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ई-बस फंसी जाम में तो शुरू हुई मन की बात, लोग बोले - शिक्षा सुधारे, रोजगार दिलाए ऐसी हो अपनी सरकार

चुनावी माहौल में सर्द हवाएं भी सियासी हो चली हैं। हर तरफ सिर्फ विधानसभा चुनाव की चर्चाएं। अब तक की सरकारों ने क्या किया नई सरकार से अपेक्षाएं विधायकों के रिपोर्ट कार्ड तक लोग इन चर्चाओं में सामने रख रहे हैं।

By Anil KushwahaEdited By: Published: Wed, 19 Jan 2022 06:18 AM (IST)Updated: Wed, 19 Jan 2022 06:30 AM (IST)
ई-बस फंसी जाम में तो शुरू हुई मन की बात, लोग बोले - शिक्षा सुधारे, रोजगार दिलाए ऐसी हो अपनी सरकार
गांधीपार्क पुराने बस अड्डे से निकलते ही ई-बस चौराहे पर जाम में फंस गई।

लोकेश शर्मा, अलीगढ़ । चुनावी माहौल में सर्द हवाएं भी सियासी हो चली हैं। हर तरफ सिर्फ विधानसभा चुनाव की चर्चाएं। अब तक की सरकारों ने क्या किया, नई सरकार से अपेक्षाएं, विधायकों के रिपोर्ट कार्ड तक लोग इन चर्चाओं में सामने रख रहे हैं। फिर चाहे आप चाय की दुकान पर हों, किसी चौपाल में, या किसी सफर पर हों, चुनावी बहस छिड़ ही जाती है। दैनिक जागरण की टीम इन मतदाताओं की 'मन की बात' सुनने के लिए स्मार्ट सिटी द्वारा संचालित एक ई-बस में चढ़ गई। कांच की बड़ी-बड़ी खिड़कियों से बाहर झांककर देखा तो गर्म कपड़ों में लिपटे राहगीर शीतलहर से ठिठुरते नजर आए। लेकिन, अंदर माहौल गरमा रहा था। आकर्षक और आरामदायक सीटों पर बैठे यात्री 'सीटों' पर ही चर्चा कर रहे थे। किस विधानसभा क्षेत्र की सीट किसको मिलेगी, बहस का ये भी मुद्दा था। बुधवार सुबह 11:30 बजे शुरू हुए डेढ़ घंटे के इस सफर में मतदाताओं ने क्या कुछ कहा?

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ई-बस भी जाम का शिकार हुई

गांधीपार्क पुराने बस अड्डे से निकलते ही ई-बस चौराहे पर जाम में फंस गई। सड़क की चाैड़ाई कम है और वाहनों की तादात ज्यादा। सड़क पर आड़े-तिरछे खड़े ई-रिक्शे और आटो मुश्किलें बढ़ा रहे थे। तभी, बुजुर्ग नरोत्तम प्रसाद मास्क उतार कर सख्त लहजे में बोले, बस मिल भी जाए तो भी आधा घंटा लग जाता है चाैराहे से निकलने में, यहां से बस अड्डा हटाने की बातें होती रहीं, पर ये हट न सका। ई-रिक्शा, आटो भी नेताओं के संरक्षण में चल रहे हैं। इनकी तादात बढ़ती जा रही है। ऐसी सरकार हो, जो यातायात व्यवस्था सुधार सके। ई-बसें चलवा कर अच्छा किया, मगर इनके निकलने के लिए जगह तो होनी चाहिए। मीनाक्षी पुल पार करते ही खिड़की की ओर बैठे सूतमिल निवासी छात्र जितेंद्र कुमार बोले, सरकार को छात्रहित में फैसले लेने चाहिए, रोजगार के साधन उपलब्ध हों। पहले बीएड, बीटीसी करने पर नौकरी मिल जाती थी, अब प्रक्रिया जटिल कर दी है। टेट करो, फिर सुपर टेट की परीक्षा दो, तब नौकरी मिलती है। एमएड करने वाले भी गिनती नहीं हैं। जबकि, ये कोर्स करने के लिए काफी पैसा खर्च होता है। ऐसी सरकार बने जो रोजगार की प्रक्रिया को सरल करे। बस अतरौली अड्डे पर पहुंची ही थी, तभी तकीपुर खैर के मुकेश कुमार बोले, विकास भी जरूरी है। विधायकों को विकास कार्यों में रुचि लेनी चाहिए। जनता की क्या जरूरतें हैं, इस बारे में भी सोचें, चुनावी घोषणा पत्र पढ़ने तक सीमित न रहें, उस पर अमल भी करें। साथ ही बैठीं योगिता ने महिला सुरक्षा पर जोर दिया। कहा, महिला सुरक्षा पर भी ध्यान देना जरूरी है। अपराध अब कम हुए हैं, महिलाएं सुरक्षित महसूस कर रही हैं। बस और ट्रेनों में सुरक्षा व्यवस्था और सख्त करनी होगी। सरकारी और निजी संस्थानों में कार्यरत महिलाओं को सम्मान मिले। बातों ही बातें में बस क्वार्सी चौराहा पार कर पीएसी तक पहुंच गई। कुछ और यात्री बस में सवार हो गए। बस चलते ही एक यात्री ने कहा, चुनावी मौसम में ही नेता नजर आते हैं, फिर पांच साल के लिए गायब। तभी, कंडक्टर सीट के पास बैठे रामप्रकाश ने तपाक से कहा, भाई वो जमाने लद गए जब नेता चुनाव में निकलते और वोट बटोर कर गायब हो जाते थे। अब जमाना बदल गया है, पब्लिक उसे ही वोट देगी, जो जनता के सुख-दुख में शामिल होगा। चाहे वो किसी दल का हो। हरदुआगंज तक चली इस बहस में कभी बेरोजगारी तो कभी राष्ट्रवाद, कानून व्यवस्था तो कभी गरीबी का मुद्दा उठा। हर मुद्दे पर यात्री अपनी राय रखते रहे।

गुंडागर्दी तो कम हुई

हरदुआगंज से यू टर्न लेकर महरावल के लिए रवाना हुई ई-बस में कुछ नए यात्री सवार हुए। बहस कानून-व्यवस्था और महिला सुरक्षा पर टिक गई। पुलिस के मनमाने रवैये पर तंज कस रहे राकेश की बात बीच काटते हुए बुजुर्ग रामपाल बोले, भाई दिल पर हाथ रखकर कहो कि प्रदेश में गुंडागर्दी कम हुईं कि नहीं। अब कहीं चेन छिनेती, लूट, डकैटी की घटनाएं सुनने में मिलती हैं? योगी सरकार में पुलिस ने न जाने कितने बदमाशों के एनकाउंटर कर दिए। राकेश बोले, ठीक है मगर एनकाउंटर किए बिना भी बदमाशों में खौफ पैदा किया जा सकता है। बदमाशों को मारना समस्या का समाधान नहीं है। कानून सख्त होने चाहिए।

विधायकों की नहीं चली

गांधीपार्क पर बस से उतर रहे मोनू बोले इस सरकार में विधायकों की नहीं चली। अफसर उनकी सुनते नहीं थे। ऐसे कई मामले में सुर्खियाें में रहे। बहनजी की सरकार में विधायक को देखकर अफसर खड़े हो जाते थे। गेट के पास बैठे राजू बोले, सरकार की यही तो खासियत है, सरकारी कामकाज में सरकार ने हस्तक्षेप नहीं होने दिया। कोई गड़बड़ी मिली तो तत्काल कार्रवाई हुई। ऐसे भी कई उदाहरण हैं।


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