माटी से जोड़े रखा हल-बैल का रिश्ता, मिट्टी भी बनी रहती है उपजाऊ Aligarh News
मीलों तक फैले खेत बैंलों के गले में बजते घुंघरू और हल से जोताई करता किसान ऐसे दृश्य अब कहां देखने को मिलते हैं। कृषि क्षेत्र में मशीनीकरण ऐसा हावी हुआ कि हल-बैल और खेतों का रिश्ता टूटता चला गया। बैलों को मजदूरी पर लगा दिया।
अलीगढ़,लोकेश शर्मा। मीलों तक फैले खेत, बैंलों के गले में बजते घुंघरू और हल से जोताई करता किसान, ऐसे दृश्य अब कहां देखने को मिलते हैं। कृषि क्षेत्र में मशीनीकरण ऐसा हावी हुआ कि हल-बैल और खेतों का रिश्ता टूटता चला गया। बैलों को मजदूरी पर लगा दिया और हल घर-घेर को सजाने की वस्तु बन गए। अब खेतों में ट्रैक्टर और कृषि यंत्रों का शाेर ही सुनाई देता है। इतने बदलाव के बावजूद कुछ ऐसे भी किसान हैं, जो माटी से हल-बैल का रिश्ता जोड़े हुए हैं। पीढ़ियों से इनके खेतों में हल-बैल से ही खेती होती आयी है। इन किसानों का मानना है कि हल की जोताई से मिट्टी उपजाऊ बनी रहती है। कृषि वैज्ञानिक भी किसानों के इस तथ्य से सहमत हैं।
अब हल-बैल नजर नहीं आते
प्रदेश में अधिकांश किसान खेती में ट्रैक्टर व अन्य कृषि यंत्रों का उपयोग कर रहे हैं। सरकारी बैनरों में भी अब हल-बैल नजर नहीं आते। जबकि, 1970-80 के दशक में किसान इन्हीं पर निर्भर थे। समय के साथ कृषि क्षेत्र में भी बदलाव हुए। पैदावार बढ़ाने की होड़ में किसान मशीनों पर निर्भर होने लगे। जोताई से लेकर फसल कटाई का काम मशीनों से होता है। कभी पूजे जाने वालेे बैलों की अब कोई अहमियत नहीं रही। गांव से विस्थापित हुए बैल शहरों में बोझा उठाते नजर आते हैं। इस मशीनी युग में अलीगढ़ के कुछ किसान अब भी सीदियों से चली आ रही परंपरा का निर्वहन कर रहे हैं। खैर तहसील क्षेत्र के गांव मऊ का नगला और इससे सटे गांवों में आज भी खेतों में बैलों के गले मेें धुंधरु की आवाज सुनाई देती है। किसान निरंजन सिंह बघेल हल-बैल से खेती करते हैं। यहीं नहीं, गांव कीतरपुर, बाकनेल, मऊ आदि गांवों में हल-बैल से अन्य खेतों की जोताई करने भी जाते हैं। इसके एवज में 150 रुपये बीघा मेहनताना मिलता है। निरंजन सिंह बताते हैं कि उन्होंने कभी ट्रैक्टर से जोताई नहीं कराई। साथी किसान भी हल-बैल से ही जोताई कराते हैं। हल से मिट्टी उपजाऊ बनीं रहती है। लागत कम आती है, पानी कम लगता है। बैलों का मलमूत्र खेतों में डलने से पैदावार बढ़ती है फसलों में कीट नहीं लगते।
भूमि में कम होता वायु संचार
उप कृषि निदेशक (शोध) डा. वीके सचान बताते हैं कि भारी-भरकम कृषि यंत्रों के उपयोग से भूमि की निचली सतह कड़ी हो जाती है। जिससे वायु संचार कम हो जाता है। भूमि में पानी रोकने और सोखने की क्षमता घट जाती है। सतह कड़ी होने से पौधों की जड़ों का विकास प्रभावित होता है। इससे जड़ें पर्याप्त पानी व पोषक तत्व ग्रहण नहीं कर पातीं। जिसका सीधा प्रभाव फसल उत्पादन पर पड़ता है। फसलें रोगग्रस्त भी होती हैं। ट्रैक्टर से तीन से चार इंच गहरी जोताई होती है। जबकि, हल से छह से सात इंच गहरी जोताई होती है। गहरी जोताई होने से मिट्टी में नीचे छिपे हानिकारक कीट ऊपरी सतह पर आ जाते हैं। जो तेज धूप और पक्षियों द्वारा नष्ट हो जाते हैं। वहीं, पैदावार बढ़ाने में सहायक सूक्ष्म जीव व जीवांश कार्बन की संख्या बढ़ती है। फसलों में रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है।