योगी सरकार का नया फरमान : अब नई तकनीक में तब्दील होंगे प्रदेश भर के ईंट भट्ठे, जानिए क्या है टेक्नोलॉजी
ईंट भट्ठों से निकलने वाले धुएं से होने वाले प्रदूषण को रोकने के लिए प्रदेश सरकार ने नई पहल की है। सूबे भर के सभी ईंट भट्ठों को जल्द ही जिगजैग तकनीक में तब्दील किया जाएगा।
अलीगढ़(सुरजीत पुंढीर)। ईंट भट्ठों से निकलने वाले धुएं से होने वाले प्रदूषण को रोकने के लिए प्रदेश सरकार ने नई पहल की है। सूबे भर के सभी ईंट भट्ठों को जल्द ही जिगजैग तकनीक में तब्दील किया जाएगा। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जिला प्रशासन को पत्र जारी कर योजना पर काम करने के निर्देश दिए हैं। इस तकनीक से कोयले की खपत तो कम होगी ही, ईटों की गुणवत्ता भी सुधरेगी।
यह है तकनीक
भट़ठों में आमतौर पर ईंट पकाने के लिए छल्लियों में सीधी हवा दी जाती है। इससे हवा के साथ कोयले की राख भी धुंए में निकलती है। यह राख भट्ठे के आसपास के क्षेत्र में गिरती है और प्रदूषण में जहर घोलती है। जबकि, जिगजैग में टेढ़ी-मेढ़ी लाइन बनाकर हवा दी जाती है। इससे ईंधन कम लगता है। वैसे एक लाख ईंट पकाने में 26 टन कोयला खर्च होता है, इस तकनीक में 16 टन का ही खर्च है। ईंटों की गुणवत्ता अच्छी रहती है। साधारण विधि का इस्तेमाल करने पर भ_े में करीब 50 फीसद ईंट अव्वल निकलती हैं। इसी तकनीक से 80 फीसद तक अव्वल रहती हैं। कोयले की कम खपत होने से प्रदूषण भी कम होगा। भट्ठों के आसपास गिरने वाली राख पर भी इससे नियंत्रण लगेगा।
जिले में हैं 350 भट्ठे
जिले भर में कुल 350 ईंट भट्ठे हैं। इनमें से सिर्फ दो ईंट भट्ठे ही जिगजैग तकनीक से चल रहे हैं। वाराणसी को छोड़ प्रदेश के अन्य जिलों में भी ऐसे ही हालात हैं। वाराणसी अकेला ऐसा जिला है, जिसमें 60 से अधिक भट्ठे इसी तकनीक से चल रहे हैं। ऐसे में अब प्रदेश सरकार ने सूबे भर के सभी भट्ठों को जिगजैग तकनीक में बदलने की योजना बनाई हैं।
सुधरेगी गुणवत्ता
जिला खनन अधिकारी आरके संगम ने बताया कि सरकार प्रदूषण नियंत्रित करने के लिए बेहद सख्त है। ऐसे में जिगजैग तकनीक पर जोर दिया जा रहा है। इसके प्रयोग से भट्ठों के आसपास गिरने वाली राख की समस्या तो खत्म होगी ही, ईंटों की गुणवत्ता भी अच्छी रहती है।