हरे पेड़ पर्यावरण के लिए मददगार हैं, इन्हें काटकर होलिका में न जलाएं Aligarh news
घटती हरियाली और बढ़ता प्रदूषण मौजूदा समय की सबसे बड़ी समस्या है। ऐसी परिस्थितियों में मुश्किलें तब बढ़ जाती हैं जब धार्मिक आयोजनों में हरियाली का दहन होता है। ये बात किसी से छिपी नहीं है कि हरे पेड़ पर्यावरण में सहायक हैं।
अलीगढ़, जेएनएन : घटती हरियाली और बढ़ता प्रदूषण मौजूदा समय की सबसे बड़ी समस्या है। ऐसी परिस्थितियों में मुश्किलें तब बढ़ जाती हैं, जब धार्मिक आयोजनों में हरियाली का दहन होता है। ये बात किसी से छिपी नहीं है कि प्रतिवर्ष होली जलाने के लिए काफी तादात में हरे पेड़ों का कटान होता है। इससे पर्यावरण तो प्रभावित होता ही है, प्रदूषण भी बढ़ता है। ऐसे में आवश्यकता है कि भारतीय संस्कृति के मूल्यों को अपनाकर पर्यावरण बचाने की दिशा में अहम कदम उठाए जाएं। होलिका दहन में गोकाष्ठ बेहतर विकल्प है, जिसे जागरुक लोग अपना रहे हैं।
हरे पेड़ों को काटना निषेध
होलिका दहन के लिए सूखी लकड़ियों के अलावा हरे पेड़ भी काटे जाते हैं। पर्यावरण प्रेमी हरीशंकर उपाध्याय कहते हैं कि सनातन धर्म और शास्त्रों के अनुसार हरे पेड़ों को काटना निषेध है। होलिका दहन के लिए भी हरे पेड़ नहीं काटने चाहिए। वर्तमान समय में लोग भारतीय संस्कृति को भूल रहे हैं। शास्त्रों के मुताबिक होली में उपलों का प्रयोग होता है। उपलों की ही पूजा होती है। पुरातन काल में उपलों के अलावा फसल अवशेष जैसे, धान का पुआल, अरहर की लकड़ी आदि का उपयोग किया जाता था। अब यह देखने को नहीं मिलते। पहले संयुक्त रूप से होली जलाई जाती थी। अब जगह-जगह होली जलाई जा रही है। यह स्थिति ठीक नहीं है। हाेलिका दहन के लिए गोकाष्ठ बेहतर है। इससे प्रदूषण भी नहीं होता।
इनका कहना है
पर्यावरण को बचाने की दिशा में हर किसी को सोचना होगा। यह पूरे समाज के हित में है। हरे पेड़ों को काटकर होली जलाना कतई सही नहीं है। शास्त्र भी इसकी अनुमति नहीं देते। गोकाष्ठ होली जलाने के लिए उपयुक्त है। इसका उपयोग होने लगा तो हरे पेड़ कटने से बच जाएंगे।
श्यामलाल गिरी, कृष्णा विहार
किसी धार्मिक आयोजन के लिए हरे पेड़ों को काटना ठीक नहीं है। यह हमारी संस्कृति भी नहीं है। होलिका दहन के लिए गोकाष्ठ उपयुक्त है। इसके जलने से प्रदूषण भी नहीं होता। पर्यावरण को बचाने के लिए सोच को बदलना होगा।
सुरेश चंद वार्ष्णेय, राम विहार