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Election colors in Aligarh: समझौता एक्सप्रेस दौड़ गई है...

चुनावी रंग अब होर्डिंग-बैनरों पर दिखाई देने लगे हैं। कमल वाली पार्टी में तो तीज-त्योहार के बहाने नेताजी बधाई देने लगे हैं। कौशिक का कौशल दिख रहा है तो आजाद अन्नू बाबू बन गए हैं। मगर इनकी होर्डिंग्स देखकर जनता चकरा गई है।

By Sandeep Kumar SaxenaEdited By: Published: Thu, 04 Nov 2021 11:49 AM (IST)Updated: Thu, 04 Nov 2021 11:49 AM (IST)
Election colors in Aligarh: समझौता एक्सप्रेस दौड़ गई है...
तीज-त्योहार के बहाने नेताजी बधाई देने लगे हैं।

अलीगढ़, जागरण संवाददाता। चुनावी रंग अब होर्डिंग-बैनरों पर दिखाई देने लगे हैं। कमल वाली पार्टी में तो तीज-त्योहार के बहाने नेताजी बधाई देने लगे हैं। कौशिक का कौशल दिख रहा है तो आजाद, अन्नू बाबू बन गए हैं। मगर, इनकी होर्डिंग्स देखकर जनता चकरा गई है। होर्डिंग्स पर जिले के दो ऐसे कद्दावर नेता साथ नजर आ रहे हैं, जिन्हें देखकर सहसा लोगों को विश्वास नहीं हो रहा है। दोनों दिग्गज नेताओं के बारे में बताया जाता है कि उनमें हमेशा दूरियां बनी रहती हैं। ये एक साथ नहीं हो सकते। अभी भाजयुमो के अध्यक्ष पद को लेकर तो जमकर तकरार हो गई। मगर, होर्डिंग्स पर दोनों भइयाजी मुस्कुराते हुए खूब छा रहे हैं। अब जनता ठगी महसूस कर रही है कि आखिर हम जाएं तो कहां जाएं? इनके चक्कर में हम लोग दो पाले में बंधे रहते हैं, मगर इनकी समझौता एक्सप्रेस कब दौड़ जाए कोई पता ही नहीं रहती है?

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बल तो प्रयोग होगा ही

बल (शक्ति) को बांधकर रखा नहीं जा सकता है, वह कहीं न कहीं तो प्रयोग होगा ही? महानगर में ऐसा ही हो रहा है, कभी हिंदुत्व की आवाज उठाने वाले बजरंगियों के संगठन की इकाई भंग कर दी गई है, अब बजरंगी ऐसे तो शांत बैठने वाले नहीं? वो कहीं न कहीं उछल-कूद मचाएंगे? ऐसा हुआ भी। बजरंगियों ने दल की जगह बल का गठन कर लिया है। अभी हाल में बांग्लादेश में हिंदुओं पर हुए हमले के विरोध पर वो सड़क पर उतर आएं। शक्ति का प्रदर्शन कर दिया। संगठन के लोग इतनी बड़ी ताकत देखकर हैरत में पड़ गए। तमाम लोगों में तो चर्चाएं होने लगी कि दल ने इतनी बड़ी ताकत नहीं दिखाई, जितना बड़ा प्रदर्शन बल ने कर दिया। यदि संगठन ने इस बल का प्रयोग नहीं किया तो ऐसा न हो कि यह बल कहीं और प्रयोग हो जाए? इस पर मंथन शुरू हो गया है।

करवाचौथ को फंस गए नेताजी

कमल वाली पार्टी में तीज-त्योहारों में कार्यक्रमों की भरमार हो जाती है। हालात यह हो जाता है कि सुबह से लेकर शाम तक कार्यक्रम लग जाते हैं। इस बार करवाचौथ पर भी ऐसे हुआ। दिनभर नेताजी कार्यक्रम में व्यस्त रहे। स्वयं पदाधिकारियों की बैठक लेते रहे। कई पदाधिकारी तो बोल पड़े आज करवाचौथ है, कम से कम रहम तो कर दो, नेताजी मुस्करा गए, बोलें अभी मिठाई खिलाएंगे। पदाधिकारियों ने कहा कि अरे मिठाई रहने दो, घर जल्दी पहुंचना है। मगर, नेताजी शाम तक बैठक लेते रहे। तभी लखनऊ से फोन आया कि नेताजी की भी बैठक है। रात नौ आनलाइन बैठक में उन्हें उपस्थित रहना है। नेताजी के चेहरे पर पसीना आ गया। बोलें, नौ बजे चंद्रमा निकलेगा, ऐसे में वो क्या करें? ऊपर से फोन को मना कर नहीं सकते? घर जा नहीं सकते? इसपर पदाधिकारियों ने तेज से ठहाका लगाया। बोलें, अब तुम इसका तोड़ निकालो?

कहीं जमीनी हकीकत न पूछ ली जाए

जिले के एक तेजतर्रार नेता ने पिछले दिनों हाथी की सवारी छोड़ दी, उन्हें कमल की खुशबू भा गई। बड़े कद के नेता हैं तो लखनऊ में उनकी घोषणा भी हुई, पूरे जिले में नेताजी की धमक रही। एमएलसी चुनाव (स्थानीय निकाय) की तैयारियों की भी चर्चा खूब होने लगी। मगर, नेताजी के जिले में दर्शन नहीं हुए। इससे पहले भी वो जब चुनाव लड़े थे तो उसके बाद जिले में नजर आना उन्होंने बंद कर दिया था। ऐसे में सवाल यह उठने लगा कि यह जनता से कैसे जुड़े रहेंगे? उनकी समस्याओं के प्रति कितने गंभीर रहेंगे? जनता के बीच में तो वह रहना नहीं चाहते, यदि चुनाव में उन्हें मौका मिला तो लोग पहचानेंगे कैसे? हालांकि, नेताजी इससे बेफिक्र हैं। मगर, कमल वाली पार्टी में एक-एक पल की रिपोर्ट ऊपर तक जाती है, नेताजी से कहीं अचानक जमीनी हकीकत पूछ ली गई तो बताएं क्या?


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