आधुनिकता की दौड़ में मजबूर, बेबस और लाचार इंसान, इससे बड़ा सबक कोई हो नहीं सकता Aligarh news
जीवन में कुछ सबक ऐसे होते हैं जिसे लोग ताउम्र नहीं भूलते हैं। महामारी भी ऐसा सबक है। कुछ दिन पहले हर तरफ चीत्कार थी। श्मशान में चिताएं धधक रही थीं चारों तरफ कोहराम मच हुआ था। मानों ऐसा लग रहा था कि सृष्टि नहीं बचेगी।
अलीगढ़, जेएनएन । जीवन में कुछ सबक ऐसे होते हैं, जिसे लोग ताउम्र नहीं भूलते हैं। महामारी भी ऐसा सबक है। कुछ दिन पहले हर तरफ चीत्कार थी। श्मशान में चिताएं धधक रही थीं, चारों तरफ कोहराम मच हुआ था। मानों ऐसा लग रहा था कि सृष्टि नहीं बचेगी। शायद इतना मजबूर, बेबस और लाचार इंसान कभी नजर आया हो। करोड़पति से लेकर ओहदेदार भी एक-एक सांस की भीख मांग रहे थे। प्रकृित ने दो मिनट में इंसान की हैसीयत बता दी। यह वक्त सोचने, समझने और सीखने का है। प्रकृति से खिलवाड़ मत कीजिए। पेड़-पौधों का संरक्षण करें, उन्हें कटने मत दीजिए, गांवों को शहर मत बनाएइ, उन्हें आबाद रहने दीजिए, अट्टालिकाओं में इंसानियत का दफन मत कीजिए। यदि इस महामारी से भी सबक नहीं ले सकें तो फिर भविष्य और भी खतरनाक होने वाला है। प्रकृति का तांडव और भयानक हो जाएगा। इसलिए इंसान बनिए। प्रकृति और मानवता का आवरण कीजिए।
रणनीति बदल देंगे
हाथरस का बदला राजनीतिक परिदृश्य हर किसी को चौकाने वाला है। यहां सिर्फ राजनीति नहीं हुई। बल्कि राजनीति का असली चेहरा सामने आया। देखिए न जिस युवा नेता को अपनी मां के चुनाव के प्रचार के लिए दो मिनट में पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया, बाजी को अपने हाथ में करने से लिए उसी युवा नेता और उनकी मां को पार्टी में शामिल करने में सेकेंड भर की देरी नहीं लगाई गई। बकायदा पार्टी नेताओं ने गुणगान भी किया। इस सारे खेल से अलीगढ़ गदगद है। कमल वाले नेता अपनी मुस्कुराहट छिपा नहीं पा रहे हैं, उन्होंने यहां भी मंशा बना ली है। यदि खेल यहां नहीं बनता दिखा तो रणनीति बदल देंगे। हालांकि, इस खेल में पूर्व मंत्री के छोटे भाई हासिए पर आ गए हैं। जिस तरह से पानी पी-पीकर वो पोल खोल रहे, अब दोराहे पर हैं। हालांकि, कहते हैं जंग और राजनीति में सब जायज है।
बंदूक छोड़कर सिपाही भाग तो नहीं आता
देश की सीमा पर हर समय युद्ध नहीं होता है। पर, देश का जवान पूरी मुस्तैदी से डटा रहता है। अचानक युद्ध छिड़ने पर वो बंदूक छोड़कर भाग नहीं आता है। वो देश की रक्षा के लिए मर-मिटने को तैयार रहता है। उसे उस समय बस अपने वतन से प्रेम होता है। घर-परिवार किसी की भी चिंता वो नहीं करता है। मगर, देश के अंदर ऐसा नहीं होता है। अभी महामारी के समय जिस प्रकार हाहाकार मचा हुआ था, उससपर सरकारी अस्पतालों के अंदर से आ रही खबरों ने झकझोर कर रख दिया था। कोई मरीज पानी के लिए परेशान था तो कोई दर्द से तड़प रहा था। तीमारदार डाक्टरों के पैर छूकर गिड़िगड़ा रहे थे, मगर कोई नब्ज टटोलने की जहमत नहीं उठा रहा था। आप संसाधन की कमी कह सकते हैं, मगर सीमा पर डटा जवान भी कम संसाधनों के साथ युद्ध लड़ता है। क्योंकि वो हौसला नहीं छोड़ता, पर आप छोड़ देते हैं। हालांकि, कुछ डाक्टर और स्टाफ ने काबिलतारीफ काम किया है, उन्हें सलाम। पर, जिन्होंने लापरवाही बरती है, उन्हें अंर्तमन में छांकने की जरूरत है।
ऐसी तस्वीर पेश मत कीजिए
अकराबाद क्षेत्र की घटना शर्मनाक है। जिस प्रकार से पुलिस पर हमला किया गया, उसने यह बता दिया कि हम बच्चों को कौन सी शिक्षा दे रहे हैं? बड़ाें के साथ उन्माद में बच्चे भी आ गए। वो भी पुलिसकर्मी को पीटने के लिए ललकारने लगे। यह सच हैं? कि पुलिस भी पूरी तरह पाक-साफ नहीं है। मगर, सवाल हैं? कि उसका निर्णय बच्चे करेंगे। इंटरनेट मीडिया पर जो वीडियो सामने आ रहा है, उसमें बच्चों की भरपूर संख्या है। बड़ों ने एक-दो हाथ छोड़ा तो बच्चे उत्साहित हो उठे। वो मारपीट करने वालों को और उकसाने लगे। जिन हाथों में कलम होनी चाहिए, उन हाथों की मुठ्ठी में आक्रोश भर दिया गया है। यदि इन्हें ऐसी ही शिक्षा दी गई तो वाे आगे चलकर देश का जिम्मेदार नागरिक कतई नहीं बनेंगे। इसलिए जरूरत हैं? बच्चों के कोमल मन में कोमलता भरने की, उन्हें अभी से खतरनाक मोड़ पर लाने की चेष्टा करना गलत है।