सोचा न था कि ये हंसते चेहरे अब कभी नहीं मिलेंगे... Aligarh news
हम खुशनसीब हैं कि जिस गांव में भगत सिंह ने शिक्षा दी थी वहां हमारा बचपन बीता। लेकिन इस अनहोनी को हम सदियों तक नहीं भूल पाएंगे। कभी सोचा भी न था कि कल तक गांव का हिस्सा रहे लोग और उनके हंसते चेहरे अब कभी नहीं मिलेंगे।
अलीगढ़, जेएनएन । हम खुशनसीब हैं कि जिस गांव में भगत सिंह ने शिक्षा दी थी, वहां हमारा बचपन बीता। लेकिन, इस अनहोनी को हम सदियों तक नहीं भूल पाएंगे। कभी सोचा भी न था कि कल तक गांव का हिस्सा रहे लोग और उनके हंसते चेहरे अब कभी नहीं मिलेंगे। पिसावा के शादीपुर में ग्रामीणों के ये शब्द सिर्फ दर्द नहीं, बल्कि अपनों को खोने का एहसास बता रहे थे। ये लोग रिश्ते से भले अपने न हों। लेकिन, इनके होने से गांव को गांव कहा जाता था। रविवार को गांव के बीचों-बीच सन्नाटा पसरा था। लेकिन, चारों ओर रोते-बिलखते लोगों की आवाजें गूंज रही थीं। एक साथ आठ मौतों ने मानो गांव का वजूद ही खो दिया हो...।
यहां की खुशियां और चहलकदमी मातम में बदल गयीं
शादीपुर...। जो खेलकूद और उत्सव आयोजनों में हमेशा अलग पहचान बनाकर रखता है। दो दिन से यहां की खुशियां और चहलकदमी मातम में बदल गई हैं। शहीद भगत सिंह पार्क में सन्नाटा पसरा हुआ है। कोई घर ऐसा नहीं है, जहां से सिसकने की आवाजें न आ रही हैं। रविवार को दो दिन बाद लगातार मौतों के बीच चीत्कार का शोर तो कम हुआ, मगर थमा नहीं था। गांव से गुजर रही नहर के पानी भी रुक गया था। मानो उसे भी मौतों की खबर हो गई हो। तेज धूप में लोगों के दिल का गुबार भी उबल रहा था। निवर्तमान प्रधान भानु प्रकाश के घर के पास बैठे कुछ लोग घटना से व्यथित होकर यही कह रहे थे कि गांव में शराब ने कहर बरपाया है। हर ओर चीख पुकार मची हुई है। किसी का अंतिम संस्कार हो रहा है तो किसी का शव अस्पताल से आने की सूचना मिल रही है। भरोसा नहीं होता कि हमारा गांव ऐसी अनहोनी का शिकार बना है। कुछ आगे बढ़े तो एक घर में किरनपाल के स्वजन बेहाल थे। अचानक छोटे भाई की तबीयत बिगड़ने पर उसे भी अस्पताल भेज दिया गया।
किसी के घर नहीं जला चूल्हा
मजदूरी करने बाले गाजियाबाद के सागर की मौत से बेहाल पत्नी अपने 24 दिन के बेटे को गोद में लेकर बार-बार बेहोश हो जाती। किसी घर में चूल्हा तक नहीं जला था। लोग अपने कार्यों को भूलकर शवों के अंतिम संस्कार कराने में लगे रहे। एक बुजुर्ग गांव के इतिहास को याद करके भावुक हो गए। बोले, लोगों की हंसी-ठिठोली और पेड़ के नीचे दूरदराज की बातों से ही गांव की पहचान होती है। लेकिन, इस घटना ने इतने दर्द दे दिए हैं कि अब लंबे समय तक कोई ठीक से हंस भी नहीं पाएगा। महिलाएं विधवा हो गई हैं। बच्चों के सिर से पिता का साया उठ गया है। हे राम...। भगवान इनका क्या कुसूर था, ये कहते हुए बुजुर्ग ने हाथ जोड़ लिए और शांत हो गए...।