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Special on Maulana Azad Birthday : मौलाना आजाद के नाम से AMU में है एशिया की प्रमुख लाइब्रेरी

आजाद भारत के पहले केंद्रीय शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद का अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) से गहरा नाता था। उन्होंने पहले शिक्षा मंत्री के रूप में एएमयू के दीक्षा समारोह में भाग लिया था। यूनिवर्सिटी ने उन्हें मानद उपाधि से नवाजा था।

By Sandeep SaxenaEdited By: Published: Wed, 11 Nov 2020 04:10 PM (IST)Updated: Wed, 11 Nov 2020 04:10 PM (IST)
Special on Maulana Azad Birthday : मौलाना आजाद के नाम से AMU में है एशिया की प्रमुख लाइब्रेरी
शिक्षा मंत्री के रूप में एएमयू के दीक्षा समारोह में भाग लिया था।

अलीगढ़, संतोष शर्मा। आजाद भारत के पहले केंद्रीय शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद का अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) से गहरा नाता था। उन्होंने पहले शिक्षा मंत्री के रूप में एएमयू के दीक्षा समारोह में भाग लिया था। यूनिवर्सिटी ने उन्हें डॉक्ट्रेट ऑफ थियोलॉजी (दीनियात में मानद उपाधि) से नवाजा था। उनके नाम पर मौलाना आजाद लाइब्रेरी है, जो एशिया की प्रमुख लाइब्रेरियों में शामिल है। इसमें दुर्लभ पांडुलिपियां व ऐतिहासिक किताबें हैं।  

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दीक्षा समारोह में थे मुख्‍य अतिथि

मौलाना अबुल कलाम आजाद 20 फरवरी 1949 को एएमयू में आयोजित दीक्षा समारोह में बतौर मुख्य अतिथि शामिल हुए। स्ट्रेची हॉल में हुए समारोह में भाषण दिया था। तब कुलपति पूर्व राष्ट्रपति डॉ. जाकिर हुसैन थे। कुलाधिपति नवाब रजा अली खान ऑफ रामपुर थे। इसके बाद उनका एएमयू में आना नहीं हुआ, लेकिन संपर्क बना रहा।  

सेंट्रल लाइब्रेरी का नाम मौलाना अबुल कलाम आजाद

मौलाना अबुल कलाम आजाद की मृत्यु के बाद इंतजामिया ने यूनिवर्सिटी की सेंट्रल लाइब्रेरी का नाम उनके नाम पर रखा।  इस लाइब्रेरी की नींव 1955 में प्रधानमंत्री रहे पं. जवाहर लाल नेहरू ने रखी थी। नेहरू ने ही 1960 में शुभारंभ किया था। एएमयू में 13.50 लाख से अधिक किताबें हैं। इनमें से 6.50 लाख इसी लाइब्रेरी में हैं। बाकी दूसरी जगहों पर हैं। लाइब्रेरी में मुस्लिमों के चौथे खलीफा अजरत अली के हाथों हिरन की खाल की झिल्ली पर लिखी गई कुरान मजीद है। 1829 में अकबर के दरबारी फैजी के हाथों फारसी में अनुवादित गीता भी यहां सुरक्षित है। 400 साल पहले नकीब खां ने महाभारत का फारसी में अनुवाद किया था। यह पांडुलिपि भी यहां है। मुगल शासक युद्ध में विशेष प्रकार का कुर्ता पहनते थे, जिसे रक्षा कवच के रूप में मानते थे। हाफ बाजू के इस कुर्ते के दोनों साइड में पूरी कुरान शरीफ लिखी होती थी। ये कुर्ता भी लाइब्रेरी में सुरक्षित है। जहांगीर के पेंटर मंसूर नक्काश की अद्भुत पेंङ्क्षटग के बारे में शायद ही लोग जानते हों। मंसूर पेंङ्क्षटग में माहिर था। 1621 में उसकी बनाई टूलिप (गुलेलाला) के पुष्प की पेंङ्क्षटग भी लाइब्रेरी में है।

चश्मा, बेंत समेत सब किया दान

मौलाना के निधन के बाद उनके परिवार ने लाइब्रेरी को उनका सारा सामान दान कर दिया था। एएमयू के जनसंपर्क कार्यालय के डॉ. राहत अबरार के अनुसार मौलाना आजाद के कपड़े, चश्मा, बर्तन, बेंत आदि लाइब्रेरी में रखे हैैं। बहुत सी पुस्तकें भी स्वजन ने लाइब्रेरी को दान कीं।


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