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छात्र जीवन में खायी कसम को किया पूरा, विधायक बनने के बाद ही बांधा सेहरा

UP Assembly Elections 2022 काजीपाड़ा जयगंज के मूल निवासी ख्वाजा हलीम ने छात्र जीवन से ही सियासी सफर शुरू कर दिया था। जमींदार परिवार में जन्मे ख्वाजा की आर्थिक स्थिति मजबूत थी। एएमयू से एमएससी करने के दौरान उन्होंने छात्रसंघ अध्यक्ष पद पर चुनाव लड़ा।

By Anil KushwahaEdited By: Published: Wed, 26 Jan 2022 08:23 AM (IST)Updated: Wed, 26 Jan 2022 08:47 AM (IST)
छात्र जीवन में खायी कसम को किया पूरा, विधायक बनने के बाद ही बांधा सेहरा
छात्र जीवन में कसम खाने वाले ख्वाजा हलीम ने विधायक बनने के बाद ही शादी की थी।

लोकेश शर्मा, अलीगढ़ । UP Assembly Elections 2022 सियासत से जुड़े किस्से भी रोचक होते हैं। ऐसा ही एक किस्सा कैबिनेट मंत्री रहे ख्वाजा हलीम से जुड़ा है। छात्र जीवन से राजनीति में कदम रखने वाले ख्वाजा ने कसम खाई थी कि जब तक विधायक नहीं बन जाता, शादी नहीं करुंगा। तब वे लोकदल से चुनाव लड़कर विधायक बने थे। विधायकी का ताज पहनने के बाद ही उन्होंने सेहरा बांधा। राजस्थान के मुख्यमंत्री रहे बरकत उल्ला खान की इकलौती बेटी नसरीन से उनका निकाह हुआ। पूर्व कैबिनेट मंत्री अब दुनिया में नहीं हैं। लेकिन, जब भी चुनावी बिगुल बजता है तो शहनाई की वो धुन सुनाई दे ही जाती है।

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छात्र जीवन से शुरू किया सियासी सफर

काजीपाड़ा, जयगंज के मूल निवासी ख्वाजा हलीम ने छात्र जीवन से ही सियासी सफर शुरू कर दिया था। जमींदार परिवार में जन्मे ख्वाजा की आर्थिक स्थिति मजबूत थी। एएमयू से एमएससी करने के दौरान उन्होंने छात्रसंघ अध्यक्ष पद पर चुनाव लड़ा, लेकिन वह हार गए। 1970 में वह यूथ कांग्रेस से जुड़े। 1977 में कांग्रेस में शामिल होकर मुस्लिम नेता के रूप में अपनी पहचान बनाई। इसी बीच वह सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव के संपर्क में आए गए। कांग्रेस की स्थिति भी तब ठीक नहीं थी। पार्टी में विघटन के चलते उन्होंने दूरी बना ली। तभी मुलायम सिंह की सलाह पर वह लोकदल में शामिल हुए। लोकदल को भी एक मजबूत मुस्लिम नेता मिल गया था। यही वो समय था, जब ख्वाजा हलीम के मन में विधायक बनने की तमन्ना हिलौरे मारने लगी। परिवार के नजदीकी मुकेश सर्यवंशी बताते हैं कि ख्वाजा हलीम ने कसम खाई थी कि जब तक विधायक नहीं बन जाता, शादी नहीं करुंगा। 1980 में लोकदल ने उन्हें शहर सीट से टिकट दिया। मिश्रित आबादी वाले इस विधानसभा क्षेत्र में मुस्लिम समाज ने उन्हें एकतरफा वोट दिया। तब वह पहली बार विधायक बने। कसम पूरी होने के बाद उन्होंने निकाह किया था।

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बेटे को नहीं मिला टिकट

ख्वाजा हलीम के बेटे ख्वाजा हसन जिब्रान ने इस चुनाव में सपा से कोल सीट पर दावेदारी की थी। प्रचार-प्रसार में भी जुटे हुए थे। लेकिन, पार्टी हाईकमान ने अज्जू इश्हाक को प्रत्याशी घोषित किया।

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नेहरू परिवार के करीबी

कांग्रेस में लंबा सफर तय कर चुके ख्वाजा हलीम नेहरू परिवार के करीबी थे। मुलायम सिंह यादव के विश्वासपात्रों की सूची में भी उनका नाम पहले था। सपा के गठन में संस्थापक सदस्य रहे। सपा सरकार में वह अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष बने। 2005 में उन्हें औद्योगिक विकास मंत्री बनाया गया। अखिलेश सरकार में भी यही मंत्रालय संभाला। पर्यटन विभाग में सलाहकार भी रहे। 2016 में उन्होंने शेखाझील को पक्षी विहार घोषित कर इसके सुंदरीकरण के लिए एक करोड़ का बजट स्वीकृत कराया, जिसे बढ़ाकर चार करोड़ कर दिया गया। फरवरी, 18 में उनका निधन हो गया।


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