Online Education : चैट व मैसेज के ''आधार'' बने जिंदगी की ''रीढ़'' Aligarh News
आधुनिक व आविष्कार के युग में शिक्षा को किसी भी व्यक्ति के जीवन की रीढ़ की हड्डी माना जाता है। कोविड-19 वायरस ने इंसान की इस रीढ़ की हड्डी पर वार कर जीवन को पंगु बनाने की ओर कदम बढ़ा दिया था।
अलीगढ़, जेएनएन। आधुनिक व आविष्कार के युग में शिक्षा को किसी भी व्यक्ति के जीवन की रीढ़ की हड्डी माना जाता है। कोविड-19 वायरस ने इंसान की इस रीढ़ की हड्डी पर वार कर जीवन को पंगु बनाने की ओर कदम बढ़ा दिया था। सभी स्कूल-कोलेजों के बंद होने से छात्र-छात्राओं की शिक्षा पर कड़ा प्रहार हो गया था। भारत शुरू से किसानों का देश कहा जाता रहा है इसलिए यहां शिक्षा ग्रहण करने के लिए आधुनिकता का सहारा लेना थोड़ा मुश्किल जरूर था लेकिन असंभव नहीं था। इस मुश्किल काम को आसान करने में चैटिंग व मैसेज करने के आधार माने जाने वाले साधन ही जिंदगी की रीढ़ बनकर उभरे। जिसकी कभी कल्पना भी नहीं की गई थी उस आनलाइन शिक्षा को विद्यार्थियों, शिक्षकों व अभिभावकों सभी ने आत्मसात भी किया और जीवन को आगे भी बढ़ाया।
वाट्सएप ग्रुप से की शुरुआत
कोरोना काल की शुरुआत में सबसे पहले सोशल साइट वाट्सएप को चुना गया। विद्यालयों में शिक्षकों ने वाट्सएप ग्रुप बनाकर बच्चों व उनके अभिभावकों को जोड़कर शिक्षण सामग्री देना शुरू किया। विद्यार्थी जब इनमें निपुणता हासिल कर रहे थे तो उनको कंप्यूटर व लैपटाप पर विभिन्न एप के जरिए पढ़ाई कराने की शुरुआत भी की गई।
फ्री व पेड एप की जानकारी
कोरोना काल में वाट्सएप के बाद जूम एप पर शिक्षकों व अभिभावकों ने पढ़ाई का आधार तय किया। जूम एप पर एक बार में 100 से ज्यादा बच्चों के न जुड़ने पर पता चला कि जूम फ्री एप में ये बाध्यता है। इस पर स्कूल संचालकों ने जूम पेड एप का उपयोग शुरू किया। पेड एप में लाइसेंस वर्जन मिला तो 100 से ज्यादा बच्चों को एक साथ जोड़ने में सफलता हासिल हुई। ज्यादातर अभिभावकों को भी इसकी जानकारी कारोना काल में ही हुई।
निजी स्कूलों ने बच्चों की पढ़ाई आनलाइन कराई मगर खास बात बेसिक शिक्षा परिषद के स्कूलों व माध्यमिक शिक्षा परिषद के कालेजों में देखने को मिली। किसान व मजदूरों के बच्चों के परिजनों ने भी वाट्सएप ग्रुप पर जुड़कर बच्चों की पढ़ाई कराई।