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1500 गांव और 225 बस्तियों तक पहुंचना आसान नहीं था....पर एक लहर ने बना दिया कारवां Aligarh news

श्रीराम मंदिर निर्माण की अलख अलीगढ़ विभाग के 1500 गांव और 225 बस्तियों तक जगाई गई। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता उत्साह के साथ शामिल हुए। टोलियां जिधर भी निकलीं उधर जयश्रीराम का जयघोष गूंज उठा। विभाग में में ऐसा अलख जगा कि हर कोई राममय हो गया।

By Anil KushwahaEdited By: Published: Fri, 05 Feb 2021 01:09 PM (IST)Updated: Fri, 05 Feb 2021 01:09 PM (IST)
1500 गांव और 225 बस्तियों तक पहुंचना आसान नहीं था....पर एक लहर ने बना दिया कारवां Aligarh news
प्रभु श्रीराम के मंदिर के निर्माण के लिए लोग सहर्ष सहयोग देने के लिए तैयार हैं।

अलीगढ़, जेएनएन : श्रीराम मंदिर निर्माण की अलख अलीगढ़ विभाग के 1500 गांव और 225 बस्तियों तक जगाई गई। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता उत्साह के साथ शामिल हुए। टोलियां जिधर भी निकलीं, उधर जयश्रीराम का जयघोष गूंज उठा। विभाग में में ऐसा अलख जगा कि हर कोई राममय हो गया। प्रभु श्रीराम के मंदिर के निर्माण के लिए सहर्ष सहयोग देने के लिए वह तैयार हो जाता। रास्ते चलते लोग टोलियों देखकर रुक जाया करते और समर्पण निधि में जरूर सहयोग करते। ऐसे टोलियां निकलती गईं और कारवां बनता चला गया। विभाग प्रचारक जितेंद्र के नेतृत्व में 15 दिनों में यह कारवां स्वयंसेवकों के अथाह त्याग, समर्पण और श्रद्धा के सैलाब में उमड़ पड़ा, फिर हर तरफ जयश्रीराम का जयघोष था।

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सबसे पहले निकाली प्रभातफेरियां

दरअसल, 15 जनवरी से पहले पूरे विभाग में निकली प्रभातफेरियां, यात्राओं ने ऐसा माहौल बना दिया था कि हर किसी की जुबान पर बस भव्य राम मंदिर की ही चर्चा थी। गांव से लेकर कस्बे तक सब समर्पण निधि में सहयोग करने को उताबले दिखाई देने लगे। अभियान से पहले ही चर्चा शुरू हो गई कि टोलियां कब आएंगी? हमें मंदिर के लिए सहयोग करना है। 500 साल की लंबी लड़ाई के बाद भव्य मंदिर का सपना जो साकार हो रहा था।

संघ की संरचना 

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विभाग इकाई में प्रशासनिक दृष्टि से अलीगढ़ और हाथरस दो जिले आते हैं। आरएसएस की दृष्टि से इसे चार जिलों में विभाजित किया गया है। अलीगढ़ महानगर, खैर, अतरौली और हाथरस जिला। इन चारों जिलों में जिला कार्यवाह हैं, जो पूरे जिले को संचालित करते हैं। जिला प्रचारक की भी अहम भूमिका होती है।

कार्यवाह की बड़ी जिम्मेदारी

अलीगढ़ महानगर के कार्यवाह रतन कुमार, अतरौली जिले के जगदीश पाठक, खैर के इंद्रदत्त और हाथरस जिले के जिला कार्यवाह रामकिशन हैं। राम मंदिर अभियान में जिला संघचालक, जिला प्रचारक और कार्यवाह की अहम भूमिका रही। 15 दिनों तक सभी इस अभियान में दिन रात जुटे हुए रहे और अभियान को सफल बनाया।

प्रभावी रणनीति से सभी तक पहुंचे

अलीगढ़ और हाथरस विभाग के विभाग प्रचारक जितेंद्र ने राम मंदिर अभियान में प्रभावी रणनीति बनाई। जितेंद्र बताते हैं कि विभाग में 1500 गांव और 225 बस्तियों तक पहुंचना आसान नहीं था। चूंकि संघ का सतत संपर्क रहता है। इसलिए दिसंबर में ही प्रचार अभियान शुरू हो गया। जन-जन तक पहुंचने के लिए आनुषांगिक संगठनों की बैठक की गईं। सभी को अलग-अलग जिम्मेदारी दी गई। बताया गया कि हमें इस महायज्ञ में अधिक से अधिक लोगों को सहयोग की आहुति दिलाई है। हमारा लक्ष्य धन एकत्र करना नहीं है, बल्कि सहयोग है। इसमें युवा, नौजवान, बुजुर्ग सभी का सहयोग लेना था। पर, आंखे तब भर आती थीं जब कोई बच्चा गुल्लक तोड़कर राम मंदिर के लिए सहयोग करता था। जितेंद्र ने कहा कि सैकड़ों बार ऐसे पल आए, जब बच्चे गुल्लक लेकर खड़े हो जाते थे। एक-एक साल के गुल्लक में एकत्र किए पैसे वह दान में दे रहे थे। कई बार मैंने मना किया कि बड़े हो जाना तब पैसे देना, मगर बच्चों में अपार श्रद्धा थी, उनके बालमन को अस्वीकार करना संभव नहीं था। सेतु निर्माण में जिस प्रकार से गिलहरी की भूमिका थी, उसी प्रकार से मंदिर निर्माण में बच्चों की भूमिका को मुझे स्वीकार करना पड़ा। यह बच्चे कभी भी बड़े होकर अयोध्या पहुंचेंगे तो गर्व से कह सकेंगे कि मंदिर निर्माण में उनका भी अंश लगा है । यहां धन की प्रमुखता नहीं हैं, यहां श्रद्धा और भाव का महत्व है, जो सभी में दिखा।

संगठनों ने दिया भरपूर सहयोग

विभाग प्रचारक जितेंद्र कहते हैं कि स्वयंसेवकों के साथ ही आनुषांगिक संगठनों का सहयोग अप्रत्याशित था। स्वप्रेरणा से लोग लगे हुए थे। तमाम बार मुझे पता नहीं चल पाता था कि कौन-कौन लगे हैं, मगर स्वयं वह समर्पण निधि लेकर आते थे। किसे कहां लगाया गया कुछ पता नहीं, बस सभी का लक्ष्य था कि अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचा जाए। इसलिए पूरे विभाग में लोग लगे हुए थे। जितेंद्र ने कहा कि ऐसे समय में वह सिर्फ टोलियों को उत्साह बढ़ाने में लगे हुए थे। इसलिए अलीगढ़ और हाथरस में संपर्क रहता था। जिससे टोलियों में उत्साह बना रहे। तमाम बार ऐसा हुआ कि सुबह अलीगढ़ से शुरुआत हुई और रात हाथरस में व्यतीत करना पड़ा। मगर, टीम ने जबदस्त सहयोग किया, जिसकी बदौलत हम गांव और कस्बे तक पहुंच सके।

सतत चलने का नाम है संघ

विभाग कार्यवाह योगेश आर्य ने कहा कि सतत चलने का नाम है संघ। 1925 में आरएसएस की स्थापना हुई। उसके बाद से संघ के सामने तमाम मुसीबतें खड़ी हुईं। प्रतिबंध तक झेलना पड़ा, मगर संघ रुका नहीं। सतत चलता रहा। शाखाएं बंद हो गईं, पर संवाद और संपर्क जारी रहा। लोगों के घर-घर जाकर संघ के पदाधिकारी संपर्क करते। आपातकाल के समय भूमिगत होना पड़ा। स्वयंसेवकों ने तमाम यातनाएं झेली पर वह झुके और रुके नहीं। संघ की राष्ट्रवादी विचारधारा के सामने तमाम शक्तियों को झुकना पड़ा और संघ आगे बढ़ता रहा। योगेश आर्य ने कहा कि राम मंदिर निर्माण में जिस प्रकार से पूरे देश भर में अभियान चला, वह अन्य संगठनों के लिए बड़ा काम हो सकता है, मगर संघ के स्वयंसेवकों ने इसे बड़े ही सहज भाव से पूर्ण कर लिया। क्योंकि वह दैनिक हैं। अर्थात संपर्क और संवाद उनके अभ्यास में है। गली-मुहल्ले और बस्तियों से पहले से वाकिफ हैं। इसलिए स्वयंसेवकों को कहीं कोई दिक्कत नहीं हुई।

उत्सव सा बना माहौल

महानगर के जिला कार्यवाह रतन कुमार ने कहा कि समर्पण निधि अभियान में उत्सव जैसा माहौल था। सभी लोग कोरोना काल के चलते लंबे समय से घरों से निकल नहीं पाए थे। टाेलियां, संपर्क, चंदन कार्यक्रम, शीत शिविर आदि सभी बंद थे। समर्पण निधि में जब स्वयंसेवक निकलें तो उन्हें वही पुराने दिन याद आ गए। संपर्क से कहीं थोड़ी सी फुर्सत मिलती तो लोग बैठ कर ठहाके लगाते और उसी से उनकी थकान मिट जाती, फिर आगे लक्ष्य की ओर बढ़ जाते। आनंद का वह पल भूल नहीं सकते। सबसे अच्छी बात रही कि इस बहाने सभी से संपर्क हो गया।

धन्य हो गया जीवन

प्रचार प्रमुख भूपेंद्र शर्मा ने कहा कि पुरानी यादें ताजा हो आईं। संपर्क के दौरान राम मंदिर आंदोलन के समय के तमाम लोग मिले। चूंकि समय कम रहता था, मगर पुरानी कहानियां सुने बिना मन नहीं मानता था। तमाम रामभक्तों ने बताया कि 1990-92 के राम मंदिर आंदोलन में वह भी अयोध्या पहुंचे थे। प्रशासन की कड़ी निगाहबानी थी। वाहन रोक दिए गए थे। मगर, खेत-मेड़ होते हुए अयोध्या पहुंचे। भूपेंद्र बताते हैं कि तमाम लोगों के तो दास्तां सुनाते हुए गला रुंध आया। वह कहने लगे कि उन्हें उम्मीद नहीं थी कि अयोध्या में प्रभु श्रीराम का मंदिर बन पाएगा। मगर, सपना साकार हुआ तो मानों जीवन धन्य हो गया। आज दुनिया में श्रीराम मंदिर की गूंज हो रही है। इससे अच्छी खुशी की और क्या बात हो सकती है?

अतरौली जिला कार्यवाह जगदीश बताते हैं कि अभियान में गजब का उत्साह था। उन्होंने तो अतरौली आरएसएस कार्यालय पर ही अपना डेरा जमा लिया था। प्रत्येक मंडल की बैठक लेना। आनुषांगिक संगठनों से बातचीत करना, टोलियों को प्रोत्साहित करना आदि काम करते थे। दिन में कहां-कहां से कलेक्शन हुआ, उसका सारा डाटा कंप्यूटर पर अपलोड कराना रहता था। जगदीश कहते हैं कि इतने बड़े अभियान में इतनी पारदर्शिता से कार्य सिर्फ आरएसएस के स्वयंसेवक ही कर सकते हैं। स्वयसंवेक एक-एक पैसे का हिसाब देते थे । स्वयंसेवकों के त्याग और समर्पण को देखकर कई बार वह भावुक हो उठे। भोजन, जलपान की चिंता किए बिना सब सुबह से शाम तक इसी कार्य में लगे हुए थे। बस सभी का लक्ष्य था अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचे। जगदीश कहते हैं कि इतने दिनों बाद लोगों से संपर्क हो गया, यह हम सभी के लिए ऊर्जा प्रदान करने वाला है।


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