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किसानों की नाराजगी पड़ेगी भारी, नेताओं की तैयार वोटों की फसल को कहीं ये छुट्टा पशु न चर जाएं

खेतों में लहलहाती फसलें और लिहाफ ओढ़े फसलों की निगरानी करते किसान। हाड़ कंपाती इस ठंड में ये वो दृश्य हैं जो शहर से निकलते ही देखने को मिल जाएंगे। किसानों का डर ये नहीं कि कोई आसमानी आफत उनके खेतों पर टूट पड़ेगी इस पर उनका जोर भी नहीं।

By Anil KushwahaEdited By: Published: Thu, 20 Jan 2022 10:44 AM (IST)Updated: Thu, 20 Jan 2022 10:45 AM (IST)
किसानों की नाराजगी पड़ेगी भारी, नेताओं की तैयार वोटों की फसल को कहीं ये छुट्टा पशु न चर जाएं
निराश्रित पशुओं से किसान परेशान हैं ये मामला नेताओं के लिए भारी पड़ सकता है।

लोकेश शर्मा, अलीगढ़ । खेतों में लहलहाती फसलें और लिहाफ ओढ़े फसलों की निगरानी करते किसान। हाड़ कंपाती इस ठंड में ये वो दृश्य हैं, जो शहर से निकलते ही देखने को मिल जाएंगे। किसानों का डर ये नहीं कि कोई आसमानी आफत उनके खेतों पर टूट पड़ेगी, इस पर उनका जोर भी नहीं। आशंका तो इस बात की रहती है कि बिन बुलाए मेहमान खेतों में घुस जाएं। ये मेहमान और कोई नहीं वो छुट्टा पशु हैं, जो फसलों को बर्बाद कर देते हैं। इन पर न प्रशासन बंदिशें लगा सका, न कोई जनप्रतिनिधि। चुनावी भाषणों में नेताओं ने चलती-फिरती इस आफत पर अंकुश लगाने के दावे-वादे खूब किए। मगर, स्थायी समाधान न हो सका है। हताश किसान इन पशुओं को स्कूलों में बंद कर नाराजगी जताते हैं। चुनाव में भी किसान यही मुद्दा उठा रहे हैं। मुद्दा गरमाया तो नेताओं की तैयार वोटों की फसल को ये छुट्टा पशु चर जाएंगे।

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इगलास में ग्रामीणों ने पशुओं को स्‍कूल में बंद किया

इगलास तहसील के गांव जवार में 16 जनवरी की सुबह ग्रामीण छुट्टा पशुओं के एक झुंड को हांकते हुए सरकारी स्कूल की ओर ले जा रहे थे। पशुओं की संख्या 50-60 रही होगी। ग्रामीणों ने इन पशुओं को स्कूल में बंद कर दिया। फिर 35 पशुओं को वृंदावन गोशाला छोड़ आए, बाकी भगा दिए। किसानों ने बताया कि भोर होते ही ये पशु उनके खेतों में घुस गए और गेहूं की फसल चरने लगे। ये पहली बार नहीं, अक्सर ऐसा होता है। किसान रामकिशन कहते हैं कि प्राकृतिक आपदा से इतना डर नहीं लगता है, जितना इनसे लगता है। आपदा तो कभी-कभार आती है, ये रोज आ धमकते हैं। रात में भी फसलों की पहरेदारी करनी पड़ती है। इसी तहसील के गांव टमोटिया में भी किसान छुट्टा पशुओं को खेतों से खदेड़कर पूर्व माध्यमिक विद्यालय में बंद कर चुके हैं। तब छात्र और शिक्षक घबराकर कमरों में कैद हो गए थे। गांव अटा के श्यामवीर कहते हैं कि मजबूरी है साहब, फसलों की रखवाली करने के लिए परिवार से दूर 24 घंटे खेतों में बिताते हैं। कोई नेता नहीं सुनता है। खेतों की बाड़बंदी में कोई पशु घायल या मर जाए तो किसान पर मुकदमा जरूर दर्ज हो जाता है। अतरौली के विशन स्वरूप कहते हैं कि ऐसी गलन में भी किसान खेतों में दिन-रात बिताने पर मजबूर हैं।

नेताजी आएंगे तो पूछेंगे

अकराबाद के किसान नवाब ङ्क्षसह कहते हैं कि नेताजी वोट मांगने गांव आए तो इतना जरूर पूछेंगे कि छुट्टा पशुओं से निजात दिलाने के लिए उन्होंने अब तक क्या किया? अगर जीत गए तो क्या करेंगे? गभाना के रामगोपाल ने कहा, चुनाव में ही नेताओं को किसानों की समस्याओं की याद आती है। वोट तो हम देंगे, लेकिन उसे जो समस्या के समाधान का ठोस भरोसा दिलाए।

सड़कों पर साम्राज्य

गांव ही नहीं शहर कीसड़कें भी छुट्टा पशुओं से प्रभावित हैं। सड़कों पर ये निकल आएं तो इनका साम्राज्य दिखाई देता है। कब कहां आपस में भिड़ जाएं, कह नहीं सकते। पिछले साल नौरंगाबाद में दो सांड़ों ने उत्पात मचाया था। तीन राहगीर जख्मी हुए। नगर निगम ने आठ माह पूर्व इन पशुओं को पकडऩे का अभियान चलाया था। काफी पशु पकड़े भी गए, जिन्हें निगम ने अपनी तीन गोशालाओं में रखा। कुछ दिन चला ये अभियान बंद हो गया। छुट्टा पशु फिर सड़कों पर निकल आए।

लापरवाह तंत्र

रोज 30 रुपये प्रति गोवंश के हिसाब से सरकार बजट देती है। पशुपालन विभाग के जरिये से बजट गोशालाओं में भेजा जाता है। स्वयंसेवी संगठन भी मदद करते हैं, लेकिन पशुपालन विभाग के कर्मचारी इसमें 'खेलÓ करने लगे हैं। गोवंश के गले में टैग नंबर डालकर उसे बाहर छोड़ देते हैं। वे खेतों में जाकर फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं।

तादाद 20 हजार पार

  • 20 हजार से अधिक निराश्रित गोवंशीय जिले में हैं।
  • -18 हजार गोवंशीय को संरक्षित किया जा रहा है।
  • -150 से अधिक गोशाला हैं।
  • -03 बड़ी गोशाला बन रही हैं। बचा गोवंशीय इनमें स्थानांतरित कर दिया जाएगा।
  • -900 रुपये प्रति माह एक गाय पालने के लिए सरकार किसानों को देती है।

इनका कहना है

छुट्टा पशु फसलों को नुकसान पहुंचा रहे हैं। कई बार शिकायत कर चुके हैं। लेकिन न तो अधिकारी ध्यान दे रहे हैैं, न जनप्रतिनिधि सुन रहे।

श्यामवीर सिंह, गांव अटा

छुट्टा पशुओं की वजह से फसलों में नुकसान हो रहा है। रातभर जागकर रखवाली करनी पड़ती है। इस समस्या से निजात दिलाने की जरूरत है।

नेत्रपाल सिंह, गांव अटा

फसल की रात-दिन रखवाली करता हूं। इन पशुओं के हमले से कई किसान घायल हो चुके हैं। नेताओं को किसानों की परेशानी समझनी चाहिए।

रमेशचंद्र, हुसैपुर देहमाफी

गेहूं की फसल की है। फसल बचाने की चिंता रहती है। क्षेत्र में एक भी गोशाला नहीं है। गोशाला खुल जाए तो निराश्रित गोवंशीय से राहत मिले।

छत्रपाल सिंह, मझोला

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सरकारी गोशालाओं की घोर अनदेखी हो रही है। यदि कांग्रेस सत्ता में आती है तो गोशाला संरक्षण आयोग का गठन किया जाएगा। गोशालाओं में लोगों की सरकारी नौकरी दी जाएगी। कृषि फार्मों से चारे की व्यवस्था होगी।

संतोष सिंह जादौन, कांग्रेस जिलाध्यक्ष

भाजपा सरकार की तमाम घोषणाओं के बाद भी यह समस्या दूर नहीं हो सकी। गायें भूख से मर रही हैं। सपा सरकार आयी तो गोशालाओं का विस्तार होगा, नई गोशालाएं भी स्थापित होंगी।

गिरीश यादव, जिलाध्यक्ष सपा

हमारी सरकार ने ही गोवंशीय की ङ्क्षचता की है। गोशालाओं का निर्माण कराया। चारे की व्यवस्था की। पिछली सरकारों में क्या स्थिति थी, किसी से छिपी नहीं है। कुछ जगहों पर समस्या है, उनका भी निस्तारण कराया जाएगा।

ऋषिपाल सिंह जिलाध्यक्ष भाजपा

सरकार ने गोवंशीय के प्रति सिर्फ दिखावा किया है। सपा-रालोद गठबंधन की सरकार बनने पर हम गोशालाओं में उचित प्रबंध किए जाएंगे। गो पालक नियुक्त होंगे।

कालीचरन सिंह, जिलाध्यक्ष रालोद

भाजपा सरकार ने ही गोवंशीय की दुर्गति की है। गोशालाओं को अनुदान के नाम पर कुछ नहीं दिया। गोवंशीय भूख से तड़पते हैं। हमारी सरकार आने पर बेहतर व्यवस्थाएं होंगी।

रतन दीप सिंह, जिलाध्यक्ष बसपा


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