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अलीगढ़ में वोटों की 'फसल' उगाने को जयंत चौधरी ने टटोली जाटों की नब्ज

पूर्व सांसद एवं रालोद के उपाध्यक्ष जयंत चौधरी निर्धारित समय से डेढ़ घंटा देरी से इगलास पहुंच गए।

By JagranEdited By: Published: Mon, 06 Aug 2018 11:42 AM (IST)Updated: Mon, 06 Aug 2018 03:51 PM (IST)
अलीगढ़ में वोटों की 'फसल' उगाने को जयंत चौधरी ने टटोली जाटों की नब्ज
अलीगढ़ में वोटों की 'फसल' उगाने को जयंत चौधरी ने टटोली जाटों की नब्ज

अलीगढ़ : इगलास विधानसभा क्षेत्र की पहचान मिनी छपरौली या जाटलैंड के रूप में होती है। सोमवार को दोपहर में लाल बहादुर शास्त्री पार्क में आयोजित सभा को संबोधित करने के लिए पूर्व सांसद व रालोद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष जयंत चौधरी सभा स्थल पर पहुंच गए। सभा के दौरान पूर्व सांसद ने यहां मौजूद जाटों की नब्ज टटोली।

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खास बात यह है भीड़ जुटाने के लिए यहां रागिनी का आयोजन किया गया ताकि पूर्व सांसद के पहुंचने तक भीड़ जुटी रहे।

बताते चलें कि चौ. चरण सिंह का प्रभाव इस सीट पर हमेशा दिखाई दिया है। राम लहर के दौरान भी यहां कमल नहीं खिल पाया। सपा का यहा से खाता भी नहीं खुल पाया, मगर पिछले चुनाव में मोदी लहर में दोनों सीटें रालोद के हाथ से निकल गई। अब लोकसभा चुनाव में रालोद के भले ही महागठबंधन में शामिल होने की अटकलें हैं, मगर वह अपनी जमीन खुद तैयार करने में लगा है।

मंशा स्पष्ट, सोच दूरगामी

रालोद ने मिशन 2019 का बिगुल फूंकने के लिए इगलास विधानसभा को चुना है। इसके पीछे मंशा स्पष्ट और दूरगामी सोच है। रालोद की अपने पुराने गढ़ के जरिए आसपास की खैर, बरौली समेत अलीगढ़ व हाथरस की दूसरी जाट बहुल सीटों पर भी नजर है। दरअसल, गठबंधन की दशा में भी रालोद अलीगढ़-हाथरस में से एक सीट पर अपना दावा बनाए रखना चाहती है। इगलास विधानसभा क्षेत्र से रालोद का खास लगाव भी है। वजह, चौ. चरण सिंह की पत्नी गायत्री देवी व बेटी ज्ञानवती इस सीट से चुनाव लड़ीं और जीती भी हैं।

इगलास में रालोद का प्रदर्शन

1969 में चौ. चरण सिंह की पार्टी भारतीय क्राति दल से प्रत्याशी गायत्री देवी, 1974 में भारतीय क्रांति दल के राजेंद्र सिंह, 1977 में बीकेडी का विलय होने पर जनता पार्टी से लड़े राजेंद्र सिंह, 1980 में चौ. चरण सिंह की जनता पार्टी सेक्युलर के राजेंद्र सिंह, 1985 में चौ. चरण सिंह की लोकदल के राजेंद्र सिंह, 1989 में जनता दल (लोकदल का विलय) के राजेंद्र सिंह, 1991 में जनता दल की डॉ. ज्ञानवती ने जीत दर्ज कर धुरंधरों को धूल चटाई।

रालोद के बुरे दिन

1993, 1996, 2002 में पार्टी को बुरे दिन भी देखने पड़े। 2004 में भी रालोद के चौ. मलखान सिंह बसपा के मुकुल उपाध्याय से हार गए। हालांकि, चौ. मलखान सिंह की हत्या के बाद 2007 के चुनाव में उनकी पत्‍‌नी विमलेश सिंह ने मुकुल उपाध्याय को हरा दिया। 2012 में पुन: रालोद के ही त्रिलोकी राम दिवाकर जीते। 2017 के चुनाव में मोदी लहर से जीत नहीं मिल पाई।

दावेदारों की अग्नि परीक्षा

सम्मेलन में लोकसभा चुनाव के लिए टिकट की दावेदारी कर रहे नेताओं की भी अग्नि परीक्षा होगी। खासतौर से इगलास व खैर के दोनों पूर्व विधायकों ने भीड़ जुटाने के लिए पूरी ताकत झोंक रखी है।


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