Health care : डाक्टर न दवाई, कैसे लड़ेंगे कोरोना से लड़ाई Aligarh news
प्रधानमंत्री ने भले ही कहा जहां बीमार वहीं उपचार। लेकिन अलीगढ़ जिले में यह संभव नहीं हो पा रहा। संक्रमण ही नहीं अन्य बीमारियों ने भी ग्रामीण क्षेत्रों में खूब पैर पसारे पर बदहाल स्वास्थ्य सेवाओं के चलते न तो मरीजों की समय से जांच हो पाई और न उपचार।
विनोद भारती, अलीगढ़ । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भले ही कहा है कि जहां बीमार, वहीं उपचार। लेकिन, अलीगढ़ जिले में यह संभव नहीं हो पा रहा। संक्रमण ही नहीं, अन्य बीमारियों ने भी ग्रामीण क्षेत्रों में खूब पैर पसारे, पर बदहाल स्वास्थ्य सेवाओं के चलते न तो मरीजों की समय से जांच हो पाई और न उपचार। संक्रमण के डर से ओपीडी सेवाएं बंद कर दी गईं। डाक्टर व अन्य स्टाफ की नियुक्ति कोविड अस्पतालों में लग गई। जहां डाक्टर की नियुक्त थी, वे आते नहीं, नर्स कम हैं, दवाओं का टोटा है। हालात बिगड़े तो गांव-गांव स्क्रीनिंग शुरू हुई। ग्राम निगरानी समितियों को गठन हुआ, ताकि मरीजों की जांच कर उपचार मिल सके। अफसोस, मरीजों को फिर भी दवा न मिलने की शिकायतें हैं। ऐसी तैयारियों के साथ कोरोना से लड़ाई कैसे जीत पाएंगे।
ग्रामीण क्षेत्रों में बदहाल है स्वास्थ्य सेवाएं
ग्रामीण क्षेत्रों की स्वास्थ्य सेवाओं के लिए जिले में 190 डाक्टरों के पद स्वीकृत हैैं। मौजदा समय में 50 की ही तैनाती है। कोविड काल में 20 डॉक्टर संविदा भी रखे गए हैैं। इससे बड़ मदद मिली है। हालत ये है कि सीएचसी-पीएचसी के अधिकांश डाक्टरों की ड्यूटी कोविड अस्पतालों में लगा दी गई। अन्य स्टाफ का भी यही हाल है। इसके चलते अधिकांश पीएचसी पर तो ताले लग गए। इससे लोगों को इमरजेंसी सेवाएं तक नहीं मिल पाईं। सीएचसी पर जो डाक्टर व स्टाफ बचा, उन्होंने मनमानी की। दावा किया गया कि हर केंद्र पर संदिग्ध मरीजों की जांच होगी। दवा दी जाएगी, लेकिन ज्यादातर केंद्रों पर ऐसा नहीं हो पाया। स्टाफ ही नहीं मिला तो कौन जांच और इलाज करता? लिहाजा मरीज इधर-उधर भटकते रहे।
चिंता इसलिए भी
मौसम में बदलाव के साथ ही संक्रामक बीमारियां पैर पसारने लगती हैैं। खासतौर से खांसी, जुकाम, उल्टी-दस्त, मलेरिया, डेंगू, टायफाइड का प्रकोप सबसे ज्यादा रहता है। इस बार कोरोना संक्रमण ने पैर पसार लिए। ऐसे समय में ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं पर ध्यान दिए जाने की जरूरत थी, मगर ऐसा हो नहीं पाया। बरसात के बाद परिसर में जलभराव है। मरीजों को झोलाछापों से इलाज कराना पड़ा। इससे संक्रमण का प्रसार बढ़ता चला गया।
जांच तक की सुविधा नहीं
देहात के अस्पताल में स्वास्थ्य सेवाओं के चरमराने का बड़ा कारण स्टाफ की कमी भी है। बहुत से डाक्टर तो देहात के अस्पतालों में काम नहीं करना चाहते। उनकी शिकायत रहती है कि जब रहने की पर्याप्त सुविधा नहीं है तो कैसे परिवार के साथ रहें। स्टाफ की कमी के कारण बहुत से स्वास्थ्य केंद्र खंडहर होते जा रहे हैं। कहीं आवारा जानवर घूमते दिख जाएंगे तो कहीं गदंगी का अंबार मिल जाएगा। इन अस्पतालों में न तो पर्याप्त संसाधन हैं और न जांच की सुविधा। मजबूरी में लोग शहर की ओर दौड़ लगाते हैं, जिसका खामियाजा उन्हेंं अधिक भुगतान कर चुकाना पड़ता है।
...तब तक कम हो चुका था संक्रमण
ग्रामीण क्षेत्रों में जब कोरोना संक्रमण ने गति पकड़ी, उस समय न तो जांच की उचित सुविधा थी और उपचार की। हालात बेकाबू हुए तो अधिकारी व उनकी टीमें गांव की तरफ दौड़ीं। गांव-गांव स्क्रीनिंग शुरू कराई गई। संदिग्ध मरीजों की खोजकर उनके दवा उपलब्ध कराने का दावा किया गया। हालांकि, तब तक संक्रमण काफी कम हो चुका था।
अब भी नहीं मिल रहीं दवा
प्रशासन ने हर गांव में ग्राम निगरानी समिति (आशा, आंगनबाड़ी, एएनएम आदि) का गठन किया है। उन्हेंं संदिग्ध मरीजों की पहचान कर मेडिसन किट भी उपलब्ध करानी है, मगर देखने में ये आया है कि मरीजों को तीन या पांच दिन के कोर्स की बजाय एक दिन की दवा दी जा रही है।
सूरते हाल
सीएचसी में गंदगी, कबाड़ बनीं कुर्सियां
जट्टारी: 30 बेड की टप्पल सीएचसी के 15 बेड छेरत कोविड हास्पिटल भेज दिए गए हैं। हालांकि, स्टाफ अन्य संसाधनों का इस्तेमाल नहीं कर रहा। यहां टीकाकरण चल रहा, लेकिन शारीरिक दूरी का पालन नहीं हो रहा। अस्पताल परिसर में गंदगी पसरी है। यहां आइसोलेशन सेंटर तक नहीं। मरीजों के बैठने के लिए भेजी गईं कुॢसयां कबाड़ा बन गई हैं।
डाक्टर के रुकने के लिए इंतजाम ही नहीं
जलाली: बस स्टैैंड के निकट स्थित पीएचसी का भवन जर्जर है। एक डाक्टर, एक फार्मासिस्ट, एक लेब टेक्नीशियन व एक स्वीपर नियुक्त है। चिकित्सक के रुकने की कोई व्यवस्था नहीं है। होम आइसोलेशन वाले मरीज को कोई देखने भी नहीं जाता है।
रिपोर्ट कब आएगी, पता नहीं
जलाली: कस्बा माजरा नगरिया भूड़ में पांच करोड़ की लागत से 30 बेड की सीएचसी है। यह अब तक शुरू नहीं हुई है। यहां के वीके शर्मा इसकी पोर्टल पर शिकायत भी दर्ज करा चुके हैैं। सीएमओ ने 19 अप्रैल को सीएचसी चालू करने के आदेश भी दिए, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
यह है हाल
13 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र हैैं जिले में
35 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र हैैं जिले में
200 उपस्वास्थ्य केंद्र हैैं
190 पद डाक्टरों के हैैं स्वीकृत
50 डाक्टरों की ही है तैनाती
20 डाक्टर रखे गए हैैं संविदा पर
इनका कहना है
अभी एक सप्ताह तक स्टाफ की समस्या रहेगी, इसके बाद संक्रमण दर कम होने पर डाक्टर व स्टाफ को वापस सीएचसी-पीएचसी पर भेज दिया जाएगा। ग्राम निगरानी समितियों को कोर्स के अनुसार दवा उपलब्ध कराने के निर्देश दिए हैं। जल्द ही सीएचसकी-पीएचसी में ओपीडी सेवाएं बहाल कर दी जाएंगीं।
- डा. बीपीएस कल्याणी, सीएमओ।
मुख्यमंत्री जब दौरे पर आए थे तब उन्होंने स्टाफ की कमी को पूरा करन के लिए संविदा पर रखने के आदेश दिए थे। संविदा पर डाक्टर रखे भी गए हैं। अन्य स्टाफ की कमी को पूरा करने के लिए डीएम से बात की जाएगी। सरकार का का मकसद जहां बीमार वहां इलाज उपलब्ध कराना है। पीएम ने भी यही बात कही थी। देहात के जिन स्वास्थ्य केंद्रों पर डाक्टर व अन्य स्टाफ नहीं है इस पर भी बात करेंगे। जिले में कोरोना की सात हजार लोगों की टेस्टिंग की सुविधा शुरू हो गई है।
- सतीश कुमार गौतम, सांसद