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जयंती पर युवाओं ने जंग-ए-आजादी के महानायक को किया नमन Aligarh news

परोपकार सामाजिक सेवा संस्था के तत्वावधान में गांव तोछीगढ़ में जंग-ए-आजादी के महानायक काकोरी काण्ड केे हीरो शहीद पं. रामप्रसाद बिस्मिल की 124वीं जयंती मनाई गई। युवाओं ने बिस्मिल जी की लिखी हुई कविता और शायरी पढ़ते हुए श्रद्धांजलि दी।

By Anil KushwahaEdited By: Published: Sat, 12 Jun 2021 03:30 PM (IST)Updated: Sat, 12 Jun 2021 03:44 PM (IST)
जयंती पर युवाओं ने जंग-ए-आजादी के महानायक को किया नमन Aligarh news
परोपकार सामाजिक सेवा संस्था के तत्वावधान में शहीद पं. रामप्रसाद बिस्मिल की 124वीं जयंती मनाई गई।

अलीगढ़, जेएनएन । परोपकार सामाजिक सेवा संस्था के तत्वावधान में गांव तोछीगढ़ में जंग-ए-आजादी के महानायक, "काकोरी काण्ड" केे हीरो शहीद पं. रामप्रसाद बिस्मिल की 124वीं जयंती मनाई गई। युवाओं ने बिस्मिल जी की लिखी हुई कविता और शायरी पढ़ते हुए श्रद्धांजलि दी।

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अंग्रेजों के खिलाफ दिल आग भरे रहे थे बिस्‍मिल

संस्था के अध्यक्ष इंजी. जतन चौधरी ने ग्रामीणों को उनकी जीवनी सुनाई और कहा कि बिस्मिल महान क्रांतिकारी, साहित्यकार, लेखक, शायर, कवि, दृढ़ संकल्पवान व भारत माँ के सच्चे सपूत थे। सरफरोशी की तमन्ना, अब हमारे दिल में हैं। देखना है जोर कितना, बाजु-ए-कातिल में है। उनकी ये पंक्तियाँ बतातीं हैं कि उनके दिल में अंग्रेजों के प्रति कितनी आग थी। बिस्मिल का जन्म 11 जून 1897 को उत्तर प्रदेश के शाहजहाँपुर शहर में मुरलीधर और माता मूलमती की दूसरी सन्तान के रूप में हुआ था।

10 लोगों ने दिया काकोरी कांड को अंजाम 

9 अगस्त 1925 को शाहजहाँपुर रेलवे स्टेशन से बिस्मिल के नेतृत्व में कुल 10 लोगों ने "काकोरी कांड" को अंजाम दिया। सहारनपुर-लखनऊ पैसेंजर जैसे ही लखनऊ से पहले काकोरी रेलवे स्टेशन पर रुक कर आगे बढ़ी, क्रान्तिकारियों ने चेन खींचकर उसे रोक लिया और सरकारी खजाने का बक्सा नीचे गिरा दिया और खजाना लूट लिया गया। ब्रिटिश सरकार ने इस डकैती को काफी गंभीरता से लिया और प्रत्येक क्रान्तिकारी पर गंभीर आरोप लगाये और डकैती को ब्रिटिश साम्राज्य को उखाड़ फेंकने की एक सोची समझी साजिश बताया था। उन्होंने अपनी बहादुरी और सूझ-बूझ से अंग्रेजी हुकुमत की नींद उड़ा दी और भारत की आज़ादी के लिये मात्र 30 साल की उम्र में अपने प्राणों की आहुति दे दी। उनकी प्रसिद्ध रचना ‘सरफरोशी की तमन्ना..’ गाते हुए न जाने कितने क्रन्तिकारी देश की आजादी के लिए फाँसी के तख्ते पर झूल गये।

अंतिम दर्शनों को उमड़े हजारों लोग

बिस्मिल को 19 दिसम्बर 1927 को गोरखपुर जेल में फांसी दे दी गयी। जिस समय रामप्रसाद बिस्मिल को फांसी लगी उस समय जेल के बाहर हजारों लोग उनके अंतिम दर्शनों की प्रतीक्षा कर रहे थे। हज़ारों लोग उनकी शवयात्रा में सम्मिलित हुए और उनका अंतिम संस्कार वैदिक मंत्रों के साथ राप्ती के तट पर किया गया। धर्मवीर सिंह व गौरव चौधरी ने भी अपने विचार रखे। इस मौके पर लोकेंद्र सिंह, पिंटू, सूरज, साधना, पवन, दीपक, सिंह, विवेक, अमित, सौरभ, लोकेश वार्ष्णेय, संदीप उपाध्याय, रमेश ठैनुआं, प्रतीक, किशनवीर सिंह आदि लोग मौजूद रहे।


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