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कोई अफसर हाथ में मोबाइल लिए और कान में ईयर फोन लगाए दिखे तो समझो वो मार्निंग वाक पर नहीं बल्‍कि ड्यूटी पर हैं

भोर में कोई अफसर ईयर फोन लगाकर जाता दिखे तो ये मत समझिए कि वो मार्निंग वाक कर रहे हैं। दरअसल वे अपनी ड्यूटी कर रहे हैं। उन्‍हें सुबह नगर भ्रमण का समय दिया गया। इस दौरान वे व्‍यवस्‍थाओं का जायजा ले रहे होते हैं।

By Anil KushwahaEdited By: Published: Thu, 26 May 2022 07:11 AM (IST)Updated: Thu, 26 May 2022 07:39 AM (IST)
कोई अफसर हाथ में मोबाइल लिए और कान में ईयर फोन लगाए दिखे तो समझो वो मार्निंग वाक पर नहीं बल्‍कि ड्यूटी पर हैं
नगर निगम के हालात अब बदले-बदले नजर आते हैं।

अलीगढ़, जागरण संवाददाता। शासन की सख्ती इसे कहते हैं। "शर्मा जी' ने जबसे नगर विकास की कमान संभाली है, निकायों की दशा और दिशा बदल गई है। ड्यूटी क्या होती है, कैसे होती है, अफसर सीख गए हैं। भोर होते ही ये सड़क पर नजर आते हैं। "शर्मा जी' ने पांच से आठ बजे तक नगर भ्रमण का जो समय दिया है, उस बीच अफसर हाथ में मोबाइल और कान में ईयर फोन लगाए किसी सड़क पर व्यवस्थाओं का जायजा लेते दिख जाएंगे। इन्हें देखकर ये न समझिए कि वे मार्निंग वाक पर हैं। पूछेंगे भी तो कुछ बताएंगे नहीं। सिर्फ इतना ही कहेंगे कि ड्यूटी पर हैं। इसकी वजह भी है, उस बीच अफसर नगर विकास से सीधे वीडियो कांफ्रेंसिंग पर होेते हैं। कांफ्रेंसिंग में कभी सचिव होते हैं, कभी प्रमुख सचिव, तो कभी-कभी "शर्मा जी' खुद होते हैं। वीडियो के जरिए लखनऊ से मौका मुआयना भी कर लिया जाता है। 

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निश्चिंत रहिए, आपकी पीड़ा समझते हैं

नगर निगम के हालात अब बदले-बदले नजर आते हैं। दफ्तर समय पर खुलते हैं, अफसर भी समय सीमा का पालन कर रहे हैं। "इंजीनियर साहब' का दरबार उनकी उपस्थिति में हर राेज दो घंटे लगता है। कभी-कभार लंबा भी खिंच जाता है। मगर, परवाह नहीं। दरबार में गुहार लगाने अब तो सदन के सदस्य भी आ रहे हैं, जो कभी दूरी बनाए हुए थे। समस्या चाहे सड़क की हो या सफाई की, या फिर पानी की, "इंजीनियर साहब' तत्काल निर्णय लेने की भूमिका में रहते हैं। अधीनस्थों को आसपास ही बैठाए रखते हैं, जिससे शिकायत मिलते ही संबंधित की जिम्मेदारी तय कर दी जाए। इस बदली व्यवस्था से हर कोई सुकून में है। समस्या का निस्तारण भले ही तत्काल न हो, भरोसा तो मिल ही जाता है। "इंजीनियर साहब' अक्सर कहते हैं, निश्चिंत रहिए, आपकी पीड़ा समझते हैं। इससे फरियादियों में उम्मीद जाग जाती है। पहले ऐसा कहां था, साहब व्यस्त थे, फरियादी पस्त।

आबादी बसी, तब याद आया ड्रेन

सिंचाई विभाग की कार्यशैली भी गजब है। वर्षों से जोफरी ड्रेन की सुध नहीं ली। अब आबादी बस गई है, साफ-सफाई में दिक्कत होने लगी है, तब ड्रेन की याद आयी। अब इसे कब्जा मुक्त कराने की कवायद शुरू की है। ये भी तब, जब कमिश्नर ने सख्ती दिखाई। सिंचाई विभाग की अपनी मजबूरी है। कब्जा हटाने के न साधन हैं, न संसाधन। ये पीड़ा उच्चाधिकारियों को बताई। तब संयुक्त कार्रवाई का निर्णय लिया गया। सिंचाई विभाग के साथ प्रशासन की टीम के अलावा नगर निगम को भी लगाया गया है। नगर निगम पर पर्याप्त संसाधन हैं, जिनका उपयोग इन दिनों शहर को अतिक्रमण मुक्त करने में हो रहा है। यही संसाधन ड्रेन को कब्जा मुक्त भी कराएंगे। फिलहाल कब्जे चिह्नित कर निशान लगा दिए गए हैं। हिदायत दी गई है कि लोग खुद ही कब्जे हटा लें तो ठीक, वरना कार्रवाई तो होनी ही है।

पारदर्शी होगी व्यवस्था

नगर निगम में कर्मचारियों की भर्ती प्रक्रिया में कुछ बदलाव क्या हुए, विरोध होने लगा। कर्मचारी पुरानी व्यवस्था से खुश थे। जबकि, अफसरों का दावा है कि नई व्यवस्था और प्रभावी है। अब किस-किस को ये समझाएं। सभी अपना हित देख रहे हैं। नगर निगम को व्यवस्थाएं बेहतर करनी हैं, इसलिए ये जरूरी है। कुछ कर्मचारी नेता हैं, जो नई व्यवस्था में ढलना नहीं चाहते। यही वजह है कि आए दिन किसी न किसी मुद्दे को लेकर विरोध हो जाता है। कर्मचारी नेताओं को पुराने कर्मचारियों के भविष्य की चिंता सता रही है। कह रहे हैं कि नई व्यवस्था में उनका कहीं अहित न हो जाए। विरोध और आशंकाओं के बीच "इंजीनियर साहब' ने स्पष्ट कर दिया कि व्यवस्थाएं पारदर्शी होंगी। किसी का अहित नहीं होने दिया जाएगा। पुराने कर्मचारियों को अनुभव प्रमाण पत्र भी देंगे। ये बात कर्मचारी नेताओं को कितनी समझ आती है, ये समय ही बताएगा।


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