Question on the system : पुलिस चाहती तो बेनूर न होती नूरपुर की रंगत Aligarh news
हरियाणा सीमा से जिले की सीमा को जोड़ता टप्पल कस्बा अक्सर सुर्खियों में रहता है। 2010 में यमुना एक्सप्रेस के निर्माण के समय किसान आंदोलन कोई भुला नहीं सकता। भूमि अधिग्रहण बिल में संसोधन इस आंदोलन के बाद ही हुआ।
अलीगढ़, संतोष शर्मा । हरियाणा सीमा से जिले की सीमा को जोड़ता टप्पल कस्बा अक्सर सुर्खियों में रहता है। 2010 में यमुना एक्सप्रेस के निर्माण के समय किसान आंदोलन कोई भुला नहीं सकता। भूमि अधिग्रहण बिल में संसोधन इस आंदोलन के बाद ही हुआ। दो साल पहले बच्ची की निर्मम हुई हत्या ने पूरे देश को झकझोर दिया था। अब नूरपुर गांव में बारात चढ़त के दौरान अनुसूचित जाति व मुस्लिम परिवारों में हुई तकरार को लेकर सुर्खियों में है। जिस दिन यह विवाद हुआ था उसी दिन पुलिस सख्त कार्रवाई कर देती तो शायद ही इतनी बात बढ़ती। पहले शिकायतकर्ताओं पर रिपोर्ट दर्ज करना, अगले दिन दूसरे पक्ष पर मुकदमा दर्ज करना, कहीं न कहीं व्यवस्था पर तो सवाल खड़ा करता ही है। मकान बेचने की बात तो दूसरे दिन शुरू हुई जब लोगों को लगा कि हमारी कोई सुन ही नहीं रहा है। इसके बाद तो यह गांव राष्ट्रीय सुर्खियों में आ गया।
राजनीति ठीक, भड़काना उचित नहीं
शराब प्रकरण के साथ पिछले दस दिन से नूरपुर पर भी लोगों की निगाहें हैं। हर कोई जानना चाहता है जिस तरह के नेताओं के बयान आ रहे हैं वहां क्या हो गया? लोगों का मानना है राजनीति तो ठीक है, लेकिन ऐसी भाषा का भी इस्तेमाल न हो जो भड़काने का काम करे। नूरपुर में दोनों पक्षों को बिठाकर समाधान निकालने की जरूरत है। समानता का सभी को अधिकार है। कोई किसी का हक नहीं मार सकता है। विवाद को सुलझाने के लिए अहम भूमिका प्रशासन को निभानी होगी ताकि आगे कोई बात न हो। वैसे, विवादित रास्ते से बारात चढ़ने का विवाद तो 2006 से है। इतने साल से किसी ने उन लोगों की सुध नहीं ली जो परेशानी झेलते रहे। अब जिस तरह नेता पंचायत कर रहे हैं। हमदर्दी जता रहे हैं इससे पहले किसी ने वहां जाकर नहीं देखा। दोनों पक्षों से बात ही कर ली होती ।
व्यवस्था पर भारी जहरीली शराब
शराब प्रकरण को आज ग्यारह दिन हो गए। ऐसा कोई दिन नहीं बीता जिस दिन लोगों की जान न गई है। मौत का आंकड़ा सौ के पार पहुंच गया है। जहरीली शराब ने कई घरों की खुशियां छीन लीं। लोग अपनों के लिए बिलख रहे हैं। माफिया की जड़ कितनी गहरी थीं कि इसका अंदाजा इसी बात से लगया जा सकता है कि अवैध शराब अभी तक पीछा नहीं छोड़ रही है। माफिया से जुड़े लोगों ने शराब को नष्ट करने के बजाय खेत में फेंक दिया या नहर में बहा दिया। नहर में बह रही शराब अब लोगों की जान ले रही है। यह तब है जब प्रशासन दावा कर रहा है कि मुनादी कर लोगों को सचेत किया जा रहा है। इसके बाद भी शराब लोगों तक पहुंच रही है। इस पर और निगरानी की जरूरत है , ताकि शराब हो रही लोगों की मौत को रोका जा सके।
ये भी राजनीति है
नूरपुर और शराब प्रकरण के अलावा जिले में जिला पंचायत चुनाव को लेकर राजनीतिक उठापठक भी हुई है, जिस पर चर्चा उतनी नहीं हुई। पंचायत चुनाव के चाणक्य कहे जाने वाले ठा. जयवीर सिंह ने एक बार फिर अपनी राजनीति का लोहा मनवाया है। उन्होंने रालोद का दामन थाम चुके जिला पंचायत अध्यक्ष पद के प्रवल दावेदारों में शुमार चौधरी सुधीर सिंह को ही मना लिया। छोटे भाई का हवाला देते तुए पूर्व मंत्री ने उन्हें बीजेपी के समर्थन में कर लिया। भाजपा का ये दावा है, क्योंकि चौधरी ने अभी तक मुंह नहीं खेला है। बहराल, ये उठापटक विपक्ष के लिए चिंता का कारण बन गई है। सपा और रालोद अब इसी मंथन में लग गए हैं कि भाजपा प्रत्याशी के मुकाबले उतरने के लिए कौनसा योद्धा बेहतर रहेगा। सभी इसी तलाश में जुट गए हैं। देखना यह है? कि राजनीति के इस खेल में बाजी कौन मारता है?