Panchayat Chunav 2021: ये डिब्बा कौन दे गया Aligarh News
गांव-गांव गली-गली में मंचायत चुनाव का सोर है। आप जहां से भी निकल जाएंगे वहां चुनाव प्रसार करने वाला दस्ता दिखाई दे ही जाएगा। जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं वैसे-वैसे प्रचार की प्रतिस्पर्धा बढ़ती जा रही है।
अलीगढ़, जेएनएन। गांव-गांव, गली-गली में मंचायत चुनाव का सोर है। आप जहां से भी निकल जाएंगे वहां चुनाव प्रसार करने वाला दस्ता दिखाई दे ही जाएगा। जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं वैसे-वैसे प्रचार की प्रतिस्पर्धा बढ़ती जा रही है। सरकार ने प्रधानी के चुनाव में खर्च के लिए यूं तो 75 हजार रुपये की सीमा तय की हो, लेकिन उम्मीदवारों काे इससे काम होता दिख नहीं रहा। खर्च का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि वोटरों के घर मिठाई के डिब्बा तक पहुंचाए जा रहे हैं। खेती के काम में व्यस्त किसानों को कभी-कभी इसकी जानकारी शाम को घर पहुंचने पर होती है। परिवार के सदस्यों से उन्हें पूछना पड़ता है कि ये डिब्बा कौन दे गया? मिठाई खाने में वोटरों को भी कोई हर्ज नहीं हो रहा। कहते हैं, चुनाव जीतने के बाद पांच साल तक ये नेता फिर हाथ आने वाले नहीं है।
शिक्षा के लिए ठीक नहीं
बढ़ते कोरोना संक्रमण ने चिंता भी बढ़ा दी है। आगे क्या होगा? जैसे तमाम सवाल लोगों के मन हैं। कई शहरों में रात्रि कफ्र्यू की खबरें भी बेचेन कर रही हैं। संक्रमण बढ़ने के कारण काम भी प्रभावित होने लगे हैं। एक साल से शिक्षा पटरी पर नहीं आई थी। अब फिर से आनलाइन कक्षाओं से ही काम चलाया जा रहा है। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी तक को आगामी प्रवेश परीक्षा टालनी पड़ी हैं। नए सत्र के सेमेस्टर की पढ़ाई भी आनलाइन कराने का निर्णय लिया है। इन मुश्किलों के बीच एक बार फिर कोरोना से बचाव के लिए गंभीर होना होगा। मास्क, शरीरिक दूरी का तो पालन करने की आदत डालनी होगी। सरकार आज से टीकाकरण उत्सव मनाने जा रही है। जिसमें 45 साल तक के लोगों को टीका लगना है। इसमें आप भी शामिल हाें। तभी कोरोना को मात दे सकते हैं। अपनों की खातिर लापरवाही को त्यागना ही होगा।
ये डर अच्छा
चौकी या थाने का प्रभार पाने के लिए बड़े पापड़ बेलने पड़ते हैं। इसके लिए कुछ को तो राजनेताओं तक की शरण लेनी पड़ती है। फिलहाल अपने यहां इसका उलट हो रहा है। नए कप्तान ने ऐसे पेच कस दिए हैं कि थानेदारी संभालनी भारी पड़ रही है। दबी जुबां से कहते नजर आ रहे हैं कि कार्रवाई से बेहतर तो पुलिस लाइन ही है। कप्तान की सख्ती का असर सड़क पर भी दिखने लगा है। जो बीट सिपाही व चौकी इंचार्ज अपने इलाके में तलाशने पर भी नहीं दिखते थे वो रोड पर दिखाई दे रहे हैं। अपने सीयूजी नंबर पंफ्लेट्स पर चश्पा कर अपराधियों की सूचना देने की अपील कर रहे हैं। ऐसा जिले में शायद पहली बार हो रहा है। पीड़ित की पुकार को अनसुना करने वालों के भी कान खुल गए हैं। उन्हें पता है अगर किसी पीड़ित को दुखी किया तो उनकी खैर नहीं है।
कांग्रेस में क्या हो रहा है
नेताओं का दल बदलना कोई नई बात नहीं है। राजनीति में ऐसा सदियों से होता आ रहा है। चुनाव के समय ऐसा ज्यादा होता है। लेकिन कांग्रेस में चुनाव से पहले ही वरिष्ठ नेता नया ढिकाना तलाशने में लगे हैं। पांच माह के अंदर दो वरिष्ठ नेता पार्टी को बाय-बाय कह चुके हैं। शुरुआत पूर्व सांसद चौ. बिजेंद्र सिंह ने की थी। अब अश्वनी शर्मा भी साइकिल पर सवार हो गए। स्थानीय पार्टी नेता इसे भले ही सामान्य मान रहे हों लेकिन पार्टी के लिए ये ठीक नहीं है। चुनाव में हर नेता के सहयोग की जरूरत होती है। नेताओं के पार्टी छोड़ने के बाद यही सोचकर बैठ जाएंगे कि उनके जाने से कोई फर्क नहीं पड़ता तो इसे उचित नहीं कहा जा सकता। मामले की गंभीरता को देखते हुए छोटे नेताओं को राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा से संगठन पर गौर करने की अपील करनी पड़ रही है।