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बारिश की हर बूंद सहेजेंगी अलीगढ़ की सड़कें, जानिए प्‍लान Aligarh news

मानसून में अक्सर सड़कों पर जलभराव और बरसात का पानी बर्बाद होते देखा होगा लेकिन अलीगढ़ की सड़कें बारिश की हर बूंद सहेजेंगी। कुछ ऐसे ही इंतजाम नगर निगम कर रहा है। जिन सड़कों पर जलभराव अधिक होता है वहां रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाने का निर्णय लिया गया है।

By Anil KushwahaEdited By: Published: Thu, 17 Jun 2021 05:53 AM (IST)Updated: Thu, 17 Jun 2021 06:44 AM (IST)
बारिश की हर बूंद सहेजेंगी अलीगढ़ की सड़कें, जानिए प्‍लान Aligarh news
जिन सड़कों पर जलभराव अधिक होता है, वहां रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाने का निर्णय लिया गया है।

लोकेश शर्मा, अलीगढ़ । मानसून में अक्सर सड़कों पर जलभराव और बरसात का पानी बर्बाद होते देखा होगा, लेकिन अलीगढ़ की सड़कें बारिश की हर बूंद सहेजेंगी। कुछ ऐसे ही इंतजाम नगर निगम कर रहा है। जिन सड़कों पर जलभराव अधिक होता है, वहां रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाने का निर्णय लिया गया है। इससे न सिर्फ जलभराव की समस्या दूर होगी, बल्कि भूजल स्तर भी सुधरेगा। पहले चरण में 100 रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाए जाएंगे। इसके लिए स्थान चिह्नित किए जा रहे हैं। अगले साल मानसून के दौरान जल संरक्षण के लिए अलीगढ़ एक मिसाल होगा।  

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शहर में हमेशा बनी रहती है जल निकासी की समस्‍या

शहर का आकार कटोरेनुमा होने से जल निकासी की समस्या बनी रहती है। मौसम का मिजाज जरा सा तल्ख हुआ नहीं कि जल निकासी की पूरी व्यवस्था ध्वस्त हो जाती है। 68 वर्ग किलोमीटर तक फैले शहर में बारिश के बेहिसाब पानी की निकासी का दारोमदार तीन प्रमुख नालों पर है। यह व्यवस्था अंग्रेजों के शासन से चली आ रही है। इसका विस्तार नहीं किया गया। शहर की सीमा में 12.976 किमी तक फैला अलीगढ़ ड्रेन निकासी का प्रमुख स्रोत है। इसी से जाफरी ड्रेन (12.976 किमी) और मथुरा-इगलास रोड ड्रेन (4.724 किमी) जुड़े हैं, जो शहर के 29 संपर्क नालों का पानी अलीगढ़ ड्रेन तक पहुंचाते हैं। ये नाले भी बारिश में अक्सर चोक हो जाते हैं। फिर नाले ओवरफ्लो होकर सड़कों पर बहते हैं। मानसून में हर बार यही हालात बनते हैं, जबकि यहां औसतन बारिश 550 मिली मीटर ही है। संबंधित विभाग शहर की भौगोलिक स्थिति कटोरेनुमा बताकर जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेते थे, लेकिन नगर निगम ने अब बरसात के पानी के संरक्षण के लिए ठोस योजना तैयार की है। इसके लिए एक टीम रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम के लिए स्थान चिह्नित करने में लगी है तो दूसरी टीम जल निगम सहित अन्य निर्माण एजेंसियों से इस्टीमेट तैयार करा रही है। इस साल के अंत तक काम शुरू होने की उम्मीद की जा रही है।

करीब 50 हजार रुपये खर्च होंगे एक सिस्टम पर

जलभराव वाले सौ स्थानों पर वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाने पर करीब 50 लाख रुपये खर्च होने का अनुमान है। एक सिस्टम पर लगभग 50 हजार रुपये का खर्चा होगा। यह राशि निगम के फंड से दी जाएगी।

ऐसे काम करेगा सिस्टम

इंजीनियर देवेश ने बताया कि रेन वाटर हार्वेस्टिंग के लिए 60 से 80 फुट तक बोरिंग कराकर चेंबर बनाते हैं। इसके पास ही दो चेंबर और बनते हैं। तीनों ही चेंबर एक पाइप से जुड़े होते हैं। पहले चेंबर में मोटी रोड़ी डाली जाती हैं, जिससे पानी के साथ आया कचरा यहीं रुक जाए। दूसरे चेंबर में बजरी डाली जाती है, जो बारीक कचरे को रोकती है। यहां से निकला पानी मुख्य चेंबर में जाता है, जहां बोरिंग होती है। यहां भी एक जाली लगाई जाती है। सड़क पर रेन वाटर हार्वेस्टिंग के लिए कम से कम 10 इंच की बोरिंग कराई जाती है।

हार्वेस्टिंग सिस्टम बेहतर उपाय

शहर के उन्हीं मार्गों पर वाटर हार्वेस्टिंग लगाए जाएंगे, जो जलभराव से प्रभावित रहते हैं। इनमें गुरुद्वारा रोड, रामघाट रोड, खैर रोड, गूलर रोड, नई बस्ती समेत कुछ अन्य क्षेत्र चिह्नित कर भी लिए हैं।

इनका कहना है

शहर में जलभराव की समस्या को देखते हुए जगह-जगह रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाने की योजना तैयार की है। ऐसे स्थानों को चिह्नित किया जा रहा है, जहां जलभराव अधिक होता है।

प्रेम रंजन सिंह, नगर आयुक्त


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