World Music Day: हरिदास के पद गूंजे, रविंद्र जैन की वीणा भी Aligarh News
संगीत के बिना मनुष्य का जीवन अधूरा है। सुख हो या फिर दुख संगीत सुन लेते हैं। सुर-संगीत का अलीगढ़ से गहरा नाता रहा।
अलीगढ़ [जेएनएन]: संगीत के बिना मनुष्य का जीवन अधूरा है। सुख हो या फिर दुख, संगीत सुन लेते हैं। सुर-संगीत का अलीगढ़ से गहरा नाता रहा। मध्यकाल में यहां बैजु बावरा व तानसेन जैसे संगीतज्ञों के आराध्य स्वामी हरिदास के पद गूंजे तो सैकड़ों साल बाद महान महान संगीतकार रविंद्र जैन ने भी वीणा के तार छेड़े। कव्वाल हबीब पेंटर भी इस कठिन डगर पर चले। तलत महमूद जैसे फनकार भी यहां पढ़ाई के लिए आए। आइए, 21 जून को विश्व संगीत दिवस पर ऐसी कुछ हस्तियों को याद करें...
संगीतकार रविंद्र जैन,कव्वाल हबीब पेंटर
विख्यात संगीतकार-गीतकार रविंद्र जैन का जन्म 28 फरवरी 1944 को छिपैटी में संस्कृत के प्रकांड विद्वान और आयुर्वेदाचार्य इंद्रमणि जैन के घर हुआ। जन्म से ही नेत्र दिव्यांग थे। बचपन में ही संगीत से जुड़ाव हो गया। भक्ति गोष्ठी से लेकर मायानगरी तक अपने संगीत की धमक जमाई। 1985 में आई फिल्म 'राम तेरी गंगा मैली' में बेहतर संगीत के लिए फिल्म फेयर अवार्ड भी मिला। सरकार ने उन्हें पद्मश्री सम्मान से भी नवाजा। दो जासूस, 'चोर मचाए शोर', 'गीत गाता चल', 'चितचोर', 'अंखियों के झरोखों से' हिना व 'विवाह' सरीखी फिल्मों में संगीत दिया। धारावाहिक रामायण और श्रीकृष्णा में संगीत के साथ अपनी आवाज भी दी। नौ अक्टूबर 2015 को उनका निधन हो गया।
कव्वाली के उत्साद हबीब पेंटर
मशहूर शायर व कव्वाल हबीब पेंटर का जन्म 19 मार्च 1920 को उस्मानपाड़ा में हुआ। कव्वाली को देश विदेश में लोकप्रिय बनाया। पारंपरिक नातिया कलामों में अमीर खुसरो, फरीद, दादू, कबीर आदि सूूफी संतों की रचनाओं को भी शामिल किया। उनकी कव्वाली 'बहुत कठिन है डगर पनघट की' 'एक जमाने में होठों पे चढ़ी' खूब सराही गई। बुलबुले ङ्क्षहद पार्क उन्हीं को समर्पित किया गया है। 22 फरवरी 1987 को उनका निधन हुआ।
स्वामी हरिदास
ध्रुपद के जनक स्वामी हरिदास का जन्म विक्रम संवत 1535 में भाद्रपक्ष शुक्ल पक्ष की अष्टमी को हुआ। जन्म के बारे में मत भिन्नता है। कहा जाता है कि पिता आशुधीर व माता के साथ तीर्थयात्रा करते हुए अलीगढ़ के ग्राम कोल में बस गए। यहां खेरेश्वर धाम में काफी समय बिताया। इन्हें ललिता सखी का अवतार भी माना गया है। तानसेन व बैजु बावरा जैसे संगीतकारों ने इनसे ही दीक्षा ली। 25 वर्ष की उम्र में वृंदावन चले गए। अकबर भी इनका संगीत सुनने आए थे। विक्रम संवत 1660 में निधिवन में उनका निकुंजवास हुआ।
गायक तलत महमूद
'ए मेरे दिल कहीं और चल', 'तस्वीर बनाता हूं, तस्वीर नहीं बनती', 'जलते हैं जिसके लिए' जैसे सदाबहार गीतों को अपनी आवाज देने वाले प्रख्यात गीतकार व अभिनेता तलत महमूद का भी अलीगढ़ से नाता रहा। फिल्मों के लिए अनेक गीत कंपोज भी किए। लखनऊ में पैदा हुए तलत महमूद अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के छात्र रहे।