Move to Jagran APP

गठबंधन से कुछ-कुछ होता है

अब सपा-रालोद साथ-साथ हैं। ये चुनावी गठबंधन है। फिलहाल तक इसमें कोई बंधन नहीं है।

By JagranEdited By: Published: Wed, 24 Nov 2021 08:07 PM (IST)Updated: Wed, 24 Nov 2021 08:07 PM (IST)
गठबंधन से कुछ-कुछ होता है
गठबंधन से कुछ-कुछ होता है

राज नारायण सिंह, अलीगढ़: अब सपा-रालोद साथ-साथ हैं। ये चुनावी गठबंधन है। फिलहाल तक इसमें कोई बंधन नहीं है। मगर, इस गठबंधन से तमाम नेताओं में कुछ-कुछ होने लगा है। चौधरी साहब के तेवर तेज हैं, तो रालोद में उत्साह। भले ही अभी सीटों के बंटवारे पर कोई चर्चा न हो, मगर नेताजी की सक्रियता बढ़ गई है। कुर्ते चमक उठे हैं, चाल तेज हो गई है। कुछ तीन सीटों की बात कर रहे हैं तो कुछ चार तक पहुंच रहे हैं। बहरहाल, इसपर फैसला बाद में होगा। मगर, ऐसे में राजनीतिक समीकरण बदलेंगे। कमल वाली पार्टी के लिए भी चुनौती बढ़ सकती हैं। चुनावी मुकाबला रोचक होगा। नेताजी भी समय की फिराक में रहेंगे। एनवक्त पर राजनीति में चौकाने वाले तमाम तथ्य सामने आएंगे। सीटों को लेकर हलचल तेज हो गईं हैं। गठबंधन ने नेताजी की सक्रियता बढ़ा दी है। दौड़-धूप बढ़ गई है। देखना होगा कि यह साथ कितना तटस्थ रहता है।

loksabha election banner

अंतिम व्यक्ति तक पहुंचना लक्ष्य

अब तो हर तरफ चुनावी शोर है। चौराहों पर चर्चा है तो चाय की चुस्की के साथ चुनावी बातें। चर्चा में दावेदारों को लेकर गर्माहट भी खूब है। कौन मजबूत है, पटकनी कौन दे सकेगा? सुबह ये बातें उठती हैं और ढलती शाम तक चलती हैं। दावेदार भी जनता के बीच में पहुंचकर पकड़ बनाने में लगे हैं। कमल वाली पार्टी में नेताजी ने बस्तियों की ओर रुख कर दिया है। वह शिक्षा, रोजगार और प्रशिक्षण के कार्यक्रमों के माध्यम से लोगों के बीच जा रहे हैं। नेताजी की सक्रियता से तमाम पार्टी में खलबली मच गई है। कुछ लोगों ने तो सवाल दाग दिया, बोले, ये कैसी तैयारी? सब टिकट के लिए लखनऊ और दिल्ली भाग रहे हैं और आप बस्तियों में? नेताजी ने कहा कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय के पद चिह्नों पर चल रहा हूं, उनका लक्ष्य था अंतिम व्यक्ति तक पहुंचना, मैं वही काम कर रहा हूं।

ये कैसा महोत्सव?

अमृत महोत्सव वीरों की गौरवगाथा है। आजादी के 75 वर्ष पूरे होने पर पूरे देश में यह मनाया जा रहा है। महोत्सव के माध्यम से देश के उन वीर सपूतों को भी खोज निकालना था, जिन्होंने आजादी के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया था। आजादी की लड़ाई में उनका योगदान किसी से कम नहीं था, मगर वह इतिहास के पन्नों पर चमक नहीं सके। पीएम ने भी कहा था कि ऐसे लोगों को सामने लाया जाए? मगर, जिले में अमृत महोत्सव के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। क्रिकेट मैच खेलकर महोत्सव मनाया जा रहा है। जिस देश ने हमें गुलाम बनाया था, क्रिकेट से उसका गहरा नाता है। ऐसे में अच्छा होता जिले के उन तमाम क्रांतिकारियों को खोजा जाता जो गुमनामी में हैं। मगर, उनके शौर्य और वीरता की गाथा किसी से कम नहीं है। इनकी कुर्बानियों की कहानियां नई पीढ़ी को बताए जाने की जरूरत है।

कहीं दीवार रुकावट न बन जाए

फिल्म दीवार में दो भाइयों के बीच में दीवार खिंची रहती है, मगर सालाना जलसे के मैदान में तो दीवार ही खड़ी कर दी गई। हालांकि, इसका प्रयोजन समझ से परे है। दीवार खड़ी करते समय ही हलचलें तेज हो गई थीं। आखिर जलसा कैसे होगा? जीटी रोड के सामने तमाम दुकानें रहती हैं, दुकानदारों को इससे दिक्कत आएगी। ऐसे में दो बड़ी चुनौतियां भी हैं। पहली बड़ी चुनौती जलसे को अच्छे से निपटाना होगा? दूसरी चुनौती चुनावी रैलियों में होगी। जलसे वाले मैदान में अपार सैलाब उमड़ पड़ता है। चारों ओर भीड़ ही भीड़ दिखाई देती है। ऐसे में जलसे का मैदान खुला रहना ठीक रहता है। क्योंकि चुनावी रेला उमड़ता है तो वह किसी को देखता नहीं है। कहीं, दीवार रुकावट न बन जाए? हालात को देखते हुए उसे हटाने के निर्देश न आ जाए। आश्चर्य की बात है कि सत्ताधारी पार्टी के नेताजी भी इसपर मौन हैं।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.