अलीगढ़ में पोखर को संरक्षित कर किए जा रहे धार्मिक आयोजन, बदल गयी तस्वीर
कूड़े से अटी सूख चुकी पोखर की सुध नगर निगम ने नहीं ली। स्थानीय लोगों ने बीड़ा उठाया तो पोखर को न सिर्फ साफ किया बल्कि इसे संरक्षित भी किया गया। मिट्टी का भराव कराकर समतल मैदान तैयार किया है। अब यहां धार्मिक आयोजन होते हैं।
अलीगढ़, जागरण संवाददाता। कूड़े से अटी सूख चुकी पोखर की सुध नगर निगम ने नहीं ली। स्थानीय लोगों ने बीड़ा उठाया तो पोखर को न सिर्फ साफ किया, बल्कि इसे संरक्षित भी किया गया। मिट्टी का भराव कराकर समतल मैदान तैयार किया है। अब यहां धार्मिक आयोजन होते हैं। त्याेहार भी यहां सामूहिक रूप से मनाए जाते हैं। जन्माष्टमी पर्व यहीं धूमधाम से मनाया गया था। श्रीमद् भागवत कथा का वृहद आयोजन भी हुआ। छोटे समाराेह भी लोग यहीं कर लेते हैं। पोखर की वर्तमान तस्वीर देखकर नहीं लगता कि कभी वहां कूड़े के ढेर लगे रहते थे, जानवर विचरण करते थे। पोखर का स्वरूप ही बदल चुका है।
मायापुरी पोखर कभी पानी से लबालब रहती थी
सासनीगेट क्षेत्र में पला रोड स्थित मायापुरी पोखर कभी पानी से लबालब हुआ करती थी। इसमें विचरण करता बत्तखों का झुंड पोखर काे आकर्षक बनाता था। पोखर की जमीन पर कब्जा होने और कूड़ा-कचरा पड़ने से धीरे-धीरे यह सूखती चली गई। यहीं नहीं, 2005 में नगर निगम ने सड़क से सटे पोखर के एक बड़े हिस्से में दुकानें बनवा दीं। खाली स्थान देखा तो जल निगम ने यहां ट्यूबवेल स्थापित करा दिया। विद्युत विभाग द्वारा दो ट्रांसफार्मर पहले लगा दिए गए थे। नगर निगम अफसरों की अनदेखी से इस पोखर का उपयोग डलावघर के रूप में होने लगा।
पोखर को समतल कर चारों ओर लगाया गया लकड़ी का जाल
सफाई कर्मचारी आसपास से एकत्र किया कूड़ा यहीं डालते थे। गंदगी, दुर्गंध के चलते लोगों का बुरा हाल था। कूड़ा गिरने से नालियां चोक हो गई थीं। नालियों को पानी सड़क पर भरता। ऐसे हालात में स्थानीय लोगों ने पोखर की सफाई करने का निर्णय लिया। चंदा करके पोखर को साफ कराया। जेसीबी से कूड़ा हटवाया गया। मिट्टी का भराव कर एक बड़े हिस्से को समतल कराकर चारों ओर लकड़ी का जाल लगवा दिया, जिससे पोखर में कूड़ा न डाला जा सके। अब यहां कूड़ा नहीं डाला जाता, न ही मवेशी ही प्रवेश कर पाते हैं। स्थानीय लोग यहां छोटे, बड़े धार्मिक आयोजन करते हैं। बीते साल तत्कालीन सहायक नगर आयुक्त राजबहादुर सिंह ने यहां पार्क बनवाने का आश्वासन दिया था। उनके तबादले के बाद किसी अधिकारी ने इस पोखर की सुध नहीं ली।