Voter Awareness Rally: मतदान संग ज्ञान बढऩा भी जरूरी, जानिए अलीगढ़ में की जा रही नई पहल
Voter Awareness Rally शिक्षा के संस्थान मौजूदा समय में हर कहीं मतदान बढ़ाने के लिए छात्र-छात्राओं के कंधों पर जिम्मेदारी है। छात्र-छात्राओं के साथ शिक्षक-शिक्षिकाएं भी सुबह से मतदाता जागरूकता रैली पोस्टर प्रतियोगिता नुक्कड़ नाटक आदि गतिविधियों में लग जाते हैं।
अलीगढ़, जागरण संवाददाता। माध्यमिक विद्यालय, बेसिक शिक्षा के स्कूल हों या उच्च शिक्षा के संस्थान, मौजूदा समय में हर कहीं मतदान बढ़ाने के लिए छात्र-छात्राओं के कंधों पर जिम्मेदारी है। छात्र-छात्राओं के साथ शिक्षक-शिक्षिकाएं भी सुबह से मतदाता जागरूकता रैली, पोस्टर प्रतियोगिता, खेलकूद, नुक्कड़ नाटक आदि गतिविधियों में लग जाते हैं। मतदान को बढ़ाने के प्रयास ठीक हैं, लेकिन इसके साथ ज्ञान बढ़ाने की प्रक्रियाओं को भी नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। माध्यमिक विद्यार्थियों की छमाही परीक्षाएं नवंबर के तीसरे सप्ताह में प्रस्तावित हैं। शिक्षकों को कोर्स भी पूरा कराना है। कुछ प्रधानाचार्य इस अभियान के तहत ठप हुई पढ़ाई से ङ्क्षचतित हैं, लेकिन शासन-प्रशासन की प्राथमिकता वाले अभियान के चलते कुछ बोलने की हिम्मत जुटा नहीं पा रहे हैैं। ऐसे में आलाधिकारियों को भी इस दिशा में सोचना चाहिए कि ऐसे ताकत लगाकर मतदान तो बढ़ा लेंगे लेकिन, कहीं न कहीं ज्ञान को घटा देंगे। मतदान संग ज्ञान बढऩा भी जरूरी है।
बजट भी जरूरी है
कोरोना काल ने आधुनिकता की उपयोगिता सिद्ध कर दी है। शिक्षा हो या व्यापार, हर जगह आधुनिकता ने पांव जमाए हैैं। शिक्षा के क्षेत्र में आधुनिकता को विद्यार्थी हित में लाया जा रहा है। ये बेहतर पहल हो सकती है बशर्ते इसमें लगने वाली राशि को वहन करने के लिए जिम्मेदारों को बजट भी उपलब्ध कराया जाए। व्यवस्था बनाने के फरमान जारी करके बजट के नाम पर शांत बैठने से बगावत के सुर भी उठने लगते हैं। ऐसा ही हो रहा है शिक्षा के क्षेत्र में। कुछ दिनों पहले फरमान आया कि हर कालेज अपनी वेबसाइट बनाएंगे। इस पर संस्थानों के जिम्मेदार मुखर हो गए कि पांच से 15 हजार रुपये तक खर्च कराने का फरमान दिया है, बजट कौन देगा? हालांकि अफसरों के सामने कोई नहीं बोल रहा है, लेकिन सहमति बन गई कि कोई भी वेबसाइट नहीं बनवाएगा। ऐसी तकरार शिक्षा की बेहतरी के लिए उचित नहीं है।
सत्ता बदली तो बदले समीकरण
जिले के कुछ प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थानों में बीते दिनों सत्ता परिवर्तन हुआ है। इस परिवर्तन के साथ जी हुजूरी करने वालों के समीकरणों में भी बदलाव आया है। अपने चहेते जिम्मेदारों की छत्रछाया में सुकून की नौकरी चला रहे लोगों के पैरों के नीचे से तो मानो जमीन ही खिसक गई हो। सत्ता परिवर्तन का फैसला 'ऊपरÓ से हुआ है लिहाजा इसमें कुछ कर भी नहीं सकते हैैं। राष्ट्रनिर्माता अब ट्रैक व गियर चेंज करना ही मुनासिब समझ रहे हैं। लंबे समय से निर्धारित ट्रैक पर दौडऩे वालों का ट्रैक चेंज हो तो पसीने तो आते ही हैं। नए आकाओं के हितैषी बनने व जी-हुजुरी कर उनके दिल में जगह बनाने के प्रयास भी जोरों पर हैं। छात्रों की पैरवी करने वाले कुछ तीस मारखां भी नए आकाओं पर दबाव बनाने के तरीके खोजने में लगे हैैं। आका की सीट पर बैठने वालों को भी हल्के में नहीं लेना चाहिए।
ईमान है... लोहे पर भी डोल गया
भारत सरकार फिट इंडिया, खेलो इंडिया समेत तमाम मिशन चला रही है। इसका उद्देश्य युवाओं को खेलों से जोडऩा व उन्हें फिटनेस की ओर मुखर करना है। इसके तहत फिटनेस के मंदिर में लगाए गए व स्थापित किए गए 'लोहेÓ पर भी खेल हो गया है। लोहे से दो-दो हाथ करने वाले भी हैरान हैं कि नया लोहा आया तो पुराने को ठिकाने लगाने में कुछ जिम्मेदारों का ईमान डोल गया। अब वे जिम्मेदार उस 'मंदिरÓ के 'पुजारीÓ नहीं हैं। जब पुजारी थे तो कमान उन्हीं के हाथ में थी। मंदिर के एक कोने में कबाड़ के रूप में कुछ टूटा-फूटा लोहा पड़ा भी है, लेकिन कागजों में दर्ज लोहे की संख्या के हिसाब से मिलान किया जाए तो बड़ा घोटाला भी सामने आ सकता है। पुजारियों के नकाब भी हट जाएंगे। मगर, सवाल ये भी उठ रहा है कि आखिर बिल्ली के गले में घंटी बांधे भी तो कौन?