Move to Jagran APP

धुंध ने चढ़ाया एक्यूआइ का पारा, 48 घंटे में बढ़ा 51 प्वाइंट

हाथरस में वायु प्रदूषण बढ़ रहा है। धूल के 2.5 माइक्रोन के कण सांस के साथ हमारे फेफड़ों में पहुंच जाते हैं जोकि हमारी सांस नली और अन्य हिस्सों में जमकर संक्रमण फैलाते हैं। यहां तक फेफड़ों का कैंसर बढ़ाने में सहायक होता है।

By Mukesh ChaturvediEdited By: Published: Mon, 09 Nov 2020 08:47 AM (IST)Updated: Mon, 09 Nov 2020 08:47 AM (IST)
धुंध ने चढ़ाया एक्यूआइ का पारा, 48 घंटे में बढ़ा 51 प्वाइंट
हाथरस शहर में सुबह से धुंध छाई रही

हाथरस, जेएनएन।  धुंध (स्मॉग) बढऩे से एयर क्वालिटी इंडेक्स भी लगातार बढ़ रहा है, जोकि पिछले 48 घंटे में 51 प्वाइंट बढ़ गया है। उत्तर भारत में पराली जलने के साथ स्थानीय स्तर पर वाहनों और उद्योगों से होने वाले प्रदूषण से हालात बिगड़़ते जा रहे हैैं। कहा जा रहा है कि यही हालात रहे तो दिवाली तक सांस लेना मुश्किल हो सकता है।

loksabha election banner

अब क्या है स्थिति

एयर क्वालिटी इंडेक्स जिसे एक्यूआइ या वायु गुणांक कहा जाता है, शुक्रवार को 145 प्वाइंट था। शनिवार को 152 प्वाइंट तक पहुंच गया। रविवार को इसमें औसतन अधिक वृद्धि हुई और वह बढ़कर 193 पहुंच गया। सामान्य स्थिति में 100 या इससे कम होना चाहिए। नोएडा में 428, आगरा में 458, मुरादाबाद में 399 तक पहुंच गया है। उत्तर भारत के दस सबसे अधिक प्रदूषित शहरों में उप्र के छह जिले बताए जाते हैं।

इसलिए बढ़ रहा स्मॉग : उत्तर भारत में पराली जलाने के साथ स्थानीय स्तर पर उद्योगों और वाहनों से निकलने वाला धुआं भी है। इससे हवा में सल्फर, कार्बन, नाइट्रोजन और अन्य हानिकारक तत्वों की मात्रा बढ़ जाती है। सल्फर डाईआक्साइड गैस नमी में क्रिया कर सल्फ्यूरिक एसिड बनाकर आंखों में जलन का कारक बन जाती है।

सांस व अस्थमा रोगियों के लिए भी खतरनाक

धूल के 2.5 माइक्रोन के कण सांस के साथ हमारे फेफड़ों में पहुंच जाते हैं जोकि हमारी सांस नली और अन्य हिस्सों में जमकर संक्रमण फैलाते हैं। यहां तक फेफड़ों का कैंसर बढ़ाने में सहायक होता है।

ऐसे बनता है स्मॉग 

यह शब्द स्मोक और फॉग से मिलकर बना है। धुआं और कोहरा को मिलाकर बनता है। तापमान कम होने के कारण मौसम में नमी बढ़ जाती है। इसके कारण पांच सौ मीटर या एक किलोमीटर की ऊंचाई से ऊपर धूल के कण हवा में ऊंचाई पर नहीं जा पाते और फैलाव नहीं होता है। धूल के इन कणों का आकार 2.5 माइक्रोन होता है जो कि आंखों से दिखाई नहीं देते हैं। 10 माइक्रोन से अधिक के आकार के कण किसी भी सतह पर बैठ जाते हैं। -अरशद हुसैन, एसोसिएट प्रोफेसर, सिविल इंजीनियरिंग विभाग (पर्यावरण) एएमयू ने बताया कि  एनसीआर के साथ आसपास के जिलों में इसका असर बढ़ रहा है। हमें स्थानीय स्तर पर भी होने वाले प्रदूषण को कम करना होगा। उद्योगों और वाहनों से निकलने वाले धुएं को कम करना होगा। नहीं तो हालात और बिगड़ेंगे। आंखों के अलावा श्वांस और अस्थमा रोगियों के लिए अधिक नुकसान दायक रहता है। यदि हमने स्थानीय स्तर पर होने वाले प्रदूषण को कम नहीं किया तो हालात और खराब होंगे।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.