Lockdown 4: अलीगढ़ पर टिड्डियों के हमले का खतरा, आगरा के पास जमाया डेरा Aligarh news
टिड्डी दल के हमले का खतरा अलीगढ़ पर भी मंडराने लगा है। आगरा के रास्ते टिड्डियां अलीगढ़ पहुंच सकती हैं।
अलीगढ़[जेएनएन]: टिड्डी दल के हमले का खतरा अलीगढ़ पर भी मंडराने लगा है। आगरा के रास्ते टिड्डियां अलीगढ़ पहुंच सकती हैं। कृषि विभाग को मिली जानकारी के अनुसार मंगलवार देरशाम दल आगरा से 45 किमी दूर जंगल में रुक गया है। हवा का रुख टिड्डियों का नया ठिकाना तय कर रहा है। बुधवार को दल नया ठिकाना तलाशने उड़ेगा।
आगरा के पास जमाया डेरा
पाकिस्तानी टिड्डियां अलग-अलग दिशाओं में उड़ रही हैं। सतना, छतरपुर, झांसी की ओर टिड्डियों का झुंड देखा गया। एक दल मंगलवार दोपहर को राजस्थान के ङ्क्षहडन सिटी के निकट नजर आया। शाम सात बजे तक ये दल जंगल में रुक गया। ये जंगल आगरा से करीब 45 किमी दूर है। कृषि विभाग ने अलीगढ़ में भी किसानोंंं को सतर्क किया है। कृषि अधिकारियों का कहना है कि टिड्डी दल आगरा होते हुए अलीगढ़ में प्रवेश कर सकता है।
फसलों पर हमला
सामूहिक जीवन जीने वाला टिड्डी दल फसलों पर हमला करता है। फल, सब्जी, मक्का, बाजरा, मूंग, ज्वार, उड़द की पत्तियों को टिड्डी अपने वजन से दस गुना अधिक खाते हैं। दिनभर उडऩे वाला टिड्डी दल रात में फसलों के बीच बसेरा करता है। भोर होते ही फिर उड़ान भर देता है।
बदल लेते हैं रंग
टिड्डी रंग बदलने में माहिर हैं। गुलाबी रंग की टिड्डी धुंधले सलेटी व भूरापन लेते हुए लाल रंग में बदल जाती हैं। वयस्क अवस्था में पहुंचने पर ये पीले रंग के हो जाते हैं। अंत में काले रंग के नजर आते हैं।
टिड्डी का जीवन चक्र
-10 सप्ताह तक ये जीवित रहते हैं।
-10 मीटर गहराई तक नमी वाली जमीन को चुनते हैं।
- 6 इंच गहराई में दुम को घिसकर अंडे देते हैं।
- 3-4 कोष्ठ में अंडे एक मादा टिड्डी देती है।
- 60-80 अंडे एक कोष्ठ में होते हैं।
- 3-4 दिन अंडे देने केबाद एक स्थान पर बसेरा करते हैं।
- 10-12 दिन में अंडे से शिशु टिड्डी पैदा होने लगते हैं।
- 30 दिन में अनुकूल परिस्थितियों में ये वयस्क होते हैं।
- 2-2.5 इंच लंबे कीट होते हैं और उम्र दर उम्र रंग बदलते हैं।
- 3 गुणा 5 किलोमीटर के दायरे में फैल कर बसेरा करते हैं।
- 6-7 बजे शाम को टिड्डी दल जमीन पर बैठ जाते हैं।
- 8-9 बजे के करीब सुबह अपने अगले पड़ाव के लिए उड़ते हैं।
ऐसे करें बचाव
- खेतों में शाम को आग जलाकर, पटाखे फोड़कर, थाली, ढोल-नगाड़े बजाकर आवाज करें।
- क्लोरपीरिफॉस, साइपरमैथरीन, डेल्टा मेथ्रिन कीटनाशकों का टिड्डी दल के ऊपर छिड़काव करें।
- टिड्डी दल के बैठने से लेकर उठने केबीच दवाओं का छिड़काव करें।
- टिड्डी दल के बैठने के स्थान पर जोताई करें, जिससे अंडे नष्ट हो जाएं।
35 साल पहले हुआ था हमला
करीब 35 साल पहले टिड्डी दल पाकिस्तान से चलकर अलीगढ़ समेत कई जिलों में आ गया था। उस समय कीटनाशक जैसे संसाधन नहीं थे। तब किसानों ने गड्ढा खोदकर उनमें कूड़ा-करकट भर दिया था। टिड्डी दल के बैठते ही उसमें आग लगा देते थे।
शोर से ही भगाई जा सकती हैं टिड्डियां
जिला कृषि रक्षा अधिकारी डॉ राजेश कुमार ने बताया कि टिड्डी हरी पत्तियां खाती है। जहां भी दिखाई दें, वहां कीटनाशक का छिड़काव करना चाहिए। तभी नियंत्रण किया जा सकता है। रात में ये प्रवास करती हैं, इस वक्त ढोल, थाली आदि बजाकर शोर कर इन्हें भगाया जा सकता है। टिड्डी दल को राजस्थान में देखा गया है।