्रधान फिर से मैदान में हैं। इगलास सीट पर कांग्रेस ने प्रीति धनगर को प्रत्याशी बनाया है। असंतुष्ट नेताओं ने उन्हें गैर कांग्रेसी व बाहरी बताते हुए विरोध किया है। खैर व इगलास सीटों पर कांग्रेस खोया जनाधार वापस लेकर ही जीत मिल सकेगी। इसके लिए मेहनत की जरूरत है।