छर्रा में तांगे से प्रचार कर 'पांच पांडव' ने अटल बिहारी वाजपेयी की सभा में जुटाई थी भीड़
UP Assembly Elections 2022 समय के साथ राजनीति और नेताओं में बड़ा ही बदलाव आया है। पहले कार्यकर्ताओं में नेताओं को चुनाव लड़ाने व समर्थन करने का एक अलग ही जोश होता था। कार्यकर्ता भी दिन-रात इस तरह कड़ी मेहनत करते थे कि चुनाव के प्रत्याशी वही स्वयं हैं।
प्रवीण तिवारी, छर्रा/ अलीगढ़ । UP Assembly Elections 2022 समय के साथ राजनीति और नेताओं में बड़ा ही बदलाव आया है। पहले कार्यकर्ताओं में अपने नेताओं को चुनाव लड़ाने व समर्थन करने का एक अलग ही जोश होता था। जिसके लिए कार्यकर्ता भी दिन-रात इस तरह कड़ी मेहनत करते थे कि चुनाव के प्रत्याशी वही स्वयं हैं। चुनावी सभाओं की तैयारियों से लेकर प्रचार हेतु गांव-गांव आम जनमानस तक पहुंचने का अलग ही जुनून होता था। वहीं नेता भी अपने कार्यकर्ताओं को वही सम्मान व प्यार देते थे। किसी लालच या पैसे के लोभ की कहीं कोई गुंजाइश ही नहीं होती थी।
पांच पांडव थे महशूर
साल 1974 के चुनाव की यादों में खोते हुए कस्बा छर्रा निवासी धर्मेंद्र गुप्ता बताते हैं कि जनसंघ पार्टी से क्षेत्र के ग्राम अटा निवासी सोवरन सिंह प्रत्याशी बने थे। जिसके लिए पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी कस्बा छर्रा स्थित रामलीला मैदान में एक जनसभा को संबोधित करने आए थे। जनसभा का करीब आइ दिन पूर्व कार्यक्रम निर्धारित हुआ था। जिसके लिए उनकी पांच पांडव के नाम से मशहूर टोली में धर्मेंद्र गुप्ता, सुरेंद्र गुप्ता, जयप्रकाश वाष्र्णेय, पदम माहेश्वरी व अनुग्रह प्रसाद शर्मा ने दिन-रात एक कर दी थी। बताया कि वह सुबह घर से खाना तैयार कराकर तांगे से क्षेत्र में निकलते थे। गांव-गांव पहुंच कर लोगों को अटल बिहारी वाजपेयी की जनसभा की जानकारी देते थे, तो लोग बहुत ही आश्चर्य करते थे। उन दिनों वाजपेयी जी की लोगों के दिलों में अमिट छाप बनी हुई थी। रिक्शा में माइक लगाकर कस्बा एवं क्षेत्र में प्रचार किया गया था। जिसके फलस्वरूप छर्रा स्थित रामलीला मैदान लोगों की भीड़ से पूरी तरह खचाखच भरा हुआ था। लोगों ने उनके विचारों को सुनकर काफी देर तक तालियां बजाई। चुनाव के परिणाम आने पर हालांकि दूसरे प्रत्याशी रहे बाबू सिंह ने विजय हासिल की थी। परंतु काफी दिनों तक कार्यक्रम और उनके आगमन की क्षेत्र में चर्चा होती थी। गंगीरी विधानसभा का क्षेत्र सांकरा और जनपद एटा (वर्तमान में कासगंज) के बार्डर तक था। प्रचार के दौरान कार्यकर्ताओं के पास आवागमन के सीमित साधन ही थे। एक या दो बाइकों द्वारा ही वह लोग क्षेत्र में निकलते थे और प्रचार करने के बाद देर रात तक घर लौटते थे। अपने नेताओं द्वारा मिलने वाली हौसला अफजाई उनके अंदर एक नया जोश भरती थी। जिसके चलते अगले ही दिन नई ऊर्जा के साथ फिर प्रचार पर निकल जाते थे।