अब कोई बीमार न पड़े, फोटो में देख लीजिए दीनदयाल अस्पताल का हाल Aligarh News
ये तस्वीर पं. दीनदयाल संयुक्त चिकित्सालय की है। कासिमपुर पावर हाउस के राजू नवाबसिंह इंटर कालेज में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी हैं। चुनाव ड्यूटी के दौरान उनकी तबीयत खराब हो गई। शनिवार को परिजन कोविड जांच कराने के लिए दीनदयाल अस्पताल लेकर पहुंचे।
अलीगढ़, जेएनएन। ये तस्वीर पं. दीनदयाल संयुक्त चिकित्सालय की है। कासिमपुर पावर हाउस के राजू नवाबसिंह इंटर कालेज में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी हैं। चुनाव ड्यूटी के दौरान उनकी तबीयत खराब हो गई। शनिवार को परिजन कोविड जांच कराने के लिए दीनदयाल अस्पताल लेकर पहुंचे। सुबह 10 बजे से दोपहर डेढ़ बजे तक जांच कराने के इंतजार में ऐसे ही बैठे रहे। एंबुलेंस में कई मरीज भर्ती होने की उम्मीद लेकर भी यहां पहुंचे, परंतु उन्हें निराशा ही हाथ लगी। इलाज के लिए मरीज किस तरह जूझ रहे हैं ये आप इमरजेंसी के बाहर कुछ देर खड़े होकर देख सकते हैं। भर्ती होने के लिए लोग किस-किस से गुहार नहीं लगा रहे। कुछ लोग ही ऐसे भाग्यशाली होंगे जो इसमें सफल हो पा रहे हैं। अन्य लोगों का क्या हो रहा है? ये ईश्वर ही जाने। आज के हालत को देखकर लोग ईश्वर से दुआ कर रहे हैं किसी को बीमार मत करना।
ऐसे तो चक्र ही टूट जाएगा
कोरोना की दूसरी लहर कितनी घातक है, ये सबको पता है। कई मरीजों की जान तो अस्पताल पहुंचने के तीन से चार दिन के दौरान हुई है। इनमें अधिकांश युवा थे। उनके फेंफड़े जवाब दे गए थे। सांस लेने में भी दिक्कत हो रही थी। इन मौतों ने लोगों में अजीब से भय पैदा कर दिया है। नतीजा ये पता चल रहा है कि कुछ लोगों ने तो स्वस्थ होते हुए भी आक्सीजन का नया सिलिंडर खरीदकर घर पर रख लिया है। उनके पास फ्लो मीटर तक नहीं है। ऐसे में ये सिलिंडर उनके कोई काम का नहीं है। लेकिन इन्होंने उन गंभीर मरीजों का हक छीनने का जरूर काम किया है जिन्हें आक्सीजन की सख्त की जरूरत है। इस राष्ट्रीय आपदा में इस जमाखोरी से बचना होगा। सभी यही करने लग जाएंगे तो सुरक्षा चक्र टूट जाएगा। सरकार इतने संसाधन कहां से लाएगी। समझदारी से काम लेने की जरूरत है।
गोल्डन टाइम को न गवांए
बुखार आने के छह दिन बाद का समय बड़ा अहम होता है। समय पर जांच और इलाज होने पर मरीज को न तो आक्सीजन की परेशानी होती और न फेंफड़े ही खराब होते है। डाक्टरों की ओर से ये बातें लगातार बताई जा रही हैं। इसके बाद भी लोग लापरवाही के शिकार हो रहे हैं। बड़ी मुसीबत ये कि लोग घर पर ही इलाज शुरू कर देते हैं। विशेषज्ञ डाक्टर की राय के बगैर ही दवा लेने लगते हैं। जब छह दिन बाद भी बुखार नहीं उतरता तब तक सांस लेने में दिक्कत शुरू हो जाती है। तब तक फेंफड़ों में संक्रमण और बढ़ जाता है। इसके बाद से ही जान बचाना भारी पड़ जाता है। आजकल यही हो रहा है। मरीज को ऐसी हालत में न तो बैड मिलता और आक्सीजन। इसी लापरवाही से बचने की जरूरत है। समय पर इलाज शुरू होने से कोरोना पर जीत हासिल कर सकते हैं।