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सिर पर 'ईमानदारी' का कैमरा

अलीगढ़ महोत्सव में इस बार पारदर्शिता का नया फंडा अपनाया गया है।

By JagranEdited By: Published: Mon, 29 Nov 2021 07:15 PM (IST)Updated: Mon, 29 Nov 2021 07:15 PM (IST)
सिर पर 'ईमानदारी' का कैमरा
सिर पर 'ईमानदारी' का कैमरा

सुरजीत पुढ़ीर, अलीगढ़: अलीगढ़ महोत्सव में इस बार पारदर्शिता का नया फंडा अपनाया गया है। प्रभारी अधिकारी ने कर्मचारियों व अफसरों के सिर के ऊपर सीसीटीवी कैमरा लगवा दिया है। सभागार में भी कैमरों की व्यवस्था हुई है। इस कैमरे की नजर टेबल के नीचे से लेकर सामने बैठे व्यक्ति तक रहती है। इससे नुमाइश में बैठने वाले कर्मचारियों की कार्यशैली भी बदल गयी है। किसी काम के लिए कोई जैसे ही अंदर आता है, कर्मचारियों का एक हाथ कैमरे की ओर इशारा करने लगता है। गेस्ट हाउस के बाहर जमा होने वाली भीड़ भी इन कैमरों से अलर्ट रहती है। भले ही साहब ने खुले तौर से कर्मचारियों पर नजर रखने के लिए यह साहसिक निर्णय लिया हो, लेकिन पर्दे के सक्रिय गिरोह की मिलीभगत से होने वाले खेल के भंडाफोड़ के लिए भी कुछ विशेष प्रयास करने होंगे। इस खेल को खत्म किए बिना नुमाइश में पारदर्शिता की बात बेमानी होगी।

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कमीशन का काला दाग

कोई भी जनप्रतिनिधि अधिकारों का सदुपयोग करता है तो उसकी खूब वाहवाही होती है। अगर कोई दुरुपयोग कर रहा है तो उस पर सवाल भी उठने चाहिए। जिले में भी इन दिनों एक ब्लाक स्तरीय माननीय अपने अधिकारों के खिलाफ काम कर रहे हैं। इन्होंने स्ट्रीट लाइट की एक निजी कंपनी से कमीशन के फेर में पूरे ब्लाक का ठेका ले रखा है। वह इस कंपनी के माध्यम से ग्राम पंचायतों में स्ट्रीट लाइट की आपूर्ति करा रहे हैं। जब यह लाइट पंचायतों में पहुंचती हैं तो प्रधानों को लगता है कि ब्लाक के बजट से इसकी आपूर्ति हुई है, लेकिन लाइट लगने के बाद माननीय सचिवों पर पंचायत निधि से भुगतान के लिए फाइल भेज देते हैं। सचिवों को ब्लाक स्तरीय अफसरों के दबाव में यह रकम देनी पड़ती है। इस खेल से माननीय की कमाई तो बढ़ गई है, लेकिन कमीशन का काला दाग भी लग गया है।

काम सरकारी, लोग बाहरी

सरकारी कार्यालय में जो कुछ होता है, वह किसी से छिपा नहीं हैं। जिला मुख्यालय हो या फिर तहसील। अधिकांश कार्यालयों में सरकारी कर्मचारियों ने अपनी सहायता के लिए निजी लोग रख रखे हैं। अफसरों के सामने भी यही सरकारी कर्मियों की तरह जिम्मेदारी संभालते हैं। लेखपाल व सचिव तो इस मामले में सबसे ऊपर हैं। इनके अधिकतर काम यही बाहरी लोग करते हैं। लेन-देन का खेल भी इन्हीं के माध्यम से होता है। जन्म-मृत्यु से लेकर आय-मूल में यही लोग वसूली करते हैं। बिना पैसे प्रमाण पत्र बनवाने वाले लोगों को परेशान किया जाता है। सिफारिशें भी दरकिनार कर दी जाती हैं। अगर अफसरों से कोई इन लोगों की शिकायत करता है तो वह भी बाहरी बताकर पल्ला झाड़ लेते हैं, लेकिन इस खेल में पिस तो जनता रही है। मेहनत मजदूरी कर पेट पालने वाले लोगों को भी प्रमाण पत्र के नाम पर मोटी धनराशि देनी पड़ती है।

गठजोड़ से राजस्व को पलीता

खनन ओवरलोडिग में माफिया का अफसरों के साथ गठजोड़ फिर सामने आया है। जिले में इन दिनों रोड़ी, गिट्टी, मौरंग लेकर आने वाले ट्रकों से वसूली का खेल चल रहा है। खैर से लेकर जवां तक एक गिरोह उगाही में लगा हुआ है। अफसरों की मिलीभगत के चलते यह ट्रकों के संचालकों से महीनेदारी वसूल रहे हैं। दावा है कि एक ट्रक से चार से पांच हजार रुपये महीने के हिसाब से लिए जा रहे हैं। हर दिन करीब चार सौ से पांच सौ ट्रक ओवरलोडेड गुजरते हैं। अगर कोई ट्रक संचालक इस वसूली का विरोध करता है तो अफसर इस गिरोह के कहने पर उसे पकड़कर बंद कर देते हैं। चार-पांच दिन इससे काम प्रभावित होता है और 50 हजार से ज्यादा का जुर्माना देना पड़ता है। ऐसे में ट्रक संचालक महीनेदारी देना ज्यादा पसंद करते हैं। हालांकि, इस खेल से सरकारी राजस्व का जरूर बंटाधार हो रहा है।


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