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शौर्य और वीरता का परिचय देता है होला महल्ला, गुरु गोविंद सिंह ने की थी शुरुआत, जानिए विस्‍तार से Aligarh News

पूरा देश अबीर-गुलाल और रंगों से सराबोर हो जाता है वहीं सिख समाज में प्राचीन समय से होला महल्ला (होली) प्रचलित है। होला महल्ला में शौर्य और तेज का प्रदर्शन किया जाता है। हालांकि सिख समाज अब सिर्फ इसदिन पुरानी शौर्य गाथा को याद करते हैं।

By Sandeep Kumar SaxenaEdited By: Published: Sun, 28 Mar 2021 12:50 PM (IST)Updated: Sun, 28 Mar 2021 12:50 PM (IST)
सिख समाज अब सिर्फ इसदिन पुरानी शौर्य गाथा को याद करते हैं।

अलीगढ़, जेएनएन। होली पर जहां पूरा देश अबीर-गुलाल और रंगों से सराबोर हो जाता है, वहीं सिख समाज में प्राचीन समय से होला महल्ला (होली) प्रचलित है। होला महल्ला में शौर्य और तेज का प्रदर्शन किया जाता है। हालांकि, सिख समाज अब सिर्फ इसदिन पुरानी शौर्य गाथा को याद करते हैं।

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ऐसे हुई थी होला महल्‍ला की शुरूआत

जत्थेदार भूपेंदर सिंह बताते हैं कि विक्रमी संवत 1757 में होलागढ़ नामक स्थान पर होला महल्ला मनाया गया था। यह होली के दूसरे दिन मनाया जाता है। सिखों के दशवें गुरु गुरु गोविंद सिंह ने होली की जगह होला महल्ला की शुरुआत की थी। उन्होंने होली के दिन हुड़दंग मचाने की बजाय युद्ध कौशल को तरजीह दी। इसलिए होली के दूसरे दिन युद्ध कौशल का प्रशिक्षण दिया जाता था। दो सेनाएं तैयार की जाती थीं। एक दल होलागढ़ पर काबिज हो जाता था, वह किले की रक्षा करता था। किसी भी सूरत में वह दुश्मन को किले तक नहीं आने देता था। दूसरा दल किले पर आक्रमण करने की कोशिश में रहता था। उसका सिर्फ एक ही उद्देश्य होता था कि किसी भी तरह से किले पर कब्जा किया जाए। इसके चलते दोनों दलों में जमकर युद्ध हुआ करता था। घंटों संघर्ष चलता था। तीर-तलवार खूब चलते थे। यदि दल ने कब्जा कर लिया तो फिर जयघोष लगाते थे।

युुद्ध जीतने वाले मनाते थे जश्‍न 

युद्ध जीतने वाला दल खूब उत्साह और उल्लास मनाया जाता था। इस तरह से युद्ध के तरीके सीखे जाते थे, पैतरेबाजी भी होती थी। युद्ध में शौर्य और प्रदर्शन देखते ही बनता था। दोनों दल अपनी पूरी ताकत लगा दिया करते थे। युद्ध जीतने वाला दल ढोल-नगाड़े पर खूब नृत्य किया करता था। सरदार भूपेंदर सिंह ने बताया कि गुरु गोविंद सिंह ने इसलिए होला महल्ला की शुरुआत कराई थी, जिससे लोग होली के दिन सिर्फ रंगों में ही न डूबे रहे। वह अपनी शौर्य और वीरता को भी याद रखें। इस बार भी होली पर प्राण प्रण से ले कि रंग-बिरंगे फूलों वाले और फलदार वृक्ष लगाएं। धरती को मिलावटी रंगों से बचे। एक-दूसरे को शुभकामनाएं दें। आपसी प्रेम और सौहार्द बनाए रखें।


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