World Stroke Day : जरा सावधान रहिए जनाब, मौसम बदल रहा है
ह्रदय और कैंसर रोग के बाद देश में सबसे खतरनाक बीमारी ब्रेन स्ट्रोक है जिसे पैरालिसिस अथवा लकवा भी कहते हैं। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसन्धान संस्थान परिषद (आइसीएमआर) की एक रिपोर्ट बताती है कि देश में हर तीन मिनट में कोई न कोई व्यक्ति ब्रेन स्ट्रोक से दम तोड़ता है।
अलीगढ़, विनोद भारती। ह्रदय और कैंसर रोग के बाद देश में सबसे खतरनाक बीमारी ब्रेन स्ट्रोक है, जिसे पैरालिसिस अथवा लकवा भी कहते हैं। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसन्धान संस्थान परिषद (आइसीएमआर) की एक रिपोर्ट बताती है कि देश में हर तीन मिनट में कोई न कोई व्यक्ति ब्रेन स्ट्रोक से दम तोड़ता है। सर्दी के मौसम में तो ब्रेन स्ट्रोक (पैरालिसिस अर्थात लकवा) का खतरा और भी बढ़ जाता है। उच्च रक्तचाप (हाई बीपी) व डायबिटीज के मरीजों तथा शराब, धूमपान व तंबाकू चबाने के शौकीनों के लिए और भी खतरे की बात है। आइए, ‘वर्ल्ड स्ट्रोक डे’ पर इस बीमारी के बारे में जानें...
दो प्रकार से है खतरा
रामघाट रोड स्थित आशा ब्रेन एंड स्पाइन सेंटर के वरिष्ठ न्यूरो सर्जन डाॅ. नागेश वार्ष्णेय ने बताया कि दुनियाभर में ब्रेन स्ट्रोक से हर साल करीब 62 लाख लोगों की मृत्यु हो जाती है। यह दो प्रकार से होता है-खून की नस का सूखना या खून की नस का फटना। प्रत्येक व्यक्ति को ब्रेन स्ट्रोक के जोखिम होते हैं। इनमें आयु, पुरुष वर्ग, पारिवारिक इतिहास को बदल नहीं सकते। जबकि, हृदय की बीमारी, धूम्रपान, शराब, शुगर, तेल चिकनाई व ब्लड प्रेशर आदि को नियंत्रित कर सकते हैं। मरीज को लक्षणों का पता चलते ही इलाज कराना चाहिए। सर्दी में ब्रेन स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है, इसलिए सावधानी जरूरी है। यूं कहें कि बचाव ही स्ट्रोक का इलाज है तो गलत नहीं होगा।
स्ट्रोक के लक्षण
- चेहरे, हाथ व पैर में कमजोरी आना।
- बोलने और समझने में कठिनाई।
- आंखों से देखने में दिक्कत में दिक्कत।
- बहुत तेज सिर दर्द।
- चक्कर आना, संतुलन खोना।
बचाव के तरीके
- समुचित फाइबर वाला भोजन-फलियां, मटर व हरी सब्जियां।
- ज्यादा शक्कर न खाएं।
- ज्यादा नमक न खाएं।
- शराब का सेवन न करें।
- आदर्श वजन बनाए रखें।
- नियमित व्यायाम करें।
लकवा के उपचार में फिजियोथेरेपी महत्वपूर्ण
नौरंगाबाद स्थित सेरेब्रल पाल्सी केयर एंड पेन मैनेजमेंट सेंटर के संचालक फिजियोथेरेपिस्ट डाॅ. हिमांशु अग्रवाल कहते हैं कि यह एक मेडिकल इमरजेंसी कंडीशन है। इसमें सर्वप्रथम न्यूरोलाॅजिस्ट ये देखते हैं कि मरीज का इलाज दवा से होगा या फिर सर्जरी से। इसमें मरीज के हाथ-पैर की ताकत वापस लाने, स्पीच ठीक करने व उसके बाद पुनर्वास के लिए फिजियोथेरेपी महत्वपूर्ण है। इसमें मरीज को एक्सरसाइज कराई जाती है। एडीएल की ट्रेनिंग दी जाती है। फिजियोथेरेपी अब काफी एडवांस हो गई है। ऐसे मरीज के इलाज में फंक्शनल इलेक्ट्रीकल स्टीमुलेशन कहते हैं। यह एक प्रकार की बायो फीडबैक थैरेपी है। इसमें लकवा का वह मरीज जिसमें सुधार आने की संभावना कम हो जाती है, इस थेरेपी से उसे भी लाफ मिलने लगता है।