अलीगढ़ के कई थानों में थानेदारों से ज्यादा चलती है मुंंशियों की
कप्तान ने जिलेभर में खूब तबादले किए हैं। जरा भी लापरवाही पर सीधे कार्रवाई भी हुई लेकिन कुछ लोग जुगाड़बाजी की आड़ में जमे रहते हैं। इस साल की शुरुआत में 150 से ज्यादा सिपाहियों को इधर से उधर किया गया। अधिकतर स्थानांतरित हो गए।
अलीगढ़, जेएनएन। जैसे एक मछली तालाब को गंदा कर सकती है, वैसे ही क्षेत्र में एक पुलिसकर्मी हालातों को बिगाड़ सकता है। कप्तान ने जिलेभर में खूब तबादले किए हैं। जरा भी लापरवाही पर सीधे कार्रवाई भी हुई, लेकिन कुछ लोग जुगाड़बाजी की आड़ में जमे रहते हैं। इस साल की शुरुआत में 150 से ज्यादा सिपाहियों को इधर से उधर किया गया। अधिकतर स्थानांतरित हो गए, लेकिन कुछ मुंशी धाक जमाए बैठे हैं। कुछ थानों में मुंशियों का वर्चस्व इतना है कि थानेदार की भी नहीं चलने देते। शहर से सटे एक थाने में 12 साल से जमे हेड मुंशी से यह पूछा गया कि आदेश आ गए हैं, आप कब जाओगे तो जवाब मिला कि हमें कोई नहीं हटा सकता। खुद पर एक जनप्रतिनिधि की छत्रछाया का भी बखान करने लगा। ऐसे बेपरवाही भरे जवाबों से सिर्फ आदेशों की अवहेलना नहीं होती, बल्कि लोगों का भरोसा भी कमजोर होता है।
बेटे ने की करतूत, खाकी ने बचाया
सराफा कारोबारी के घर लूट व हत्या का पर्दाफाश हुआ तो समाज शर्मसार हो गया। इस प्रकरण के पीछे कुछ बातें छिपी भी रह गई हैं। बेटे की करतूत के बाद कारोबारी की निजता चर्चाओं में जगजाहिर हो गई थी। जेवरात दो करोड़ की कीमत के थे। डर के चलते कारोबारी ने एफआइआर में जिक्र नहीं किया। पुलिस ने पूरी बरामदगी कर ली, लेकिन सबके सामने दिखाते तो लेने के देने पड़ सकते थे। एक करोड़ की बरामदगी दर्शाई। शेष सोना कारोबारी के सुपुर्द कर दिया। इस स्थिति में किसी का भी मन 'डगमगा' सकता था, पर इस संवेदनशील केस में अलीगढ़ पुलिस की ईमानदारी बखूबी सामने आई और कारोबारी को बचा लिया। चूंकि कप्तान खुद निगरानी कर रहे थे। हर कदम उनके निर्देश पर उठाया गया। खैर, यह कोई पहला केस नहीं है, उन सभी मामलों में खाकी ने कर्मठता दिखाई है, जिनमें सीधे कप्तान की नजर रही है।
खोदा पहाड़, निकली चुहिया
शहर में ज्वेलर्स के घर लूट की चर्चाएं थमी नहीं थीं कि पिसावा में एक और घटना ने होश उड़ा दिए। लेकिन, इस घटना में खोदा पहाड़, निकली चुहिया वाली कहावत सिद्ध हो रही है। ज्वेलर्स ने पहले पांच लाख की लूट बताई। लोगों का ध्यानाकर्षित करने के लिए फायर भी किए, लेकिन तिजोरी खंगाली तो पता चला कि लूट एक लाख की थी। अंदर की बात है कि रकम एक लाख से भी कम थी। अब इसे हड़बड़ी कहें या घटना को गंभीर बनाने का फंडा, ज्वेलर्स ने पांच लाख बता डाले। पुलिस ने दो बदमाश पकड़े हैं। ज्वेलर्स की हड़बड़ाहट का पता चला तो पुलिस ने यहां भी बचाने का काम किया। अन्यथा पुलिस को घुमाने में फंस सकते थे। इस बात में सच्चाई है तो गलती ज्वेलर्स की है। बहरहाल, 48 घंटे में घटना का पर्दाफाश करके पुलिस ने एक और वाहवाही अपने नाम कर ली है।
इतना निर्दयी होना ठीक नहीं
वाक्या 24 फरवरी की रात का है। सिविल लाइन थाना क्षेत्र में टिर्री सवार महिला से बाइक सवारों ने बैग लूट लिया था। पहले तो उस इलाके में लूट होना ही बड़ी खामी है, जो अफसरों के आवास से भरा पड़ा है। एक प्रत्यक्षदर्शी ने बताया कि घटना के दौरान पुलिसकर्मी अपनी गाड़ी समेत पास ही खड़े थे। बखूबी संज्ञान में आ गया कि लूट हुई है। भीड़ लगी है, फिर भी पुलिसकर्मियों ने घटनास्थल पर आना मुनासिब नहीं समझा और रवाना हो गए। इसी तरह सासनीगेट थाने के पास 25 फरवरी को एक पुलिसकर्मी की कार ने बाइक सवार को टक्कर मार दी। घायल को तड़पता छोड़कर पुलिसकर्मी वहां से निकल लिया। क्या खाकी इतनी निर्दयी हो गई है? खैर कार आगरा की बताई गई थी। शायद पुलिसकर्मी की तैनाती भी आगरा में ही रही होगी, लेकिन इससे ज्यादा जरूरी था कि पुलिसकर्मी वहां रुककर इंसानियत का धर्म निभाते।