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अलीगढ़ के प्रमुख बाजार में पार्किंग न होने से दांव पर शांति व्यवस्था, अफसर चिंतित

शहर के प्रमुख उद्योगपति व जिला पंचायत सदस्य के बीच विवाद की जड़ भी यहां की पार्किंग ही है। सियासत से लेकर उद्यमियों तक में इसकी खूब चर्चाएं हैं। सही मायने में अब यहां की पार्किंग शहर की शांति व्यवस्था के लिए खतरा बन गई है।

By Sandeep kumar SaxenaEdited By: Published: Tue, 12 Jan 2021 10:39 AM (IST)Updated: Tue, 12 Jan 2021 10:39 AM (IST)
अलीगढ़ के प्रमुख बाजार में पार्किंग न होने से दांव पर शांति व्यवस्था, अफसर चिंतित
पार्किंग शहर की शांति व्यवस्था के लिए खतरा बन गई है।

अलीगढ़, सुरजीत पुंढीर। शहर का दिल कहे जाने वाले सेंटर प्वॉइंट पर कछुआ गति से सुंदरीकरण चल रहा है। निर्माण शुरू हुए करीब दो साल बीत चुके हैं, लेकिन अब तक न तो सड़क बनी और न ही फुटपाथ। इतने बड़े व प्रमुख बाजार में भी वाहन खड़े करने के लिए कोई एक स्थान तक नहीं है, जबकि यहां शहर के हर वर्ग व समाज के लोगों का आना-जाना रहता है। पार्किंग न होने के चलते अब यहां वाहन खड़े करने के लिए आए दिन विवाद होने लगे हैं। कभी दुकानदार भिड़ते हैं तो कभी वाहन स्वामी। शहर के प्रमुख उद्योगपति व जिला पंचायत सदस्य के बीच विवाद की जड़ भी यहां की पार्किंग ही है। सियासत से लेकर उद्यमियों तक में इसकी खूब चर्चाएं हैं। सही मायने में अब यहां की पार्किंग शहर की शांति व्यवस्था के लिए खतरा बन गई है। अगर बड़े अफसर नहीं चेते तो फिर आने वाले समय में दिक्कतें और बढ़ सकती हैं।

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घूंस से सनी फाइलों पर डाल रहे मिट्टी

मामला 2013 का है। शहर की एक प्रमुख कॉलोनी के ले आउट के लिए प्राधिकरण में आवेदन आता है, लेकिन यहां का बिल्डर पहले ही नियमों के खिलाफ अधिकांश प्लॉटों की बिक्री कर चुका होता है। तत्कालीन अभियंता फिर भी गठजोड़ के चलते आंख मूंदकर ले आउट पास कर देते हैं। इसमें कुछ ऐसे भी पहले से बिके हुए भूंखड होते हैं, जिन्हें आंतरिक विकास शुल्क के नाम पर बंधक बना लिया जाता है। भूखंड स्वामियों को इसकी कानों कान खबर तक नहीं लगती है। कुछ दिन बाद प्राधिकरण इन भूखंड स्वामियों के भी नियमों के खिलाफ नक्शे पास कर देता है। यह लोग अपने घरों में रहने लगते हैं, लेकिन पिछले दिनों शिकायत पर जांच होती है तो विभागीय अफसरों के होश उड़ जाते हैं। अब बिल्डर व अभियंता को बचाने के लिए भूखंड मालिकों को कठघरे में खड़ा किया जा रहा है, जबकि सही मायने में दोषी बिल्डर व अभियंता पर चुप्पी साधे हुए हैं।

माफियाराज अभी जिंदा है

सूबे में माफियाराज के खात्मे के लिए सीएम योगी अब तक के कार्यकाल में पूरी तरह से सख्त नजर आएं हैं। पूर्वांचल के माफिया अतीक अहमद, मुख्तार अंसारी पर सरकार का खूब चाबुक चला है। इनकी अवैध संपत्तियों पर सरकार ने बेहिचक बुलडोजर चलावाएं हैं, लेकिन जिले में चंद घोषित टॉप टेन राशन माफियाओं के सामने ही पुलिस-प्रशासन ने घुटने टेक दिए हैं। इन पर कई-कई मुकदमे दर्ज होने के बाद भी पुलिस जेल तक नहीं पहुंचा पा रही है। यह अब भी खुलेआम जनता का हक लूटकर राशन की कालाबाजारी में लगे हैं। खैरेश्वर चौराहे से लेकर धनीपुर मंडी तक इनके ठिकाने तय है। यह सब पता होने के बाद भी पूर्ति विभाग भी इन पर चुप्पी साधे हुए है, लेकिन यह पब्लिक सब जानती है। छोटी-छोटी मछलियों पर इकबाल कायम करने वाले अफसर आखिर चुप क्यों हैं। कहीं इनकी ही कृपा द्रष्टि से तो यह माफियाराज जिंदा नहीं है।

मतदाता, तुम हो भाग्य विधाता

25 दिसंबर को प्रधानों का कार्यकाल खत्म हो गया है। हालांकि, अभी सरकार ने चुनाव की नई तारीख का एलान नहीं किया है, लेकिन गांव देहात में इसकी सरगर्मी तेज हो गई है। दावेदारों ने सियासी गोटियां बिछानी शुरू कर दी है। पंचायत और बैठकों का दौर चल रहा है। कहीं दावेदार एकता का पाठ पढ़ा रहे हैं तो कहीं पर नाते-रिश्तेदारी को मजबूत किया जा रहा है। कुछ दावेदार तो अभी से मतदाताओं के चरणों में दंडवत प्रमाण करने लगे हैं तो कुछ हाथ जोड़ कर सुबह-शाम गांव में भ्रमण करते हैं। जो रसूखदार अब तक कार के शीशों में से भी आम जनता को देखकर मुंह फेर लेते थे, अब तो वह भी सियासी चाहत में हर रोज सुबह घरों पर दर्शन को आ जाते हैं। सही मायने में अब मतदाता ही इनका भाग्य विधाता है। अगर वह चाहेंगे तो ताज पहना देंगे और न चाहेंगे तो जमी हुई कुर्सी से भी हटा देंगे।


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