अलीगढ़ में चार फरवरी से फिर खुलेगा मालवीय पुस्तकालय
पंजीकरण कल से कोरोना के चलते लंबे समय से बंद था कुछ दिन के लिए ही खुला रसलगंज चौराहा स्थित पुस्तकालय में
जागरण संवाददाता, अलीगढ़: कोरोना काल में लंबे समय से बंद मालवीय पुस्तकालय शोधार्थियों, विद्यार्थियों व अन्य लोगों के लिए चार फरवरी से खोला जाएगा। इसके लिए 19 जनवरी से दो फरवरी तक नए सदस्यों के पंजीकरण व पुस्तकालय कार्ड बनाए जाएंगे। पुराने सदस्यों का नवीनीकरण होगा। ऐसी व्यवस्था की जा रही है कि कोविड प्रोटोकाल का पालन होता रहे।
पुस्तकालय में किताबों का खजाना : पुस्तकालय में 80 हजार से अधिक किताबें हैं। इनमें साहित्य, इतिहास, सामाजिक, धार्मिक आदि किताबें हैं। पुराने साहित्यकारों व लेखकों की किताबें भी हैं। इन्हें पढ़ने वालों की संख्या घट रही है। फिर भी शोधार्थियों के लिए ज्ञानवर्धक व रोचक अध्ययन सामग्री है।
800 सक्रिय सदस्य : पुस्तकालय के करीब 800 सक्रिय सदस्य हैं। इनमें ज्यादातर विद्यार्थी हैं, जो प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी यहां आकर करते हैं। उन्हें समाचार पत्र, पत्रिका, करंट अफेयर समेत तमाम किताबें उपलब्ध कराई जाती है। शांत वातावरण में बिजली-पानी की भी सुविधा है।
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20 रुपये सदस्यता शुल्क
पुस्तकालय संचालन समिति के सचिव महेश कुमार माथुर ने बताया कि 19 जनवरी से सदस्यता व कार्ड बनाने का काम शुरू होगा। कोई भी स्थानीय व्यक्ति 20 रुपये देकर पुस्तकालय की सदस्यता ले सकता है। 240 रुपये वार्षिक शुल्क का भुगतान करके परिचय-पत्र व पुस्तकालय कार्ड प्राप्त कर सकता है। परिचय-पत्र के बिना पुस्तकालय में प्रवेश नहीं किया जा सकता। पुस्तकालय कार्ड की मदद से कोई भी सदस्य एक किताब 15 दिन के लिए घर ले जा सकता है। नवीनीकरण के भी 240 रुपये का भुगतान करना होगा। पुस्तकालय खुलने का समय सुबह 11 से शाम चार बजे है। पुस्तकालय में किताबों को आनलाइन भी किया जा रहा है।
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पुस्तकालय का इतिहास
1878 में अधिवक्ता व साहित्यकार बाबू तोताराम वर्मा ने भारतवर्षीय नेशनल एसोसिएशन का गठन किया था। इसी संस्था के माध्यम से 1894 में पुस्तकालय की नींव पड़ी। तत्कालीन गवर्नर अल्फ्रेट लायल के नाम पर इस पुस्तकालय का नाम लायल लाइब्रेरी रखा गया। आजादी के बाद हिदी को बढ़ावा देने के लिए मदन मोहन मालवीय के प्रयासों को देखते हुए इसका नाम मालवीय पुस्तकालय किया गया। मालवीय यहां दो बार आए। आजादी से पहले यहां स्वतंत्रता सेनानियों का आना-जाना रहता था।