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अलीगढ़ में डेंगू का प्रकोप, बाजार से गायब हो रहा मलेरिया का इंजेक्शन, जानिए वजह Aligarh news

चौंकिए नहीं यह सच है। जिले में भले ही डेंगू का प्रकोप हो लेकिन बाजार से गायब एंटी मलेरियल इंजेक्शन ‘आर्टिसुनेट’ हो रहा है। दरअसल कोरोना की तरह डेंगू की कोई निर्धारित दवा या उपचार नहीं है। लिहाजा झोलाछाप और कुछ डाक्टर रोगियों को विकल्प ‘आर्टिसुनेट’ इंजेक्शन दे रहे हैं।

By Anil KushwahaEdited By: Published: Wed, 27 Oct 2021 10:35 AM (IST)Updated: Wed, 27 Oct 2021 10:45 AM (IST)
अलीगढ़ में डेंगू का प्रकोप, बाजार से गायब हो रहा मलेरिया का इंजेक्शन, जानिए वजह Aligarh news
कोरोना की तरह डेंगू की कोई निर्धारित दवा या उपचार नहीं है।

विनोद भारती, अलीगढ़ । चौंकिए नहीं, यह सच है। जिले में भले ही डेंगू का प्रकोप हो, लेकिन बाजार से गायब एंटी मलेरियल इंजेक्शन ‘आर्टिसुनेट’ हो रहा है। दरअसल, कोरोना की तरह डेंगू की कोई निर्धारित दवा या उपचार नहीं है। लिहाजा, झोलाछाप और कुछ डाक्टर रोगियों को बतौर विकल्प ‘आर्टिसुनेट’ इंजेक्शन दे रहे हैं। जबकि, अभी तक स्वास्थ्य मंत्रालय या किसी चिकित्सा शोध संस्थान ने आर्टिसुनेट या अन्य वैकल्पिक दवा की सलाह नहीं दी है। खपत बढ़ने से आर्टिसुनेट इंजेक्शन की मांग ही नहीं बढ़ी, बल्कि अब कीमत भी दोगुनी हो गई है। 60 रुपये का इंजेक्शन 300 रुपये तक में बिक रहा है। मरीज इस इंजेक्शन के लिए परेशान होने लगे हैं।

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ये है आर्टिसुनेट

चिकित्सकों के अनुसार फेल्सी आर्टिसुनेट साल्ट मलेरिया परजीवी (प्लाजमोडियम) को नष्ट करने वाले फ्री रैडिकल्स का उत्पादन करता है। यह दवा मलेरिया या गंभीर मलेरिया रोगियों को तब दी जाती है, जब अन्य दवा प्रभावी नहीं होती हैं। लेकिन, इसे डेंगू रोगियों पर इस्तेमाल किया जा रहा है।

ये हैं हालात

आर्टिसुनेट इंजेक्शन की सामान्य दिनों में ज्यादा मांग न होने के कारण उत्पादन काफी कम होता है। लेकिन, मलेरिया और डेंगू का प्रकोप एक साथ शुरू हो जाने से इसकी मांग 10 गुना से अधिक बढ़ गई है। नतीजतन, मेडिकल स्टोर्स से यह इंजेक्शन गायब होता जा रहा है। झोलाछाप व कई डाक्टर मलेरिया हो या डेंगू, हर मरीज को सबसे पहले यही इंजेक्शन देना शुरू कर रहे हैं। इससे बाजार में इंजेक्शन पर मुनाफाखोरी बढ़ गई है। सूत्रों की मानें तो बाजार में नकली इंजेक्शन तक बिकने लगा है, लेकिन औषधि विभाग या स्वास्थ्य महकमा इसे लेकर अभी बेखबर है।

घातक है आर्टिसुनेट का प्रयोग

वरुण हास्पिटल में डेंगू मरीजों पर काम कर रहे फिजीशियन डा. अमित वार्ष्णेय के अनुसार डेंगू के चार स्ट्रेन सामने आते हैं। दूसरा स्ट्रेन सबसे ज्यादा घातक होता है, जो इस समय देखने को मिल रहा है। यह स्ट्रेन प्रत्येक चार-पांच साल में अपने म्यूट्रेशन को बदल लेता है। ऐसे मरीजों के उपचार में सावधानी बहुत जरूरी है। हमारे यहां तमाम ऐसे गंभीर मरीज पहुंच रहे हैं, जिन्हें शुरुआत में ही फेल्सी आर्टिसुनेट इंजेक्शन, डेक्सा (स्टेरायड दवा) या एंटीबायोटिक दवा दी गईं, जो बहुत खतरनाक है। इन दवाओं, खासतौर से आर्टिसुनेट डेंगू रोगियों में अपच, कमजोरी,चक्कर आना,सिरदर्द, किडनी डैमेज, हार्ट रेट में कमी, पेट दर्द, लिवर संबंधी समस्या, डायरिया, शरीर में दर्द, एनीमिया, लिवर में सूजन, हृदय डिजीज समेत कई समस्या पैदा कर सकती है। यही नहीं, इस दवा को देने से प्लेटलेट्स तेजी से गिर जाती हैं। झोलाछाप, बिना सोचे-समझे एंटी मलेरियल इंजेक्शन देकर मरीज की जान जोखिम में डाल देते हैं। खतरा बढ़ते ही उसे रेफर कर दिया जाता है।

पैरासिटिक के रूप में इस्तेमाल

एसजेडी हास्पिटल के संचालक डा. संजीव शर्मा के अनसुार, कुछ मरीजों पर आर्टिसुनेट को एंटी पैरासिटिक के रूप में इस्तेमाल करने के अच्छे परिणाम मिले हैं। कोरोना काल में भी आइवरमेक्टिन को स्वीकार किया गया। स्टेरायड व एंडीबायोटिक शरीर में संक्रमण के लिए प्रयोग कर सकते हैं, लेकिन मरीज की परिस्थिति देखकर।


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